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तुर्किए को S-400 रखने की वजह से F-35 नहीं दे रहा अमेरिका; फिर भारत के लिए 'स्पेशल' छूट क्यों?

Turkiye और US दोनों ही देश Nato Allies भी हैं. फिर भी अमेरिका ने कहा है कि अगर F-35 चाहिए तो S-400 हटाओ. लेकिन India के पास S-400 होते हुए भी अमेरिका ने भारत पर CAATSA Sanctions नहीं लगाए हैं.

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अमेरिका ने तु्र्किए से कहा है कि वो S-400 और इ-35 में से किसी एक को चुन ले (PHOTO- Lockheed Martin, AFP)

'हम भारत को अरबों डॉलर के हथियार देंगे. और आखिरकार F-35 फाइटर जेट्स देने का रास्ता भी बनाया जा रहा है.' प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान प्रेसिडेंट डॉनल्ड ट्रंप ने साझा प्रेस कांफ्रेंस में ये बयान दिया था. अब एक दूसरे बयान पर चलते हैं; 'अमेरिकी कानून के अनुसार, F-35 प्रोग्राम में वापस आने के लिए तुर्किए को अब S-400 सिस्टम को ऑपरेट नहीं करना होगा और न ही अपने पास रखना होगा.' ये बयान है तुर्किए में अमेरिका के राजदूत टॉम बैरक (Ambassador Tom Barrack) का. आप कहेंगे ऐसा क्यों भई, तुर्किए तो अमेरिका का नाटो पार्टनर भी है. फिर उस पर ऐसी शर्त क्यों? और भारत जिस पर अमेरिका टैरिफ पर टैरिफ लगाए हुए है, उसे S-400 रखने के बावजूद F-35 की पेशकश. तो समझते हैं कि अमेरिका ने भारत के लिए F-35 के दरवाजे क्यों खुले रखे हैं, जबकि तुर्किए पर शर्त लगा दी है. 

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‘दुश्मन’ से लेन-देन पर अमेरिकी प्रतिबंध

अमेरिका की इस S-400 वाली शर्त की कहानी शुरू होती है 2017 से. अमेरिका ने CAATSA (Countering America's Adversaries Through Sanctions Act) नाम का एक कानून लागू किया. मकसद था ऐसे देशों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना जो रूस, नॉर्थ कोरिया और ईरान जैसे देशों से करीबी रिश्ते रखते हैं. इसमें कहा गया है कि जिन देशों का रूसी इंटेलिजेंस और मिलिट्री एजेंटों के साथ लेन-देन होगा, उन पर कम से कम पांच तरह के प्रतिबंध लगाए जाएंगे.

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कानून के मुताबिक आम लेन-देन पर प्रतिबंध नहीं लगेंगे, और किस पर प्रतिबंध लगेंगे, यह फैसला उस लेन-देन की व्याख्या पर निर्भर करेगा. यह उन कई छूटों या अपवादों में से एक है जिनका जिक्र किया गया है, जैसे कि लेन-देन से अमेरिका के रणनीतिक हितों पर असर न पड़े, यह उन गठबंधनों को खतरे में न डाले जिनका वह हिस्सा है. कानून की धारा 231 में 39 रूसी संस्थाओं को नोटिफाई किया गया है, जिसमें रोसोबोरोनएक्सपोर्ट (Rosoboronexport), सुखोई एविएशन, रशियन एयरक्राफ्ट कॉर्पोरेशन मिग जैसी सभी प्रमुख रक्षा कंपनियां शामिल हैं. इनके साथ लेन-देन करने पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं. अल्माज-एंटे ("Almaz-Antey) एयर एंड स्पेस डिफेंस कॉर्पोरेशन JSC, जिसने S-400 सिस्टम बनाया है, वो भी इस लिस्ट में शामिल है. यही वो कानून है जिसके कारण तुर्किए F-35 प्रोग्राम से बाहर था. क्योंकि उसने रूस से S-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदा है.

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S-400 एयर डिफेंस सिस्टम (PHOTO-X)
भारत को छूट क्यों?

अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने 14 जुलाई, 2022 को एक लेजिस्लेटिव अमेंडमेंट पास किया था. ये अमेंडमेंट रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदने के लिए भारत को CAATSA प्रतिबंधों से छूट देता है. भारतीय मूल के अमेरिकी कांग्रेसमैन रो खन्ना द्वारा तैयार और पेश किए गए इस अमेंडमेंट में बाइडेन प्रशासन से आग्रह किया गया था कि वे चीन जैसे हमलावरों को रोकने में मदद करने के लिए भारत को CAATSA से छूट देने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करें.

(यह भी पढ़ें: इंडिया ने F-35 नहीं खरीदा तो मुंह फुलाए बैठे हैं ट्रंप, लेकिन उसके सहयोगी भी F-35 पर भरोसा नहीं कर रहे)

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हालांकि भारत को औपचारिक तौर पर CAATSA से कोई छूट नहीं मिली है, लेकिन 2022 में पैस हुआ खास कानूनी संशोधन भारत को प्रति अमेरिका के भारत के प्रति रवैये को लचीला बनाता है. किसी खास लेन-देन पर प्रतिबंध लगाने या छूट देने का आखिरी फैसला अमेरिकी राष्ट्रपति उस लेन-देन की प्रवृत्ति के आधार पर ले सकते हैं.

Lockheed Martin F-35 Lightning II - Wikipedia
प्रेसिडेंट ट्रंप ने भारत को F-35 ऑफर कर रखा है (PHOTO-Lockheed Martin)
तुर्किए को सीधी चेतावनी?

अमेरिका और रूस में हमेशा ये होड़ लगी रहती है कि ‘सुपरपावर’ कौन बनेगा? अमेरिका अपनी आर्थिक ताकत का हर संभव इस्तेमाल रूस पर दबाव बनाने के लिए करता है. CAATSA इसी का उदाहरण है. तुर्किए को लेकर एंबेसडर टॉम बैरक का बयान ये दिखाता है कि अमेरिका अपने हितों को साधने के लिए अपने नाटो पार्टनर तक को S-400 का नाम लेकर ठेंगा दिखा सकता है. और चीन के खिलाफ एक पार्टनर के तौर पर भारत को बनाए रखने के लिए वो उसी S-400 को होते हुए भी खुले मंच से F-35 ऑफर कर सकता है.

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