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पाकिस्तान के 'जिहादी जनरल' आसिम मुनीर की पूरी कहानी

सैयद आसिम मुनीर अहमद शाह का जन्म रावलपिंडी में हुआ. उनके पिता सैयद सरवर मुनीर एक स्कूल के शिक्षक थे और उनका परिवार विभाजन के बाद जालंधर से पाकिस्तान पहुंचा था. वे एक स्थानीय मस्जिद में जुमे की नमाज अदा करने वाले इमाम के तौर पर भी सेवाएं देते थे.

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पाकिस्तान आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर. (तस्वीर : इंडिया टुडे)

पाकिस्तान के फौज प्रमुख जनरल आसिम मुनीर न सिर्फ इन दिनों उपमहाद्वीप में छाए घने तूफानी बादलों के निशाने पर हैं, बल्कि वे खुद एक तूफान हैं. यह महज संयोग नहीं है कि वे उस वक्त पाकिस्तान की कुख्यात जासूसी एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस या ISI के मुखिया थे, जब उसने भीषण पुलवामा आतंकी हमले की साजिश रची थी, जिसमें 16 फरवरी, 2019 को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 40 जवान शहीद हो गए थे.

छह साल बाद, मुनीर अब एक मायने में पाकिस्तान के असली हुक्मरान हैं और एक बार फिर भारत के निशाने पर हैं. कथित तौर पर वे पहलगाम आतंकी हमले के मास्टरमाइंड हैं, जिसमें 22 अप्रैल को कश्मीर की अल्पाइन जन्नत में 25 सैलानियों और एक स्थानीय शख्स की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. मोदी सरकार घाटी में दो दशकों में आम नागरिकों के सबसे भीषण कत्लेआम का सैन्य जवाब देने की तैयारी कर रही है. इस दौरान उसे आसिम मुनीर की चालाकी को कमतर करके नहीं आंकना चाहिए.

अतीत में उन्हें कमतर आंकने वालों को बेहद मुश्किल सबक मिले हैं. उनमें एक इमरान खान भी हैं, जिन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के नाते 2018 में मुनीर को ISI प्रमुख बनावाया था, लेकिन महज नौ महीने बाद ही उन्हें बर्खास्त करना पड़ गया. उसकी वजह यह थी कि मुनीर ने खान की बीवी बुशरा बीबी के कथित भ्रष्टाचार की उनको खबर देने की हिमाकत की थी.

मुनीर शायद सबसे कम वक्त के लिए ISI प्रमुख होने का अपमान सह नहीं सके और उन्होंने खान को कभी माफ नहीं किया. वे जवाबी हमले के वक्त का इंतजार करते रहे. वह वक्त आया अप्रैल 2022 में, जब खान फौज के तैयार किए 'पार्लियामेंटरी तख्तापलट’ में हटा दिए गए. फिर खान के विरोधी सत्तारूढ़ गठबंधन की मदद से मुनीर उसी नवंबर में फौज के मुखिया बन गए. कुछ महीनों बाद मुनीर ने खान को भ्रष्टाचार के कई आरोपों में जेल भेज दिया, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री को इस साल की शुरुआत में 14 साल जेल की सजा सुनाई गई.

कुंडली आसिम मुनीर की

पहलगाम कत्लेआम के लिए पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने के वास्ते भारत की रणनीति के केंद्र में मुनीर की शख्सियत, दिमागी बनावट, ताकत और कमजोरियों को समझना जरूरी हो गया है. मुनीर पांच लाख जवानों वाली ताकतवर पाकिस्तानी फौज के कमांडर हैं, जो कि दुनिया की छठी सबसे बड़ी फौज है. उसके पास एटमी हथियार भी हैं और नियंत्रण रेखा पर भारतीय जवानों के बराबर तैनाती भी है.

नाम न बताने की छर्त पर एक जाने-माने एक्सपर्ट ने बताया,

'यह इजरायल बनाम हमास या अजरबैजान बनाम आर्मेनिया जैसा गैर-बराबरी की ताकतों के बीच युद्ध नहीं. यहां दो सबसे पेशेवर सेनाएं आमने-सामने हैं, जो बराबरी की ताकत रखती हैं और जिनके पास एटमी हथियार हैं. हम जो भी करेंगे, हमें उसकी जवाबी कार्रवाई की उम्मीद करनी चाहिए. जंग के बढ़ते दायरे पर काबू पाना आसान न होगा. मुनीर की हाल की कार्रवाइयों के मद्देनजर हमें अचानक और आश्चर्य के लिए तैयार रहना चाहिए, जिसमें कुछ शुरू करके हमें दोषी ठहराना भी हो सकता है.’’

