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'मुंह खोलने के लिए मजबूर न करें...' सुप्रीम कोर्ट में ED को चेतावनी के साथ नसीहत भी मिली

चीफ जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच MUDA घोटाला मामले में सुनवाई कर रही थी. ED हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी. लेकिन सर्वोच्च अदालत ने 21 जुलाई को ED की अपील खारिज कर दी.

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सुप्रीम कोर्ट ने 21 जुलाई को एक मामले की सुनवाई के दौरान की टिप्पणी. (फाइल फोटो)
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अनीषा माथुर

सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को सख्त लहजे में वॉर्निंग दी है. कोर्ट ने सोमवार 21 जुलाई को एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि राजनीतिक लड़ाइयां अदालत के बाहर लड़ी जानी चाहिए. बेंच ने ED से यह भी पूछा कि ऐसी लड़ाइयों के लिए ED का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है? कोर्ट ने कहा कि ED उन्हें और सख्त टिप्पणी करने के लिए मजबूर न करे. 

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इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाला मामले में सुनवाई कर रही थी. इस मामले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती आरोपी हैं. ED ने 7 मार्च को पूछताछ के लिए उन्हें समन जारी किया था, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया. इस आदेश को चुनौती देते हुए ED ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. लेकिन सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को सुनवाई के दौरान ED की अपील खारिज कर दी.

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 

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कृपया हमें मुंह खोलने के लिए मजबूर न करें. वरना हमें ED के बारे में कुछ कठोर टिप्पणियां करने पर मजबूर होना पड़ेगा. दुर्भाग्य से मुझे महाराष्ट्र के कुछ अनुभव हैं. अब आप देशभर में उसी किस्म हिंसा न फैलाएं. राजनीतिक लड़ाई मतदाताओं के सामने लड़ी जाए. इसके लिए आपका (ED) इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है?

इसके बाद अदालत ने याचिका खारिज कर दी. अदालत ने अर्जी खारिज करते हुए कहा,

हमें हाईकोर्ट की सिंगल जज की बेंच के फैसले में कोई दिक्कत नजर नहीं आती. तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए हम इसे (ED की अपील) खारिज करते हैं. कुछ कठोर टिप्पणियां करने से बचने के लिए हमें अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) का धन्यवाद करना चाहिए.

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वकीलों को समन पर ED को नसीहत

सोमवार के रोज़ सिर्फ एक यही मामला नहीं था जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने ED को आड़े हाथों लिया. अदालत में प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा सीनियर वकीलों को उनके क्लाइंट्स को दी गई कानूनी सलाह के लिए समन भेजने के मुद्दे भी उठा.

सीनियर वकील विकास सिंह ने बताया कि ईडी के समन से वकालत के पेशे पर गहरा असर पड़ सकता है. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कुछ देशों में जैसे तुर्किए और चीन में वकील के अधिकारों पर हमले किए गए. भारत में भी ऐसा न हो इसके लिए दिशा-निर्देश तय किए जाने चाहिए.

इस पर CJI गवई ने कहा, 

अगर वकील द्वारा दी गई कानूनी सलाह गलत भी हो तो उसे समन क्यों भेजा जा सकता है? यह वकील और क्लाइंट के बीच की गोपनीय बातचीत होती है. इसे सुरक्षित रखने की जरूरत है.

दूसरी तरफ सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ED के खिलाफ एक विचारधारा बनाई जा रही है. उनका कहना था कि राजनीतिक पार्टियां भी ऐसे मुद्दों पर नकारात्मक प्रचार कर रही हैं. इससे ED की छवि खराब हो रही है. लेकिन CJI ने साफ किया कि ED को वकीलों को समन भेजने से पहले अनुमति लेनी चाहिए.

वीडियो: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व CJI संजीव खन्ना की तारीफ कर जगदीप धनखड़ ने क्या इशारा किया?

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