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'ये चुनाव से ठीक पहले नहीं होना चाहिए', बिहार वोटर वेरिफिकेशन पर SC की टिप्पणी, आधार पर पूछा बड़ा सवाल

Bihar में हो रहे वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन पर Supreme Court ने कहा है कि ये तर्कसंगत है. हालांकि, इस प्रक्रिया के शुरू करने के समय पर कोर्ट ने चुनाव आयोग को फटकार लगाई है.

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वोटर लिस्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. (तस्वीर: इंडिया टुडे)

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि बिहार में हो रहा वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन (Bihar Voter List) तर्कसंगत है. चुनाव आयोग (ECI) के इस फैसले को शीर्ष अदालत में कई याचिकाओं के जरिए चुनौती दी गई थी. मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि ECI जो कर रहा है वो संविधान के तहत अनिवार्य है, ये प्रैक्टिकल है.

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हालांकि, कोर्ट ने इस पर सवाल उठाया कि बिहार विधानसभा चुनाव के कुछ महीनों पहले ही इसकी शुरुआत क्यों की गई. उन्होंने कहा कि इसे पहले ही शुरू करना चाहिए था. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

2025 के वोटर लिस्ट में पहले से मौजूद लोगों को इस पूरी प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ेगा. इस प्रकार वो आगामी चुनाव में मतदान के अपने अधिकार से वंचित हो सकते हैं. आपकी ये प्रक्रिया गलत नहीं है, लेकिन आपने (चुनाव के) कुछ महीने पहले ही इसकी शुरुआत क्यों की?

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कोर्ट ने कहा कि इस प्रक्रिया को आगामी विधानसभा चुनाव से क्यों जोड़ा जा रहा है. उन्होंने ECI से पूछा कि ये चुनावों से इतर क्यों नहीं हो सकता.

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील शंकरनारायणन ने इस प्रक्रिया को पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण बताया. उन्होंने स्पष्ट किया कि वो केवल इस वेरिफिकेशन के तरीके को चुनौती दे रहे हैं, चुनाव आयोग की शक्ति को नहीं. उन्होंने कहा,

वो कह रहे हैं कि 2003 से पहले आप नागरिक थे. 2003 के बाद, भले ही आपने पांच चुनावों में मतदान किया हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.

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आधार कार्ड के मुद्दे पर शुरू हुआ विवाद

विवाद का मुख्य कारण ये है कि नागरिकता की पुष्टि के लिए जिन 11 दस्तावेजों को मंजूरी मिली है, उनमें आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड को शामिल नहीं किया गया है. याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा,

पूरा देश आधार के पीछे पागल हो रहा है और चुनाव आयोग कहता है कि ये मान्य नहीं है.

सर्वोच्च न्यायालय ने भी आधार को स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची से बाहर रखने पर सवाल उठाया. इस पर चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि आधार को नागरिकता के प्रमाण के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. अदालत ने कहा कि ये एक अलग मुद्दा है और ये गृह मंत्रालय का विशेषाधिकार है, चुनाव आयोग का नहीं.

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भी अपनी बात रखी. सिब्बल ने कहा, 

वो (चुनाव आयोग) कौन होते हैं ये कहने वाले कि हम नागरिक हैं या नहीं. ये साबित करने का दायित्व उन पर है, हम पर नहीं. उनके पास ये कहने के लिए कोई आधार होना चाहिए कि मैं नागरिक नहीं हूं.

चुनाव आयोग ने और क्या कहा?

चुनाव आयोग ने कहा कि इस प्रक्रिया के बाद, वोटर लिस्ट को फाइनल रूप देने से पहले सर्वोच्च अदालत उस पर नजर डाल सकती है. उन्होंने आग्रह किया कि इस प्रक्रिया को न रोका जाए. ECI ने कहा,

प्रक्रिया पूरी होने दीजिए. उसके बाद माननीय सदस्य पूरी तस्वीर देख सकेंगे... हम इसे अंतिम रूप दिए जाने से पहले दिखाएंगे.

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इन लोगों ने ECI को दी थी चुनौती

लोकसभा सांसद महुआ मोइत्रा (तृणमूल कांग्रेस), राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा (राष्ट्रीय जनता दल), प्रमुख विपक्षी दलों के नेता - केसी वेणुगोपाल (कांग्रेस), सुप्रिया सुले (NCP-SP), डी राजा (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी), हरिंदर मलिक (समाजवादी पार्टी), अरविंद सावंत (शिवसेना यूबीटी), सरफराज अहमद (झारखंड मुक्ति मोर्चा), दीपांकर भट्टाचार्य (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम आदि की ओर से याचिकाएं दायर की गई थीं.

वीडियो: बिहार में चुनाव से पहले वोटर लिस्ट को लेकर हंगामा, राहुल-तेजस्वी के नेतृत्व में प्रदर्शन

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