मुनीर ऐसे विरले पाकिस्तानी जनरल हैं, जो ISI के प्रमुख और सैन्य खुफिया महानिदेशक भी रह चुके हैं, इसलिए उम्मीद यही है कि अपनी रणनीति की बारीकियों पर करीने से विचार किया होगा. यह भारत के सिंधु जल संधि (आइडब्ल्यूटी) को स्थगित करने के फैसले के जवाब में पाकिस्तान के 1972 के शिमला समझौते को फौरन निलंबित करने से स्पष्ट था.
युद्ध की स्थितियों से बखूबी वाकिफ एक दूसरे रणनीतिकार बताते हैं,

‘मुनीर ने पहले से ही सभी विकल्पों पर विचार किया होगा और वे कहीं ज्यादा सधे कदम बढ़ा रहे हैं. हमें उन्हें सावधानी से आंकने की जरूरत है, क्योंकि उनके पास व्यापक खुफिया और सैन्य कार्रवाइयों का अनुभव है. यह शतरंज की बाजी की तरह है, जिसमें हमें अपनी आकस्मिक योजनाओं और झटकों के साथ 10 चाल आगे सोचने की जरूरत होती है. इसलिए हमें तब तक उनके कदमों पर दोबारा विचार करते रहना होगा जब तक कि हमारे हाथ कम से कम कुछ जवाब न आ जाएं. विशेषज्ञों को मुनीर के रुख-रवैयों और बयानों के आधार पर उनकी विस्तृत दिमागी समझ को भी आंकने की जरूरत है.’

मुनीर के 17 महीने के कार्यकाल में ऐसे कई संकेत हैं जो यह दिखाते हैं कि वे सोच-समझकर जोखिम उठाने की ताकत रखते हैं. शुरुआत में उन्होंने खान की गिरफ्तारी पर फौज में अभूतपूर्व भीतरी असंतोष की वजह से कदम पीछे खींच लिए थे. उसके बाद मुनीर ने फौज पर अपनी पकड़ को सख्त हाथों से मजबूत किया. फौज में अपने विरोधियों को ठिकाने लगाकर उनकी जगह वफादारों को बैठाया.

तबसे वे अपना कद पाकिस्तान के फौजी हुक्मरान के पद से कहीं बड़ा करने में कामयाब हुए हैं और अब राजनैतिक सत्ता के सभी महकमों पर उनकी पकड़ मजबूत है. उसमें फौज की अगुआई में 'विशेष निवेश सुविधा परिषद’ के जरिए पाकिस्तान की संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था को दिशा देना भी शामिल है. मुनीर ने नेशनल एसेंबली में एक संशोधन पारित करवाकर सुप्रीम कोर्ट से भी इमरान समर्थकों को 'साफ’ कर दिया है. यही नहीं, एक और अभूतपूर्व संशोधन नेशनल एसेंबली से पारित करवाया गया, जिसके जरिए मुनीर के तीन साल के कार्यकाल को बढ़ाकर पांच साल कर दिया गया. इससे यह तय हो गया है कि उनके हाथ में 2027 तक देश की बागडोर रहेगी, और उनके कार्यकाल को आगे बढ़ाने के लिए कोई आयु सीमा नहीं रह गई है.

Modi cabinate
सख्त कार्रवाई की तैयारी नई दिल्ली में 29 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, NSA अजित डोभाल

अमेरिका स्थित दक्षिण एशियाई विश्लेषक माइकल कुगेलमैन कहते हैं,

''फौज की कमान मिलने के बाद मुनीर ने देश को जिस तरह से कई संकटों से बाहर निकाला, वह काबिलेगौर है. गहरी सियासी अस्थिरता थी, अर्थव्यवस्था ढहने के कगार पर थी, आतंकवाद फिर से पनप रहा था और फौज में आंतरिक असंतोष साफ-साफ सुलग रहा था. उन्होंने इन समस्याओं को दूसरों के मुकाबले बेहतर तरीके से संभाला है और हालात नियंत्रण में रखे. अपने काम को लेकर मुनीर पक्के इरादे वाले हैं और जिस तरह से उन्होंने अर्थव्यवस्था समेत कई अलग-अलग मामलों में खुद को जोड़ लिया है, उससे उनका भरपूर आत्मविश्वास ही दिखता है.’’

फौज प्रमुख ने भले अपनी स्थिति मजबूत कर ली है, लेकिन सुरक्षा के मोर्चे पर भी कई दिक्कतें उभरी हैं, खासकर हाल में बलूच विद्रोहियों ने जाफर एक्सप्रेस का अपहरण कर लिया था, जिससे उनकी और फौज की साख पर चोट पहुंची है. पाकिस्तान के युवाओं में भी असंतोष बढ़ रहा है, जो देश के मौजूदा हालात से नाराज हैं.

