इंसान बड़ा ही विचित्र जीव है. पहले इंसान ने हमला करने बंदूक बनाई, फिर उनसे बचने के लिए बुलेटप्रूफ जैकेट बनाई. ऐसे ही पहले फाइटर जेट बनाए, फिर उन्हें गिराने के लिए मिसाइल. और आज के समय में इंसान ने बैलिस्टिक मिसाइलें बनाई है जो न्यूक्लियर हमला तक करने में सक्षम हैं. यानी हथियार बनाना और उन्हें ध्यान में रखते हुए डिफेंसिव हथियार बनाना, एक निरंतर प्रक्रिया है. मॉडर्न जमाने के युद्ध को देखें तो आसमानी लड़ाई का रोल सबसे अहम है. इसे देखते हुए कई देशों ने अपने आसमान की रक्षा के लिए कई तरह के एयर डिफेंस सिस्टम (Air Defence System) का इस्तेमाल करते हैं. शुरुआती वॉरफेयर में विमानभेदी तोपें (Anti-Aircraft Guns) और फाइटर जेट्स ही वो जरिया थे जो आसमानी खतरों को रोक सकें. आगे चलकर जैसे-जैसे हथियार उन्नत होते गए इनकी जगह मॉडर्न रडार से लैस एयर डिफेंस सिस्टम्स ने ले ली. और इसी कड़ी में रूस ने अपने सबसे उन्नत S-500 एयर डिफेंस सिस्टम (S-500 Prometheus) को जंग के मैदान में उतार दिया है. बीते दिनों रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (President Putin) की भारत यात्रा के दौरान खबरें आईं थीं कि भारत-रूस में इस सिस्टम की डील हो सकती है. लेकिन ये डील नहीं हुई. कारण बताया गया कि भारत अभी पुराने S-400 की बाकी बैटरीज की डिलीवरी का इंतजार कर रहा है. तो समझते हैं क्या है ये सिस्टम, और क्या है इसके नाम के पीछे की कहानी.
सैटेलाइट्स को भी मार गिरा सकती है रूस की S-500? अब दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा
S-500 को मुख्य तौर पर इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल्स यानी ICBMs को रोकने के लिए बनाया गया है. 600 किलोमीटर की रेंज में ये किसी भी ICBM का पता लगाकर उसे मार गिराने में सक्षम है. साथ ही 500 किलोमीटर के दायरे में ये हाइपरसॉनिक क्रूज मिसाइल्स और स्टेल्थ एयरक्राफ्ट्स का पता लगा लेता है. दूरी के मामले में ये सिस्टम अमेरिका के THAAD, Patriot और ATACMS से बेहतर है.
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जैसे S-400 को Triumf नाम दिया गया है, वैसे ही S-500 को Prometheus नाम दिया गया है. और ये शब्द आया है ग्रीक माइथोलॉजी से. ग्रीक माइथोलॉजी में प्रॉमेथियस नाम के एक देवता हुए जिन्हें God of Fire यानी आग का देवता कहा गया. प्रॉमेथियस को इंसानी सभ्यता के संघर्ष का प्रतीक माना गया है. साथ ही उन्हें ह्यूमन आर्ट्स एंड साइंस का भी जनक माना जाता है. कहा जाता है कि प्रॉमेथियस ने ओलंपियन देवताओं से आग चुराई और उसे इंसानों को सौंप दिया. प्रॉमेथियस द्वारा दी हुई इस आग को ही तकनीक, जानकारी और इंसानी सभ्यता का प्रतीक माना जाता है. इन्हीं देवता प्रॉमेथियस के नाम पर रूस के एयर डिफेंस का नामकरण हुआ है.

इस सिस्टम को मुख्य तौर पर इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल्स यानी ICBMs को रोकने के लिए बनाया गया है. 600 किलोमीटर की रेंज में ये किसी भी ICBM का पता लगाकर उसे मार गिराने में सक्षम है. साथ ही 500 किलोमीटर के दायरे में ये हाइपरसॉनिक क्रूज मिसाइल्स और स्टेल्थ एयरक्राफ्ट्स का पता लगा लेता है. दूरी के मामले में ये सिस्टम अमेरिका के THAAD, Patriot और ATACMS से बेहतर है. S-500 एक साथ Mach 20 (1 Mach में 1234.8 किलोमीटर प्रति घंटा) की रफ्तार से आ रहे 10 बैलिस्टिक/हाइपरसॉनिक टारगेट्स को इंगेज करने में सक्षम है.

