सुप्रीम कोर्ट ने एक कैदी की सज़ा को कम (Supreme Court commutes death penalty) कर दिया है. मृत्युदंड की सज़ा को कम करके उम्रकैद में बदल दिया है. कोर्ट ने शख़्स को ‘आदर्श कैदी’ (Model Prisoner) मानते हुए उसकी सज़ा कम की है. अदालत का मानना है कि जेल में रहने के दौरान उसका बर्ताव अच्छा था. इसी वजह से उसकी सज़ा कम की गई है. शख़्स को अपनी मानइनर बेटी के रेप और पत्नी सहित अपने चार बच्चों की हत्या का दोषी ठहराया गया था.
बेटी का रेप किया, पत्नी-बच्चों की हत्या... इस अपराधी ने जेल में जो किया, फांसी की सजा खत्म हो गई?
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की बेंच ने फांसी की सजा खत्म करने का फैसला सुनाया है.

बार ऐंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही थी. बेंच ने कहा कि अपराध क्रूर होने के बावजूद, जेल के दौरान उसके अच्छे बर्ताव को ध्यान में रखते हुए मृत्युदंड को सही नहीं माना जा सकता.
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तीन जजों की बेंच ने अपने फैसले में कहा,
दोषी का कोई पिछला इतिहास नहीं था. पिछले 16-17 सालों के दौरान जेल में उसका बर्ताव अच्छा था. मानसिक स्वास्थ्य में कठिनाई और एक आदर्श कैदी (Model Prisoner) की लगातार कोशिश जैसी बातों को ध्यान में रखते हुए हम पाते हैं कि मृत्युदंड सही नहीं होगा. इसलिए उसका मृत्युदंड हटा दिया जाता है.
बेंच ने आगे कहा, “अपराध की गंभीरता, मारे गए लोगों की संख्या, जिसमें से पांच में से चार उसके अपने बच्चे थे, को देखते हुए हमारा मानना है कि उसे रिहा नहीं किया जाना चाहिए. हम निर्देश देते हैं कि वह अपने बाकी दिन जेल में बिताए. अंतिम सांस तक खुद के द्वारा अंजाम दिए गए अपराधों का प्रायश्चित कर सके.”
दोषी कैदी का नाम रेजी कुमार है. मामला जुलाई 2008 का है. ट्रायल कोर्ट ने अपराध की क्रूरता, प्रकृति और परिवार को धोखा देने का हवाला देते हुए 2010 में उसे मौत की सज़ा सुनाई थी. केरल हाईकोर्ट ने 2014 में इस मामले को 'रेयर ऑफ रेयरेस्ट' मानते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. इसके बाद दोषी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जेल में अधिकारियों की ओर से सौंपी गई ज़िम्मेदारियां उसने बखूबी निभाईं. उसने साथी कैदियों की ज़मानत समेत कई अन्य कारणों के लिए 83 हज़ार रुपये से ज़्यादा का दान भी दिया. सर्वोच्च अदालत ने साइकोलॉजिकल रिपोर्ट को भी ध्यान में रखा. इनसे पता चला कि दोषी को बचपन में उपेक्षा, पारिवारिक अस्थिरता और मेंटल हेल्थ से जुड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था.
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