पाकिस्तानी फौज ने हमेशा देश की हुकूमत में बड़ी भूमिका निभाई है. देश अपने 77 वर्षों के वजूद में तीन अलग-अलग चरणों में 33 वर्षों तक मार्शल लॉ के अधीन रहा है. हालांकि, मुनीर हाल के दौर में सियासी तख्तापलट के बिना सबसे ताकतवर फौज प्रमुखों में से एक की तरह उभरे हैं.

वे जनरल जिया-उल-हक के बाद इस्लामी राष्ट्रवाद का आह्वान करने वाले और उसे फख्र के साथ अपने सीने पर धारण करने वाले पहले फौज प्रमुख हैं. असल में, उन्हें हाफिज-ए-कुरान होने का दुर्लभ गौरव प्राप्त है, ऐसा व्यक्ति जिसने कुरान को पूरा याद कर लिया है. वे जब सऊदी अरब में फौज के अताशे के रूप में तैनात थे, तो उन्होंने इसका इम्तिहान पास किया था. यह काबिलियत उन्हें अपने अब्बा सैयद सरवर से मिली थी, जो बंटवारे के बाद जालंधर से उस पार चले गए थे. रावलपिंडी में स्कूल शिक्षक सरवर ने स्थानीय मस्जिद में जुम्मे की तकरीर भी दी.

मुनीर की पढ़ाई भी फौज में कमीशन हासिल करने से पहले एक मदरसे में हुई थी, लेकिन उन्हें ज्यादा प्रतिष्ठित पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी के बजाय ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल (OTS) के जरिए फौज में भर्ती होना पड़ा. लेकिन इससे फौज के शीर्ष पदों पर उनकी तेज तरक्की रुकी नहीं. देश से बाहर काम करने वाली भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च ऐंड एनालिसिस विंग (RAW) के पूर्व विशेष सचिव तथा पाकिस्तान के विशेषज्ञ राणा बनर्जी कहते हैं,

''मुनीर के नाम में आसिम का मतलब है महान संकटमोचन. फौज प्रमुख में गहरी मजहबी भावना भी है. वे खासकर अपने विरोधियों को सजा दिलाने में भी सावधानी बरतते हैं, लेकिन वे दूरदर्शी नहीं हैं और उनकी सोच घिसी-पिटी, दकियानूसी भी है. हाल ही उन्होंने तीखा भारत विरोधी लहजा अपनाया है.’’

विरोधाभासी शख्सियत

यह रवैया उनके मेंटॉर और हाल ही रिटायर हुए जनरल कमर जावेद बाजवा के एकदम उलट है, जो 2016 से 2022 के बीच फौज प्रमुख थे. जब इमरान खान प्रधानमंत्री थे, तब बाजवा सियासत में पर्दे के पीछे एक ताकतवर खिलाड़ी थे और नीतियों के मामले में फौज के दबदबे को बनाए रखते थे. उनके कार्यकाल में ही पुलवामा हमलों को अधिकृत किया गया था और भारत ने पाकिस्तान के भीतर आतंकी शिविरों पर वायु सेना के हमलों के साथ जवाब दिया था.

1971 के युद्ध के बाद भारत का यह पहला ऐसा हवाई हमला था, जिसने प्रतिरोध का एक नया मानक बनाया. उससे पाकिस्तान को संकेत दिया गया कि इस तरह के सीमा पार आतंकी हमलों का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा. हालांकि, अपने कार्यकाल के आखिरी दौर में बाजवा ने पाकिस्तान का फोकस भू-राजनैतिक टकराव से हटाकर अर्थव्यवस्था की ओर किया.

उन्होंने दलील दी कि देश को क्षेत्रीय संपर्क, व्यापार और विकास साझेदारी आगे बढ़ाकर घरेलू आर्थिक मोर्चे पर मजबूत करना चाहिए, यहां तक कि भारत के साथ भी सहयोग बढ़ाना चाहिए. गंभीरता दिखाने के लिए उन्होंने फरवरी 2021 में नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम समझौता किया, जो मुनीर के पहलगाम कत्लेआम की साजिश रचने और इस नाजुक युद्धविराम को नष्ट करने से पहले चार साल तक कायम रहा.

पूर्व भारतीय उच्चायुक्त अजय बिसारिया बताते हैं,''बाजवा अलग नजरिए के थे क्योंकि उनका मानना था कि फौज के बनाए जिहादी ढांचे से पाकिस्तान का हित नहीं सध रहा. वे फोकस आर्थिक विकास पर करना चाहते थे. वे बदलाव चाहते थे, लेकिन उनकी फितरत धीरे-धीरे आगे बढ़ने की थी: इस बीच, उनके और इमरान के बीच खटास पैदा हो गई और वे अपना धैर्य खो बैठे.’’

बाजवा के नजरिए के उलट मुनीर पाकिस्तान को 'सख्त देश’ की तरह देखना चाहते हैं, जो आंतरिक और बाहरी दोनों तरह के खतरों के खिलाफ मजबूती से खड़ा हो और तगड़ी फौजी कार्रवाई के लिए हमेशा तैयार रहे.

