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'शादीशुदा महिला के साथ बनाए रिश्ते को रेप नहीं कहा जा सकता', पंजाब-हरियाणा HC का अहम आदेश

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ये साफतौर पर एक सहमति से बना रिश्ता था, जो बाद में खराब हो गया. यह रिश्ता तब तक चला जब तक महिला को यह पता नहीं चला कि आरोपी ने किसी और से शादी कर ली है.

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हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटा. (फाइल फोटो- इंडिया टुडे)

शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाए जाने के एक मामले पर हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का कहना है कि अगर कोई शादीशुदा महिला किसी पुरुष से शादी का झूठा वादा सुनकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाती है तो इसे रेप नहीं कहा जा सकता. कोर्ट ने इसे अनैतिकता और विवाह संस्था की अनदेखी बताया, न कि कानूनन अपराध.

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बार एंड बेंच में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, यह फैसला जस्टिस शालिनी सिंह नागपाल ने 20 अगस्त को एक मामले की सुनवाई के दौरान सुनाया. इस मामले में एक शादीशुदा महिला ने एक शख्स पर शादी का झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाया था. निचली अदालत ने आरोपी को 9 साल की सजा सुनाई थी. लेकिन हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया.

जस्टिस शालिनी सिंह नागपाल ने इसे सिर्फ व्यभिचार, अनैतिकता और विवाह संस्था की लापरवाही से की गई अवहेलना बताया है. इससे बलात्कार का मामला नहीं बनता. अदालत ने कहा, 

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“पीड़िता कोई भोली-भाली या नासमझ युवती नहीं थी, बल्कि दो बच्चों की मां और आरोपी से 10 साल बड़ी थी. वह खुद भी समझदार और परिपक्व थी. और उसे अपने फैसलों के परिणाम समझने की पूरी समझ थी.”

रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने आगे कहा, 

“जब एक पूरी तरह से परिपक्व शादीशुदा महिला, शादी के वादे पर यौन संबंध बनाने के लिए सहमति देती है और ऐसे काम में शामिल होती है तो यह सिर्फ अनैतिकता, अनैतिकता और विवाह संस्था की लापरवाही से अवहेलना का है. ऐसे में यह कहना कि वह झूठे वादे से गुमराह हुई, यह स्वीकार नहीं किया जा सकता.”

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इसके अलावा महिला ने दावा किया था कि वह अपने पति से तलाक लेने की प्रक्रिया में थी. लेकिन कोर्ट ने पाया कि यह दावा झूठा था. महिला ने यह भी माना कि वह अपने ससुराल में रह रही थी. उसने कभी भी अपने पति के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई या तलाक का केस दायर नहीं किया था. महिला का यह भी दावा था कि आरोपी ने उसके साथ 55-60 बार संबंध बनाए थे. लेकिन वह इसके लिए कोई तारीख या खास जानकारी नहीं दे पाई.

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ये साफतौर पर एक सहमति से बना रिश्ता था, जो बाद में खराब हो गया. यह रिश्ता तब तक चला जब तक महिला को यह पता नहीं चला कि आरोपी ने किसी और से शादी कर ली है. कोर्ट ने कहा कि इस तरह के रिश्ते को आपराधिक मामला बनाने और बदला लेने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.

कोर्ट ने ये भी माना कि अगर कोई वादा किया भी गया था तो वह कानून और समाज की नैतिकता के खिलाफ था. इसलिए कानूनी रूप से उसे लागू नहीं किया जा सकता. सुनवाई के दौरान महिला ने आरोपी की अपील पर कोई आपत्ति नहीं जताई क्योंकि दोनों के बीच समझौता हो चुका था. ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (रेप) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114-A लागू नहीं होती.

आखिर में कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया और निचली अदालत के फैसले को अस्थिर और गलत निष्कर्ष बताया.

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