प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से हर साल राजस्थान के अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर चादर चढ़ाई जाती है. अब इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है. इसमें पीएम मोदी के अजमेर शरीफ दरगाह पर चादर चढ़ाने पर रोक लगाने की भी मांग की गई है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि पारंपरिक तौर पर सरकार का लगातार अजमेर शरीफ को सम्मान देना 'असंवैधानिक' और 'मनमाना' है.
PM मोदी के अजमेर शरीफ पर चादर चढ़ाने से किसे दिक्कत? सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर
Supreme Court में एक याचिका में कहा गया कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को भारत सरकार के अलग-अलग महकमों से 'लगातार मिल रहा सरकारी सम्मान' परेशान करने वाला है. उनका तर्क है कि यह 'असंवैधानिक' और 'मनमाना' है.


सोमवार, 22 दिसंबर को भारत के चीफ जस्टिस (CJI) सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच के सामने इस याचिका पर तुरंत सुनवाई की अपील की गई. हालांकि, कोर्ट ने इस मामले को तुरंत लिस्ट करने से इनकार कर दिया. इसके बजाय कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को रजिस्ट्री के पास जाने के लिए कहा.
22 दिसंबर को ही अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू अजमेर पहुंचे. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर चादर चढ़ाई. रिजिजू ने X पर लिखा,
"ख्वाजा गरीब नवाज के 814वें उर्स के शुभ अवसर पर मुझे अजमेर की दरगाह शरीफ जाने और पवित्र मजार पर चादर चढ़ाने का सौभाग्य मिला.
मैंने सभी की शांति, सद्भाव और भलाई के लिए प्रार्थना की. ख्वाजा साहब का प्यार, करुणा और मानवता की निस्वार्थ सेवा का सतत संदेश हमारे साझा मूल्यों को रोशन करता रहेगा और एकता की भावना को मजबूत करेगा."
अब याचिका पर लौटते हैं. विश्व वैदिक सनातन संघ के जितेंद्र सिंह और हिंदू सेना के विष्णु गुप्ता ने यह याचिका दायर की. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने याचिका में कहा कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को भारत सरकार के अलग-अलग महकमों से 'लगातार मिल रहा सरकारी सम्मान' परेशान करने वाला है. उनका तर्क है कि यह ‘असंवैधानिक, मनमाना, ऐतिहासिक रूप से निराधार और भारत गणराज्य की संवैधानिक भावना, गरिमा और संप्रभुता के उलट’ है.
'PM नेहरू ने शुरू की परंपरा'
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि अजमेर दरगाह पर प्रधानमंत्री के चादर चढ़ाने की परंपरा देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1947 में शुरू की थी. उन्होंने कहा कि तब से यह परंपरा बिना किसी कानूनी या संवैधानिक आधार के जारी है.
उन्होंने दरगाह कमेटी, अजमेर बनाम सैयद हुसैन अली मामले में संवैधानिक पीठ के फैसले का भी हवाला दिया. इसमें कहा गया कि अजमेर दरगाह आर्टिकल 26 के तहत एक धार्मिक संप्रदाय नहीं है. याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि अजमेर दरगाह पर सरकार के प्रमुख का चादर चढ़ाना लोगों की इच्छा के खिलाफ है. उन्होंने पीएम मोदी से भी अजमेर दरगाह पर चादर ना चढ़ाने की गुजारिश की.
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