सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 9 दिसंबर को सभी राज्यों को स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के काम में लगे बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) को पूरी सुरक्षा देने का निर्देश दिया. कोर्ट ने चेतावनी दी कि BLOs को धमकाने या उनके काम में बाधा डालने के किसी भी मामले को वह गंभीरता से लेगा.
सुप्रीम कोर्ट का आदेश: BLOs की सुरक्षा के लिए सख्त कार्रवाई, SIR के काम में कोई रुकावट बर्दाश्त नहीं
Supreme Court ने कहा कि Election Commission के काम में असहयोग एक गंभीर मुद्दा है. BLOs को पूरी सुरक्षा मिलनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि अगर चुनाव आयोग को BLOs की सुरक्षा के संबंध में राज्य के अधिकारियों या पुलिस से असहयोग की कोई शिकायत है, तो उसे सुप्रीम कोर्ट से संपर्क करना चाहिए.


सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी गैर-सरकारी संगठन (NGO) सनातनी संसद की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट वी. गिरी के उस आरोप के बाद आई, जिसमें उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में SIR के दौरान BLOs को धमकाया जा रहा है.
चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि यह केवल पश्चिम बंगाल के बारे में नहीं है, बल्कि सभी राज्यों के लिए है. चुनाव आयोग के काम में असहयोग एक गंभीर मुद्दा है. BLOs को पूरी सुरक्षा मिलनी चाहिए. कोर्ट ने कहा,
अगर चुनाव आयोग को BLOs की सुरक्षा के संबंध में राज्य के अधिकारियों या पुलिस से असहयोग की कोई शिकायत है, तो उसे सुप्रीम कोर्ट से संपर्क करना चाहिए. हम उचित आदेश पारित करेंगे.
चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने आगे कहा, हम BLOs की सुरक्षा के लिए कड़ी कार्रवाई करेंगे. उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए नहीं तो अराजकता फैलेगी. कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा है. और चुनाव आयोग को सभी राज्यों में स्थिति का आकलन करने और जरूरत पड़ने पर उचित निर्देश के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने को कहा.
सुप्रीम कोर्ट में BLOs के काम के बोझ और तनाव पर भी चर्चा हुई. कोर्ट ने 4 दिसंबर के अपने आदेश का उल्लेख किया, जिसमें राज्यों को निर्देश दिया गया था कि जो BLOs तनावग्रस्त हैं या स्वास्थ्य से जुड़ी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं, उन्हें SIR के काम से हटने की अनुमति दी जाए. चुनाव आयोग ने कहा कि एक BLO को 37 दिनों में अधिकतम 1,200 वोटर्स की गणना करनी होती है. यानी लगभग 35 वोटर्स प्रतिदिन. आयोग ने सवाल किया, क्या यह बहुत अधिक काम है? जस्टिस बागची ने कहा,
यह डेस्क जॉब नहीं है जहां 35 का कोटा आसानी से पूरा हो जाता है. एक BLO को घर-घर जाकर फॉर्म भरना होता है और फिर उसे अपलोड करना होता है. इसमें तनाव और शारीरिक थकान हो सकती है. हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जमीनी स्तर पर SIR बिना किसी रुकावट के हो.
जस्टिस बागची ने पश्चिम बंगाल में BLOs के खिलाफ धमकी के आरोपों को साबित करने के लिए सनातनी संसद द्वारा प्रस्तुत सामग्री पर भी सवाल उठाया. उन्होंने पूछा कि एकमात्र FIR के अलावा आरोपों की पुष्टि के लिए कोई दूसरा विश्वसनीय सबूत नहीं है. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या एक अकेली घटना के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह केवल पश्चिम बंगाल में हो रहा है, दूसरे राज्यों में नहीं? क्या यह एकतरफा बयानबाजी नहीं है? क्या सभी राज्यों की पुलिस को चुनाव आयोग के अधीन कर दिया जाना चाहिए?
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चुनाव आयोग के वकील ने बताया कि पश्चिम बंगाल के साथ-साथ तमिलनाडु और केरल में भी समस्याएं आ रही हैं, क्योंकि वहां की राज्य सरकारों ने SIR के प्रति सार्वजनिक तौर पर विरोध दर्ज कराया है.
वीडियो: SIR में लगे BLO की समस्याएं सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद होंगी कम?













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