बनर्जी कहते हैं कि मुनीर ने देश में फौज और सियासी हलकों के असंतोष को सख्ती से कुचल दिया. बाहरी मोर्चे पर, खासकर अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के मामले में सख्त और दो-टूक नजरिया अपनाया. अफगानिस्तान ने पाकिस्तान में इस्लामी अमीरात के लिए जोर देने वाले बागी गुट तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को शरण देना और वित्त पोषण करना जारी रखा, तो 2023 के अंत में मुनीर ने पाकिस्तान में 1,50,000 से ज्यादा अफगान शरणार्थियों को निष्कासित कर दिया. इस तरह मुनीर ने अफगानिस्तान में सत्तारूढ़ तालिबान के साथ सीधे टकराव मोल ले लिया.

ईरान के साथ यूं तो व्यावहारिक रिश्ता बना हुआ है, लेकिन पाकिस्तान की शह वाले ईरानी प्रतिरोध समूह पर तेहरान के ड्रोन हमले के बाद मुनीर ने ईरानी क्षेत्र में मिसाइल दागने में जरा भी देर नहीं की. मुनीर ने आजाद बलूचिस्तान की मांग कर रहे बलूच विद्रोही गुटों पर भी कड़ी कार्रवाई की. यह दीगर बात है कि वे फिर संगठित हो गए हैं और हाल ही में जवाबी हमला किया है, जिससे पाकिस्तानी फौज की किसी को भी नहीं बख्शने की रणनीति को झटका लगा है.

मुनीर ने लगातार बलूच और TTP बागियों को भड़काने के लिए भारत को दोषी ठहराया है और पाकिस्तान में कई विशेषज्ञ उसे पहलगाम हमले की दलील की तरह पेश करते हैं. भारत के लिए ये साफ संकेत हैं कि मुनीर ऐसा सख्त दुश्मन है, जो तब भी जवाबी कार्रवाई करने से नहीं डरता, जब उसके पत्ते ढेर हो जाते हैं.

जिहादी मोड़

भारत के लिए चिंता के और भी कई कारण हैं. मुनीर फौज की कमान संभालने के बाद से मजहबी राष्ट्रवाद की झंडाबरदारी पर और भी ज्यादा मुखर हो चुके हैं. उन्होंने सेना की भूमिका को इस तरह परिभाषित किया है कि वह केवल पाकिस्तान की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षक ही नहीं है बल्कि वैचारिक मोर्चे पर सुरक्षा को पुख्ता करना भी उसकी जिम्मेदारी है. अगस्त 2023 में पेशावर में एक आदिवासी जिरगा (परिषद) में मुनीर ने ऐलान किया,

''दुनिया की कोई भी ताकत पाकिस्तान का कुछ बिगाड़ नहीं सकती. हम अल्लाह की राह पर जिहाद कर रहे हैं और कामयाबी हमें जरूर मिलेगी. पाकिस्तानी फौज का मकसद और उसूल शहीद या गाजी (जिहादी) बनना ही है.’’

उनके इस ऐलान के बाद उन्हें 'जिहादी जनरल’ कहा जाने लगा था. हालांकि, भारतीय विशेषज्ञों को जिस बात ने सबसे ज्यादा परेशान किया, वह थी पहलगाम हमले से छह दिन पूर्व यानी 16 अप्रैल को प्रवासी पाकिस्तानियों के सम्मेलन में की गई मुनीर की टिप्पणी. उसमें उन्होंने दो-राष्ट्र सिद्धांत को दोहराया. लेकिन 'हिंदुओं-मुसलमानों के बीच फर्क’ को लेकर उन्होंने जिस लहजे में यह बात कही, उसमें आक्रामकता जनरल जिया के बयानों से भी कहीं ज्यादा थी.

जैसा, पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त टी.सी.ए. राघवन कहते हैं, ''भारत पर मुनीर की सोच दो-राष्ट्र सिद्धांत पर ही अटकी है और उनका मानना है कि उनके देश और उस पर भारत के पूरी तरह हावी होने के बीच पाकिस्तानी फौज ही ढाल बनकर खड़ी है. उनका मानना है कि कश्मीर पाकिस्तान निर्माण का एक अधूरा एजेंडा है. यह उनके देश के साथ बड़ा अन्याय था और इसे ठीक करना फौज की जिक्वमेदारी है.’’

विशेषज्ञों का मानना है कि पहलगाम हमलों को मुनीर की शह मिलने के कई कारण हैं. इनमें एक घरेलू मोर्चे पर अस्थिरता है, जो असंतोष और विद्रोह दबाने में नाकामी से उभरी है. इसने फौज की साख में बट्टा लगाया है. इस आंच की तपिश घटाने और अवाम के बड़े वर्ग को लामबंद करने के इरादे से ही मुनीर ने भारत को लेकर बड़ा दांव खेला है. और ऐसा लगता है कि पाकिस्तानी जनरल अपने मंसूबे में कुछ हद तक कामयाब भी हो गए.