साथ ही जो तकनीक इसे दुश्मन के लिए और भी खतरनाक बनाती है, वो है इसकी सैटेलाइट्स को नेस्तनाबूद करने की क्षमता. S-500 जमीन से 200 किलोमीटर की ऊंचाई तक अपने टारगेट को तबाह कर सकता है. यानी ये पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbits-LEO) में मौजूद सैटेलाइट्स को मार गिराने के काबिल है. दावा है कि इस सिस्टम का रिस्पॉन्स टाइम मात्र 4 सेकंड है. यानी टारगेट मिलने पर ये मात्र 4 सेकंड में उसे रोकने के लिए मिसाइल लॉन्च कर सकता है. रूस ने पहले से ही S-500 को क्रीमिया के मोर्चे पर डिप्लॉय किया हुआ था, लेकिन अब इसे यूक्रेन के मोर्चे पर जंग में उतार दिया गया है. इस सिस्टम के 5 हिस्से हैं जिन्हें एक साथ जोड़ने पर ये पूरे S-500 सिस्टम का रूप लेते हैं. इस सिस्टम में क्या-क्या है, इसे भी समझ लेते हैं.
कमांड पोस्ट वाहन-CPV (Command Post Vehicle)S-500 में 55K6MA CPV वाहन का इस्तेमाल किया जाता है. कमांड पोस्ट वो जगह होती है जहां इस बैटरी को ऑपरेट करने वाली यूनिट बैठती है. इसे पूरे S-500 सिस्टम का दिल कहा जाता है. टारगेट को एंगेज करना , टारगेट को सेलेक्ट करना, उसकी रफ्तार,ऊंचाई को ट्रैक करने के सारे काम इसी पोस्ट पर किये जाते हैं. साथ ही मिसाइल दागनी है या नहीं, ये फैसला इसी कमांड पोस्ट में बैठे अधिकारी लेते हैं.
रडारS-500 में लगे रडार का नाम 91N6A(M) है. पर इसे इसके निकनेम Big Bird के नाम से ख्याति प्राप्त है. दावा है कि ये रडार एक साथ 10 खतरों को एंगेज कर सकता है. इस रडार की वजह से ही S-500 के लिए टारगेट को समय रहते ढूंढना आसान हो जाता है. इसके अलावा भी इसमें टारगेट को इंगेज करने के लिए कई और रडार जैसे मल्टीमोड इंगेजमेंट रडार, एक्युजिशन रडार आदि लगे हैं. एक साथ कई टारगेट्स को पहचानने और उनपर हमला करने में इनका रोल अहम होता है.
टारगेट की स्पीड, उनका नेचर (एयरक्राफ्ट या मिसाइल) और उनकी दूरी के हिसाब से ये रडार पता लगाकर कमांड पोस्ट को ये बताते हैं कि एयरक्राफ्ट या मिसाइल को उन तक पहुंचने में कितना टाइम लगेगा. इन्हीं रडार्स की बदौलत ये सिस्टम 600 किलोमीटर की दूरी पर ही टारगेट को इंटरसेप्ट कर लेता है. 600 किलोमीटर की दूरी से पता चलने पर कमांड पोस्ट में बैठे कमांडर को फैसला लेने के लिए कुछ समय मिल जाता है.
ये वो हिस्सा है जिससे फाइनल हमला यानी मिसाइल लॉन्च की जाती है. इसे एक वाहन पर लगाया जाता है जिसे 77P6 Self Propelled Transporter Erector Launcher (TEL) नाम दिया गया है. इसमें मिसाइल लॉन्च करने के लिए दो ट्यूब्स हैं. S-400 के मुकाबले इसके मिसाल की साइलो लंबी है. वजह है इससे लॉन्च की जाने वाली मिसाइल्स का साइज़ पहले के S-400 मुकाबले काफ़ी बड़ा है. मिसाइल लॉन्चर यूनिट को एक 8X8/10X10 के वाहन पर लगाया जाता है.
