सुप्रीम कोर्ट ने परिवार के एक संस्था के तौर कमज़ोर होने पर चिंता जताई है. कोर्ट ने गुरुवार, 27 मार्च को कहा, “देश के लोग वसुधैव कुटुंबकम पर बात करते हैं. लेकिन अपने क़रीबी रिश्तेदारों के साथ एकजुट रहने में विफल हो जाते हैं.” यह टिप्पणी जस्टिस पंकज मित्तल और एस.वी.एन. भट्टी की बेंच ने की.
'वसुधैव कुटुंबकम की बात करते हैं और परिवार में एकता नहीं', SC को ऐसा क्यों कहना पड़ा?
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि देश के लोग वसुधैव कुटुंबकम पर बात करते हैं. लेकिन अपने क़रीबी रिश्तेदारों के साथ एकजुट रहने में विफल हो जाते हैं.

न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी बेटे को बेदखल करने से जुड़े एक मामले में की. अदालत ने कहा,
भारत में हम वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास करते हैं यानी पूरी धरती एक परिवार है. लेकिन आज हम अपने परिवार में भी एकता बनाए रखने में सक्षम नहीं हैं. दुनिया को एक परिवार कहना तो बहुत दूर की बात है. परिवार का कॉन्सेप्ट ही खत्म हो रहा है. हम एक व्यक्ति एक परिवार के कगार पर खड़े हैं.
न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक, समतोला देवी और उनके पति कल्लू मल के तीन बेटे और दो बेटियां हैं. सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इन्होंने अपने बड़े बेटे को घर के एक हिस्से से बेदखल करने की मांग की थी. माता-पिता और बेटों के बीच संबंध अच्छे नहीं थे.
अगस्त 2014 में पिता कल्लू मल ने SDM से शिकायत की थी. इसमें उन्होंने बड़े बेटे पर मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का आरोप लगाया था. इसके बाद मामला ट्रिब्यूनल पहुंचा. ट्रिब्यूनल ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए बेटे को बेदखल करने का आदेश दिया. इसके बाद बेटे ने राहत के लिए हाईकोर्ट में याचिका लगाई.
बेटे का तर्क था कि माता-पिता अपनी प्रॉपर्टी के कुछ हिस्से को किसी और के नाम कर चुके हैं तो वह उसे बेदखल नहीं कर सकते हैं. हाईकोर्ट ने बेटे को राहत देते हुए बेदखली को निरस्त कर दिया. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है.
वीडियो: MP High Court में जज के सामने भड़का वकील