खासकर भारत की तरफ से सिंधु जल संधि को निलंबित करने की घोषणा किए जाने के कारण, क्योंकि इससे सियासी मोर्चे पर सबसे ताकतवर और सबसे ज्यादा आबादी वाले पंजाब और सिंध प्रांतों में जलापूर्ति प्रभावित होने का अंदेशा है. बिसारिया कहते हैं,''मुनीर अपनी ताकत बढ़ाकर सर्वोच्च नेता के तौर पर उभरना चाहते हैं. उदार और शहरी वर्ग उनके खिलाफ है, इसलिए वे दक्षिणपंथियों को अपने पाले में लाने की कोशिश में जुटे हैं.

नाम न बताने की शर्त पर एक पाकिस्तानी एक्सपर्ट ने इस बात पर सहमति जताई. वे कहते हैं,

''यहां दो पाकिस्तान हैं. एक जिहादी मानसिकता वाला जो भारत के प्रति लगातार वैमनस्य के सहारे एक पाकिस्तानी पहचान बनाना चाहता है. दूसरा, गैर-जिहादी पाकिस्तान है जिसका मानना है कि एक संघ के तौर पर भी उसका अस्तित्व बचा रह सकता है और यह व्यापार के लिए अफगानिस्तान, ईरान, भारत और चीन के साथ सामान्य संबंध कायम करने का पक्षधर है. मुनीर जिहादी पाकिस्तान को लुभाना चाहते हैं जिसकी कुल आबादी में करीब 60 फीसद हिस्सेदारी है. इसलिए, भारत को गैर-जिहादी पाकिस्तान को साधने की जरूरत है.’’

रणनीतिकारों की नजर में इस हमले में मुनीर की संलिप्तता की एक और वजह हो सकती है. दरअसल यह धारणा बनती जा रही थी कि भारत कश्मीर मुद्दे पर उसकी गेंद पाले से बाहर करता जा रहा है. अनुच्छेद 370 के रद्द होने, निर्वाचित सरकार का गठन और पर्यटकों की वापसी से घाटी में रौनक लौटने से पाकिस्तान को यह डर सता रहा था कि हालात सामान्य होना नई दिल्ली के पक्ष में रहेगा. इसलिए घाटी में शांति और स्थिरता को तोड़ने के लिए आम लोगों पर मुंबई 2008 जैसा हमला करना गया. विशेषज्ञ पहलगाम हमले को ISI के के-2 अभियान के तौर पर भी देखते हैं, यानी कश्मीर और खालिस्तानपरस्त आतंकियों को मिलकर दो सीमावर्ती राज्यों को अस्थिर करने की एक बड़ी साजिश.

कश्मीर में दहशतगर्दों को जमकर प्रशिक्षण मिला है और वे आधुनिक हथियारों से लैस भी हैं. वे संभवत: चीनी स्रोत से हासिल नवीनतम संचार तकनीक भी इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसे इंटरसेप्ट और डिक्रिप्ट करना भारत के लिए मुश्किल रहा है. साथ मिलकर बेहतर कमान और नियंत्रण के साथ इन दहशतगर्दों ने पहले तो पिछले साल अक्तूबर में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जम्मू क्षेत्र में हमला और फिर घाटी को अपना निशाना बनाया. पंजाब में भी आतंकवादी बड़ी मात्रा में नशीले पदार्थ पहुंचाने में जुटे हैं और राज्य में अराजकता फैलाने के लिए गैंगवार को भी बढ़ावा दे रहे हैं.

अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने की कोशिश

कुगलमैन इस बात को रेखांकित करते हैं कि मुनीर भारत के खिलाफ जिहाद के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने की हर मुमकिन कोशिश में जुटे हैं. यही वजह है कि डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर काबिज होते ही उन्होंने पाकिस्तान में पनाह लिए ISIएस-के के कमांडर मोहम्मद शरीफुल्लाह को गिरफ्तार कर अमेरिका के हवाले कर दिया, ताकि उनके साथ नजदीकियां बढ़ाई जा सकें.

शरीफुल्लाह अबे गेट बम विस्फोट का साजिशकर्ता था जिसमें अफगानिस्तान छोड़कर लौट रहे 13 अमेरिकी सैनिक  मारे गए थे. ट्रंप ने अमेरिका की मदद के लिए पाकिस्तान का आभार जताया. गिरफ्तारी सार्वजनिक होने से ठीक एक हफ्ते पहले अमेरिका ने पाकिस्तान को F-16 विमानों के रखरखाव के लिए 39.7 करोड़ डॉलर जारी किए थे. पहलगाम हमले के बाद ट्रंप ने आतंकी घटना की निंदा की लेकिन इसके लिए पाकिस्तान को दोषी नहीं ठहराया.

