पश्चिम बंगाल में हड़ताल (West Bengal Teachers Protest) पर बैठे एक शिक्षक की मौत हो गई है. 4 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने WBSSC के तहत 2016 की शिक्षक भर्ती को रद्द कर दिया था. इसके कारण जिन शिक्षकों की नौकरी चली गई, वो विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. इन शिक्षकों ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने की कोशिश की. लेकिन सफलता नहीं मिली.
अचानक नौकरी जाने से बहुत परेशान थे टीचर, हड़ताल पर बैठे, अब जान चली गई
Supreme Court के फैसले के बाद सीएम Mamata Banerjee ने कहा था कि वो किसी भी योग्य उम्मीदवार की नौकरी नहीं जाने देंगी. लेकिन, नौकरियां चली गईं, टीचर परेशान हैं.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सीएम ममता बनर्जी ने कहा था कि वो किसी भी योग्य उम्मीदवार की नौकरी नहीं जाने देंगी. उन्होंने कहा था कि उम्मीदवारों को न्याय दिलाने के लिए सभी संभव कानूनी रास्तों की तलाश की जा रही है. द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, ममता सरकार 30 मई को नई भर्तियां शुरू करने के लिए एक नोटिफिकेशन जारी करने वाली है. इस बीच एक शिक्षक की मौत ने इस मामले को और जटिल बना दिया है.
'नौकरी खोने के दबाव ने शिक्षक की जान ले ली'
7 मई से ये शिक्षक साल्ट लेक में राज्य शिक्षा विभाग के मुख्यालय विकास भवन के बाहर धरने पर बैठे हैं. शिक्षकों ने बताया कि ‘अमुई पारा रिफ्यूजी स्कूल’ के शिक्षक प्रवीण कर्माकर का निधन हो गया है. उनके साथियों का कहना है कि वो गंभीर मानसिक तनाव से गुजर रहे थे. उन्हें कोई गंभीर बीमारी थी और वो नौकरी खोने के दबाव को बर्दाश्त नहीं कर पाए. प्रदर्शनकारी शिक्षकों ने आधिकारिक बयान में कहा कि कर्माकर की मौत और मुख्यमंत्री के परीक्षा संबंधी फैसले ने शिक्षकों की पीड़ा को और बढ़ा दिया है. उन्होंने आगे कहा,
अगर अब भी हम न्याय और सम्मान के साथ स्कूल नहीं लौटते, तो पश्चिम बंगाल निर्दोष शिक्षकों की लाशों का ढेर बन सकता है. राज्य सरकार, न्यायपालिका और गंदी राजनीति करने वाली हर पार्टी को इसकी पूरी जिम्मेदारी लेनी चाहिए.
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29 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार जिले में पहुंचे थे. शिक्षकों ने बताया कि उन्होंने सांसद और पार्टी के जिला अध्यक्ष सहित स्थानीय भाजपा नेताओं को पत्र लिखकर प्रधानमंत्री से मुलाकात का अनुरोध किया था.
पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाला क्या है?WBSSC ने 2016 में 24,640 पदों के लिए भर्ती निकाली थी. इसके लिए 23 लाख आवेदन प्राप्त हुए थे. हालांकि, जितने पद थे उससे ज्यादा नियुक्ति पत्र जारी कर दिए गए. जांच में OMR शीट में गड़बड़ी और रैंकिंग में हेरफेर करने का पता चला. मामला कलकत्ता हाईकोर्ट में पहुंचा. अप्रैल 2024 में कोर्ट ने इन नियुक्तियों को रद्द कर दिया. हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया.
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