CBI से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के फैसले पर टिप्पणी की है. दरअसल, हाईकोर्ट ने एक आरोपी की जमानत याचिका की सुनवाई 27 बार टाली थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में ऐसी देरी नहीं होनी चाहिए.
'27 बार किसी की जमानत पर सुनवाई को कैसे टाल सकते हैं?' सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है
CJI Gavai ने कहा कि किसी की जमानत याचिका पर सुनवाई को 27 बार कैसे टाला जा सकता है. Supreme Court ने इस मामले में Allahabad High Court में चल रही सुनवाई को बंद करते हुए याचिकाकर्ता को जमानत दे दी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, दो जजों वाली पीठ की अध्यक्षता कर रहे CJI बीआर गवई ने कहा,
व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामले में, हाईकोर्ट से ये अपेक्षा नहीं की जाती है कि वो मामले को लंबित रखे और 27 बार स्थगित करे.
हाईकोर्ट ने मुलजिम पर लगे आरोपों के नेचर और उस पर दर्ज 33 मामलों के लंबे आपराधिक इतिहास के आधार पर फैसला लिया था. इसी साल 20 मार्च को CBI वाले मामले को लेकर हाईकोर्ट ने कहा था,
ट्रायल कोर्ट के समक्ष शिकायतकर्ता का बयान दर्ज होने के बाद इस जमानत याचिका पर सुनवाई करना उचित होगा.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा कि ट्रायल कोर्ट अपनी प्रक्रिया में तेजी लाए. साथ ही ये भी निर्देश दिया गया कि दो महीने बाद बिना देरी किए इस मामले को हाईकोर्ट में फिर से लिस्ट किया जाए. इसमें ट्रायल कोर्ट की रिपोर्ट भी लगाई जाए.
इस बीच आरोपी लक्ष्य तंवर ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. 22 मई को इस मामले पर सुनवाई करते हुए CJI ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट जमानत की सुनवाई को 27 बार कैसे स्थगित कर सकता है.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आरोपी को जमानत दे दी और इस मामले को लेकर हाईकोर्ट की प्रोसीडिंग को बंद कर दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि वो सामान्य स्थिति में इस तरह से स्थगन आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार नहीं करते, लेकिन ये एक अपवाद था.
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आरोपी पर भारतीय दंड संहिता की धारा 419 (पहचान बदलकर धोखाधड़ी), 420 (धोखाधड़ी), 467 (जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज को असली बताना) और 120बी (आपराधिक साजिश) के अलावा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)(डी) और 13(2) के तहत आरोप लगाए गए हैं.
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