उन्होंने यह भी कहा कि भारत के साथ संघर्ष 'हजारों वर्षों से चल रहा रहा है’ और दोनों देशों को इसे मिलकर सुलझाना चाहिए. चीन और तुर्किये तो आतंकी हमले की स्वतंत्र जांच के पाकिस्तान के सुर को ही अलाप रहे हैं. पिछले दो वर्षों से पाकिस्तान दोनों देशों से अत्याधुनिक सैन्य उपकरण खरीद रहा है. यही नहीं, चीन अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक युद्धक सामग्री भी मुहैया करा रहा है. देश की खस्ता आर्थिक स्थिति के बावजूद मुनीर ने सैन्य आधुनिकीकरण कार्यक्रम की शुरुआत की, और इसी के बलबूते भारत से मुकाबला करने का दम भर रहा है.

बहरहाल, मुनीर अब तो उकसावे की सारी हदें पार चुके हैं. पहलगाम में पर्यटकों को निशाना बनाए जाने से कश्मीर में पाकिस्तान की संभावनाएं कमजोर हुई हैं क्योंकि पहली बार घाटी के लोग एकजुट होकर हमलों के विरोध में खड़े हैं और इसकी निंदा कर रहे हैं. इसका सीधा असर पर्यटन पर पड़ा है, जो पिछले दो साल से फल-फूल रहा था और आम कश्मीरियों की आजीविका को पटरी पर लाने में अहम भूमिका निभा रहा था. खुद पाकिस्तान के विशेषज्ञ भी मुनीर के इन कृत्यों से हताश हैं.

उनका कहना है कि भारत के साथ सैन्य संघर्ष आखिरी विकल्प है और मुल्क को इस दिशा में कोई कदम नहीं बढ़ाना चाहिए, खासकर ऐसे समय पर जब वह आर्थिक संकट से उबर भी नहीं पाया है. उनका मानना है कि मुनीर का ISI वाला अतीत उसे गैर-जिम्मेदार बनाता है. ऐसा शायद ही कभी होता है जब जासूसी एजेंसी का प्रमुख फौज की कमान संभाले. जैसा कि एक विशेषज्ञ ने कहा,

''बात आग भड़काने की हो तो मुनीर से बेहतर कौन होगा. लेकिन पाकिस्तानी फौज अतीत में इसकी गवाह रही है कि अगर आप चिंगारी सुलगाने वाले को कमान सौंपते हैं तो आग से बचने के लिए उस पर कड़ी नजर रखने की भी जरूरत होती है.’’

पाकिस्तान में तो ऐसा कोई है नहीं जो मुनीर के मंसूबों को रोकने में सक्षम हो, इसलिए उन्हें उनकी गलतियों की सजा देने की जिम्मेदारी मोदी सरकार पर आती है. बिसारिया कहते हैं,

''पाकिस्तान जानता है कि उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. उसे भारत के साथ जंग के लिए तैयार रहना चाहिए. भविष्य में ऐसे दुस्साहसिक कृत्यों पर रोक लगाने का एकमात्र तरीका यही है.’’

भारत ने यह साफ कर दिया है कि पाकिस्तान को उसके किए की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. वह भारत के साथ लड़ाई के लिए तैयार रहे. भविष्य में वह ऐसी कोई गुस्ताखी या नापाक हरकत न कर पाए इसके लिए सबक जरूरी है. मुनीर ने एक चुनी हुई सियासी सत्ता का तख्तापलट किए बिना पाकिस्तान के सबसे ताकतवर फौजी हुक्मरानों की कतार में खुद को खड़ा कर लिया है. पाकिस्तान के विशेषज्ञों का मानना है कि मुनीर का ISI वाला अतीत उन्हें गैर-जिम्मेदार और सख्त बनाता है. भारत के साथ जंग तो आखिरी विकल्प है, पर यह मुल्क के लिए किसी भी हाल में सही नहीं.

पाकिस्तान के विशेषज्ञों का मानना है कि मुनीर का ISI वाला अतीत उन्हें गैर-जिम्मेदार और सख्त बनाता है. भारत के साथ जंग तो आखिरी विकल्प है, पर यह मुल्क के लिए किसी भी हाल में सही नहीं.

