सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के 50 से ज्यादा पूर्व जजों ने एक ओपन लेटर के जरिए अपने साथी पूर्व जजों को 'राजनीतिक बयान से बचने' की सलाह दी है. इस पत्र में भारत के दो पूर्व चीफ जस्टिस (CJI), जस्टिस पी सदाशिवम और जस्टिस रंजन गोगोई का भी नाम शामिल है. दरअसल, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में विपक्ष के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी सुदर्शन रेड्डी को ‘नक्सलवाद के समर्थक’ के रूप में पेश किया था. इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए 18 पूर्व जजों ने एक पत्र लिखा था और अमित शाह के बयान की आलोचना की थी.
उपराष्ट्रपति चुनाव: बी सुदर्शन रेड्डी पर दो धड़ों में बंटे पूर्व जज, एक-दूसरे को दे रहे नसीहत
पूर्व जजों ने अपने साथी पूर्व जजों को राजनीति से जुड़े बयान देने से बचने की सलाह दी है. पत्र में साफ तौर पर कहा गया कि जब एक पूर्व जज राजनीति में आता है, तो उसे अपना बचाव राजनीतिक दायरे में रहकर करना चाहिए.


अब मंगलवार, 26 अगस्त को एक और पत्र सामने आया है, जिसमें पूर्व जजों ने अपने साथी जजों को राजनीति से जुड़े बयान देने से बचने की सलाह दी है. इंडिया टुडे से जुड़े हिमांशु की रिपोर्ट के मुताबिक, इन जजों का कहना है कि न्यायपालिका को राजनीति से अलग रखा जाना चाहिए. पत्र में साफ तौर पर कहा गया कि जब एक पूर्व जज राजनीति में आता है, तो उसे अपना बचाव राजनीतिक दायरे में रहकर करना चाहिए.
जजों को ऐसी बयानबाजी से बचने की सलाह दी गई, जिससे न्यायपालिका की आजादी को खतरा हो. पत्र में लिखा है,
"हमारे एक रिटायर्ड साथी जज ने अपनी मर्जी से भारत के उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने का फैसला किया है. ऐसा करते हुए वे विपक्ष के समर्थित उम्मीदवार के रूप में सीधे राजनीतिक अखाड़े में आ चुके हैं. जब उन्होंने यह रास्ता चुना है, तो उन्हें अपनी उम्मीदवारी का बचाव अन्य किसी भी प्रत्याशी की तरह राजनीतिक बहस के दायरे में करना होगा. इसके उलट सुझाव देना लोकतांत्रिक विमर्श को दबाने और राजनीतिक सुविधा के लिए न्यायिक आजादी की आड़ लेने जैसा है."

इस पत्र में आगे लिखा है,
"किसी राजनीतिक उम्मीदवार की आलोचना से न्यायिक आजादी को कोई खतरा नहीं है. न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को असली नुकसान तब पहुंचता है, जब पूर्व जज बार-बार पक्षपातपूर्ण बयान देते हैं, जिससे यह लगता है कि संस्था (न्यायपालिका) खुद राजनीतिक लड़ाइयों से जुड़ी हुई है. इन हथकंडों के नतीजे में कुछ लोगों की गलती के कारण, जजों का बड़ा ग्रुप पक्षपात से भरे गुट के तौर पर पेश हो जाता है. यह ना तो सही है और ना ही भारत की न्यायपालिका या लोकतंत्र के लिए अच्छा है."
25 अगस्त को लिखे 18 पूर्व जजों ने साझा बयान में कहा था कि बड़े पद पर बैठे नेता की अदालत के फैसले की 'पूर्वाग्रहपूर्ण गलत व्याख्या' से जजों पर गलत असर होता है. इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता को भी खतरा हो सकता है. बयान में कहा गया कि सुदर्शन रेड्डी का फैसला किसी भी तरह से नक्सलवाद या उसकी विचारधारा का समर्थन नहीं करता है.
दूसरी तरफ रेड्डी ने अमित शाह पर पलटवार करते हुए कहा था कि यह फैसला उन्होंने नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था. उन्होंने कहा था कि अगर शाह ने पूरा फैसला पढ़ा होता तो वे संदर्भ समझ जाते.
गौरतलब है कि रिटायर्ड जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी और जस्टिस एसएस निज्जर की बेंच ने साल 2011 में 'सलवा जुडूम' मामले में फैसला दिया था. इस फैसले में माओवादी और उग्रवाद से निपटने के लिए आदिवासी युवाओं को विशेष पुलिस अधिकारियों के रूप में इस्तेमाल करना गैरकानूनी माना गया था.
वीडियो: अमेरिका ने भारत पर दोबारा क्यों लगाया टैरिफ? उप-राष्ट्रपति JD Vance ने बता दिया?