सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने की जरूरत पर बल दिया है. कहा है कि मुफ्त राशन प्राप्त कर रहे प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार के अवसर बनाने की जरूरत है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने सवाल किया, 'मुफ्त में राशन कब तक दिया जा सकता है?'
"मुफ्त राशन कब तक... रोजगार के लिए काम क्यों नहीं", सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की ये टिप्पणी?
सुप्रीम कोर्ट ने 9 दिसंबर को ई-श्रम पोर्टल के तहत पंजीकृत '28 करोड़' प्रवासी श्रमिकों को राशन कार्ड देने से संबंधित एक मामले की सुनवाई की.

सुप्रीम कोर्ट ने 9 दिसंबर को ई-श्रम पोर्टल के तहत पंजीकृत '28 करोड़' प्रवासी श्रमिकों को राशन कार्ड देने से संबंधित एक मामले की सुनवाई की. सुनवाई के दौरान एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा कि ई-श्रम पोर्टल के तहत सभी पात्र लोगों को राशन उपलब्ध कराने के लिए कोर्ट द्वारा 6 आदेश पारित किए गए हैं.
उन्होंने विशेष रूप से जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अमानुल्लाह की बेंच ने 4 अक्टूबर को पारित आदेश का उल्लेख कर कहा,
'ऐसे सभी व्यक्ति जो पात्र हैं (नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट के तहत राशन कार्ड/खाद्यान्न के लिए हकदार हैं) और संबंधित राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा उनकी पहचान की गई है, उन्हें 19.11.2024 से पहले राशन कार्ड जारी किए जाने चाहिए.'
एडवोकेट भूषण ने बताया कि इस आदेश के बाद भारत सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने एक आवेदन दायर किया है, जिसमें मांग की गई है कि उसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (NFSA) द्वारा निर्धारित अधिकतम सीमा के अनुसार निर्देशों का सख्ती से पालन करने की अनुमति दी जाए. NFSA की धारा 9 के मुताबिक, शहरी आबादी के 50 प्रतिशत और ग्रामीण आबादी के 75 प्रतिशत लोगों को राशन कार्ड दिए जाने चाहिए.
प्रशांत भूषण का तर्क है कि NFSA में ऊपरी सीमा 2011 की जनगणना के आधार पर तय की गई है और अगर 2021 में जनगणना हो जाती, तो सैकड़ों अन्य लोग मुफ्त और रियायती राशन के लिए पात्र होते. प्रशांत भूषण के मुताबिक ई-श्रम पोर्टल पर 28 करोड़ लोग पंजीकृत थे, जिनमें से केंद्र सरकार ने पाया कि लगभग 8 करोड़ लोगों के पास राशन कार्ड नहीं है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक प्रशांत भूषण ने कहा,
“अगर आपने 2021 की जनगणना की होती, तो आप पाते कि 10 करोड़ और लोग कोटा के हकदार हैं... केंद्र कह रहा है, हम उन लोगों को राशन नहीं देंगे जो 50% और 75% के कोटे से आगे जाते हैं.”
ये मामला कोविड-19 महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों की समस्याओं पर कोर्ट द्वारा लिए गए स्वतः संज्ञान लेने के बाद आया.
इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी पेश हुए. प्रशांत भूषण की दलीलों पर ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत 81.35 करोड़ लोगों को मुफ्त या रियायती राशन दिया जा रहा है.
इस पर प्रशांत भूषण ने जवाब दिया कि भारत में इससे ज्यादा (81.35 करोड़ से ज्यादा) लोग बहुत गरीब हैं और उन्हें सब्सिडी वाले भोजन की जरूरत है. उन्होंने सवाल किया कि किस कानून के तहत केंद्र सरकार वैधानिक कोटे से बाहर के लोगों को सब्सिडी वाला राशन देने से इनकार कर सकती है. इसके साथ ही भूषण ने कहा कि कोविड महामारी के बाद गरीब लोगों की हालत और खराब हो गई है क्योंकि बेरोजगारी काफी बढ़ गई है.
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न्यूज एजेंसी PTI की रिपोर्ट के मुताबिक इस पर बेंच ने मौखिक टिप्पणी की,
"मुफ्त में राशन कब तक दिया जा सकता है? हम इन प्रवासी श्रमिकों के लिए नौकरी के अवसर, रोजगार और क्षमता निर्माण के लिए काम क्यों नहीं करते?"
एडवोकेट भूषण ने कहा कि शीर्ष अदालत ने समय-समय पर सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को प्रवासी श्रमिकों को राशन कार्ड जारी करने के निर्देश दिए हैं, ताकि वे केंद्र द्वारा दिए जाने वाले मुफ्त राशन का लाभ उठा सकें.
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा,
“यही समस्या है. जैसे ही हम राज्यों को निर्देश देंगे कि सभी प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त राशन दें, तो यहां कोई भी नहीं दिखाई देगा. वे भाग जाएंगे. लोगों को खुश करने के लिए, राज्य राशन कार्ड जारी कर सकते हैं क्योंकि वे अच्छी तरह जानते हैं कि मुफ्त राशन देने की जिम्मेदारी केंद्र की है.”
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि प्रवासी श्रमिकों के मामले में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 8 जनवरी, 2025 को होगी.
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