लगातार बुलंदी छूता जनरल
Asim Munir
तैयारी का जायजा जनरल मुनीर दिसंबर 2022 में नियंत्रण रेखा की एक फौजी चौकी पर लगातार बुलंदी छूता जनरल

पैदाइश और परिवार

सैयद आसिम मुनीर अहमद शाह का जन्म रावलपिंडी में हुआ. उनके पिता सैयद सरवर मुनीर एक स्कूल के शिक्षक थे और उनका परिवार विभाजन के बाद जालंधर से पाकिस्तान पहुंचा था. वे एक स्थानीय मस्जिद में जुमे की नमाज अदा करने वाले इमाम के तौर पर भी सेवाएं देते थे. मुनीर रावलपिंडी के मरकजी मदरसा दार-उल-तजवीज से पढ़े. फिर कुरान पूरी तरह से याद करने की वजह से उन्हें हाफिज-ए-कुरान की उपाधि प्रदान की गई.

फौज में शामिल

मुनीर ने पाकिस्तान मिलिटरी एकेडमी में तो दाखिला नहीं लिया पर वे 1986 में मंगला में ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल (OTS) के माध्यम से फौज में आए. उम्दा प्रदर्शन वाले कैडेट (फोटो में) के तौर पर स्वॉर्ड ऑफ ऑनर जीता. पहली पोस्टिंग फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट की 23वीं बटालियन में मिली जो एक इन्फैंट्री इकाई थी.

पढ़ाई-लिखाई

फौज में रहते हुए मुनीर ने ऊंची तालीम हासिल की और इस्लामाबाद की नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी (एनडीयू) से सार्वजनिक नीति और रणनीतिक सुरक्षा प्रबंधन में एम.फिल. किया. जापान के फूजी स्कूल और मलेशिया के आर्म्ड फोर्सेस स्टाफ कॉलेज की कमान ऐंड स्टाफ पोस्ट से भी पेशेवर पाठ्यक्रम पूरा किया.

प्रमुख कमान और स्टाफ पोस्ट

●2015 में बतौर ब्रिगेडियर पीओके में गिलगिट-बाल्टिस्तान में जवानों के नेतृत्व के लिए उत्तरी क्षेत्रों के फोर्स कमांडर नियुक्त, जहां अपनी सैन्य क्षमताओं से एक्स कोर कमांडर कमर जावेद बाजवा को काफी प्रभावित किया.
●2017 में बाजवा ने फौज प्रमुख बनने के बाद मुनीर को पहले तो फौज खुफिया महानिदेशक बनाया और एक साल बाद ही पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ का महानिदेशक बना दिया.
●2019 में उनकी प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ पटरी नहीं बैठी तो आइएसआइ प्रमुख के पद से हटा दिए गए. बताया जाता है कि उन्होंने इमरान को उनकी बीवी बुशरा बीबी से जुड़े भ्रष्टाचार के बारे में खुफिया जानकारी दी थी.
●उसके बाद दो साल के लिए गुजरांवाला में तीसवीं कोर की कमान मिली. 2021 में उन्हें सैन्य मुख्यालय में क्वार्टरमास्टर जनरल बनाया गया.

सेना प्रमुख बनाने पर विवाद

नवंबर 2022 में बाजवा के रिटायर होने के समय मुनीर सबसे वरिष्ठ सेवारत जनरल थे. लेकिन बाजवा की तरफ से एसेंबली में अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से हटाने की साजिश रचने के बाद इमरान खान ने मुनीर के चयन का विरोध करते हुए प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उसके बाद शरीफ भाइयों बतौर प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और उन पर वरदहस्त रखने वाले नवाज शरीफ ने मुनीर का समर्थन किया. ऐसे में इमरान के प्रति वफादार रहे राष्ट्रपति राशिद अल्वी को फौज प्रमुख के तौर पर मुनीर की नियुक्ति के लिए मजबूर होना पड़ा.

कार्यकाल बढ़ा

मुनीर को अपने कार्यकाल के तीन साल पूरे करने के बाद नवंबर 2025 में रिटायर होना था. लेकिन नवंबर 2024 में पाकिस्तानी नेशनल एसेंबली ने एक विधेयक पारित किया, जिसमें तीनों सेनाओं के प्रमुखों का कार्यकाल तीन से बढ़ाकर पांच साल कर दिया गया. नए कानून के तहत चार सितारा वाले प्रमुख के लिए ऊपरी आयु सीमा हटा दी गई. इस तरह मुनीर का मौजूदा कार्यकाल 2027 में पूरा होगा और इसके बाद भी वे फिर इस पद पर नियुक्ति के काबिल बने रहेंगे.

निजी शौक और फितरत

मुनीर फिटनेस के दीवाने हैं और सामरिक विषयों पर आधारित किताबें पढ़ने का भी काफी शौक रखते हैं. कहा जाता है कि उन्हें अपने कामकाज और अनुशासन में कोई कोताही बर्दाश्त नहीं और मजहब में भी गहरी आस्था रखते हैं. उन्हें व्यावहारिक माना जाता है लेकिन विरोधियों से मुकाबले के लिए हमेशा तैयार रहते हैं.

