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इस स्कूल में होती है 'छाता खोल' पढ़ाई, वजह छत से टपकती है!

हुगली का पंचपाड़ा प्राइमरी स्कूल जर्जर हालत में है. इस सरकारी स्कूल के 68 छोटे बच्चे, जिनकी उम्र 5 से 10 साल है, टपकती छतों के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं. बारिश के दिनों में वह छाता लगाकर क्लास में बैठते हैं.

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प्राइमरी स्कूल में बच्चे छाता लगाकर पढ़ रहे हैं (फोटोः India Today)

दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दावा करने वाले भारत में एक 'बदहाल' सरकारी स्कूल की कहानी सुनिए. पश्चिम बंगाल के हुगली में ये प्राइमरी स्कूल है. 4 कमरे हैं. एक तकरीबन ढह गया है. बाकी 3 ढहने की कगार पर हैं. 5 से 10 साल तक के 68 बच्चे इस स्कूल में पढ़ने के लिए आते हैं. धूप-बारिश, आंधी-तूफान इन बच्चों को स्कूल आने से नहीं रोक पाती. बच्चों में पढ़ाई को लेकर इतना जुनून है. लेकिन स्कूल आकर उन्हें कैसी व्यवस्था मिलती है? 

इंडिया टुडे से जुड़े तपस सेनगुप्ता की रिपोर्ट के मुताबिक 4 कमरों के स्कूल का आधा हिस्सा जर्जर हो गया है. जो बचा है वो भी 'अब गिरा-तब गिरा' की हालत में है. असली चुनौती तब पेश आती है जब बारिश होती है. बात यकीन करने की नहीं है लेकिन एकदम ‘सच’ है. बारिश के दिनों में बच्चे और टीचर दोनों इस स्कूल के कमरों में छाता लगाकर बैठते हैं, तब जाकर पढ़ाई हो पाती है.

हम बात कर रहे हैं हुगली के पंचपाड़ा प्राइमरी स्कूल की. यह स्कूल आज का नहीं है. 1972 से चल रहा है. 50 साल से भी पुराने इस स्कूल की हालत अब स्कूल कहलाने लायक रह नहीं गई है. सरकारी अफसरों की लापरवाही और ‘लालफीताशाही’ ने यहां के छात्रों के लिए पढ़ाई को ‘जानलेवा’ बना दिया है. रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023 से स्कूल की आधी कक्षाएं ढह चुकी हैं. स्कूल की एक क्लास में बच्चे छाता लेकर बैठते हैं ताकि टपकते पानी से बच सकें. हेडमास्टर जयंत गुप्ता गीले फर्श और टूटती छतों के बीच किसी तरह स्कूल चला रहे हैं.

जयंत गुप्ता बताते हैं,

यहां बच्चों की जान को खतरा है. मैंने ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर (BDO) से इसकी शिकायत की. उन्होंने स्कूल का सर्वे करवाया, लेकिन आगे कुछ नहीं हुआ. स्थानीय नेताओं से भी मदद मांगी. यहां तक कि सांसद रचना बनर्जी के सामने भी समस्या रखी गई लेकिन इस पर कोई काम नहीं हुआ.

इंडिया टुडे ने बताया है कि जिला स्कूल इंस्पेक्टर दीपांकर राय से संपर्क करने की कोशिश की गई थी, लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई. 

हालांकि, पांडुआ ब्लॉक की BDO सेबंती बिस्वास से इस बारे में बात हुई. उन्होंने बताया कि स्कूल की मांगें राज्य सरकार के पास भेजी गई हैं. अब फंड का इंतजार किया जा रहा है.

इस स्कूल में प्री-प्राइमरी से चौथी कक्षा तक की पढ़ाई होती है. अभिभावक न सिर्फ अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं, बल्कि सरकारी स्कूल की इस बदहाली को सिस्टम की नाकामी मान रहे हैं.

स्थायीन लोग बताते हैं कि एक समय था, जब इस स्कूल को लेकर गांव के लोग गर्व महसूस करते थे. अब यह ‘छातों और गड्ढों भरे क्लासरूम’ वाला बदहाल स्कूल बन गया है. अगर जल्दी फंड नहीं मिला और इसकी मरम्मत नहीं हुई तो पंचपाड़ा प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य अधर में लटक जाएगा. 

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