पाकिस्तानी फौज के जनरल: किसमें  रहा कितना दम

पाकिस्तान में अब तक फौज प्रमुख का ओहदा संभालने वालों के दबदबे का एक  तुलनात्मक विश्लेषण

जनरल अयूब खान (1958–1969)

जनरल अयूब खान
(1958–1969)
जनरल अयूब खान

राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा का तक्चता पलटने के बाद तत्कालीन फौज प्रमुख अयूब ने पहली बार पाकिस्तान में मार्शल लॉ लगाया. उन्होंने सत्ता की पूरी कमान अपने हाथ में रखी और 'सीमित लोकतंत्र’ के साथ सेक्युलर आधुनिकीकरण को बढ़ावा दिया. उन्होंने सरकार नियंत्रित पूंजीवाद की हिमायत की, जिससे विकास ने तो गति पकड़ी लेकिन गैर-बराबरी बढ़ गई. अयूब ने 1965 में भारत के खिलाफ जंग छेड़ी, जिसका कोई नतीजा नहीं निकला.

जनरल जिया-उल-हक (1977–1988)

जनरल जिया-उल-हक 
(1977–1988)
जनरल जिया-उल-हक

जुल्फिकार अली भुट्टो के तख्तापलट के बाद जनरल जिया ने पाकिस्तानी सियासत और फौज को इस्लामी जामा पहनाया और इस्लामी कानूनों का शासन स्थापित किया. उनका आर्थिक मॉडल अमेरिका और सऊदी अरब से मिलने वाली विदेशी सहायता पर निर्भर था. उन्होंने अफगानिस्तान पर सोवियत घुसपैठ नाकाम करने के लिए जिहादियों को पालना-पोसना शुरू किया. भारत के साथ संबंध शत्रुतापूर्ण बने रहे.

जनरल परवेज मुशर्रफ (1999–2008)

जनरल परवेज मुशर्रफ
जनरल परवेज मुशर्रफ 

करगिल युद्ध के मास्टरमाइंड रहे जनरल मुशर्रफ प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को हटाकर सत्ता में आए और पाकिस्तान की इस्लामी पहचान को उदार बनाने की कोशिश की. विदेशी निवेश और निजीकरण के जरिए पाकिस्तान में विकास दर बढ़ाई लेकिन संरचनात्मक सुधार में नाकाम रहे. 9/11 के बाद पाकिस्तान को अमेरिका का प्रमुख सहयोगी बनाया और भारत के साथ शांति का हाथ बढ़ाने की कोशिश भी की.

जनरल अशफाक परवेज कयानी (2007–2013)

जनरल अशफाक परवेज कयानी
जनरल अशफाक परवेज कयानी

मुंबई में 2008 के हमले के दौरान पाकिस्तानी फौज की कमान कयानी के हाथ में ही थी. लेकिन उसके बाद उन्होंने फौज को खुलकर राजनीति से दूर किया और पर्दे के पीछे सक्रियता को बढ़ावा दिया. उन्होंने फौज को पेशेवर बनाने पर ध्यान दिया और भारत पर फोकस के बजाय स्वात घाटी और वजीरिस्तान में आतंकवाद-रोधी कार्रवाई पर जोर दिया.

जनरल कमर जावेद बाजवा (2916–2022)

जनरल कमर जावेद बाजवा
जनरल कमर जावेद बाजवा

बाजवा ने 'भू-राजनीति के बजाय भू-अर्थशास्त्र’ वाला नजरिया अपनाया और इसे बढ़ावा देने के लिए स्थिरता और आर्थिक विकास की वकालत की. लेकिन चुनाव, न्यायपालिका और मीडिया में दखल देने वाली उनकी राजनैतिक इंजीनियरिंग ने फौज की साख खराब की. भारत के साथ शांति की पहल (2021 में नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम) और खाड़ी देशों से रिश्ते मजबूत किए.

जनरल आसिम मुनीर (2022– वर्तमान)

Asim Munir
जनरल आसिम मुनीर

इमरान और उनके समर्थकों का कड़ा विरोध झेलने के बाद आसिम मुनीर ने फौज का दबदबा फिर स्थापित किया. तमाम संकटों से निबटने के साथ पाकिस्तान के बारे में उनका नजरिया यही है कि यह एक सैन्यीकृत और केंद्रीकृत 'सख्त राज्य’ है. उन्होंने सेना में आर्थिक प्रबंधन को बढ़ावा दिया. वे उदार इस्लामी राष्ट्रवाद के पक्षधर हैं और भारत के प्रति उनका रुख स्पष्ट तौर पर वैमनस्य भरा ही रहा है.

(वरिष्ठ पत्रकार राज चेंगप्पा की ये स्टोरी इंडिया टुडे हिंदी मैगजीन में प्रकाशित हुई थी.)

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