8X8/10X10 का मतलब वाहन में जितने भी 8 या 10 चक्के होते हैं, सभी में इंजन की पावर जाती है. इससे किसी भी तरह के इलाके में भारी-भरकम S-500 सिस्टम से लैस ये वापन आसानी से चल सकता है. हम और आप जो गाड़ियां चलाते हैं. उनमें अधितकर या तो आगे के 2 चक्के या पीछे के 2 चक्कों में इंजन की पावर जाती है. पर मिलिट्री के वाहनों में सभी चक्के इंजन से कनेक्टेड होते हैं. ये खासियत इन भारी-भरकम सिस्टम्स को लादकर कहीं भी, किसी भी तरह के रास्ते पर चल सकता है.

S-500 में टारगेट की रफ्तार और ऊंचाई के हिसाब से कई तरह की मिसाइल्स का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें इस्तेमाल होने वाली 40N6M मिसाइल्स को एयरक्राफट्स और क्रूज मिसाइल्स को रोकने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इनकी रेंज 400 किलोमीटर है. सॉलिड फ्यूल का इस्तेमाल कर ये मिसाइल्स Mach 9 की रफ्तार तक जा सकती है. दावा है कि इसकी सटीकता 95 प्रतिशत है.
दूसरी मिसाइल जो S-500 में इस्तेमाल होती है, वो है 77N6 और 77N6-N1 मिसाइल. ये लॉन्ग रेंज मिसाइल्स होती हैं जो 500 से 600 किलोमीटर की दूरी तक टारगेट पर हमला करने में सक्षम हैं. इन दोनों मिसाइल्स के वॉरहेड में एक खास तरीके के हथियार 'इनर्ट वॉरहेड' को फिट किया जाता है जो इसे न्यूक्लियर हमले को रोकने में सक्षम बनाते हैं. इनकी 5 से 7 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार इन्हें हाइपरसॉनिक रफ्तार से आ रही मिसाइल्स को रोकने में प्रभावी बनाती है.

आपने अगर बैटमैन सीरीज़ की मूवीज देखी हैं तो आपको एक सीन याद दिलाते हैं. इसमें बैटमैन हॉन्ग-कॉन्ग जाकर लाओ नामक एक मुजरिम को पकड़ कर लाता है. अब चूंकि लाओ को जहाज से लाना था इसलिए ब्रूस वेन यानी बैटमैन ने ऐसे पायलट्स को हायर किया जो रडार से बचकर प्लेन उड़ाने में माहिर थे. अगर बैटमैन के पास ऐसे जहाज होते जो स्टेल्थ तकनीक से लैस होते तो पायलट हायर करने का खर्च बच जाता. पर वो ब्रूस वेन था इसलिए उसे पैसे की कमी नहीं थी. किसी देश को अगर किसी दुश्मन देश में चुपके से घुसना हो, जासूसी करनी हो तो उसे चाहिए ऐसी तकनीक जिससे कितना भी उड़ो, कोई देख न पाए. और यही आवश्यकता जननी बनी स्टेल्थ तकनीक के आविष्कार की.
किसी जहाज को डिटेक्ट करने के लिए रडार का इस्तेमाल किया जाता है. रडार एक सिम्पल कॉन्सेप्ट पर काम करता है. इस कान्सेप्ट को इंसानों से काफ़ी पहले चमगादड़ इस्तेमाल कर रहे हैं. रडार दरअसल लगातार हवा में या पानी में तरंगें छोड़ता है. अगर ये तरंगें किसी चीज से टकराती हैं तो रडार अपने ऑपरेटर को बताता है कि ये आगे क्या है? उसका आकार क्या है? वो चीज कितनी बड़ी है? और किस तरह की चीज है? पर स्टेल्थ तकनीक इस रडार के साथ कर देती है एक प्रैंक.
अगर आपने गौर से देखा हो तो अधिकतर जहाज गोलाकार टाइप के शेप में दिखते हैं जबकि स्टेल्थ जहाजों में सतह एकदम फ्लैट होती है. साथ ही इसके कोने भी काफी तीखे या शार्प होते हैं. इन कोनों और सतह की वजह से ये जहाज आसानी से रडार की तरंगों को दूसरी दिशा में भेज देते हैं. इसके अलावा स्टेल्थ तकनीक से लैस जहाज रडार की तरंगों को सोख लेते हैं. इन जहाजों पर एक ऐसा मैटेरियल इस्तेमाल किया जाता है जो रडार की तरंगों को सोखने की क्षमता रखता है. सोखने के बाद ये जहाज गर्मी के रूप में उन तरंगों को वापस निकाल देते हैं.
दुनिया में फिलहाल कई विमान ऐसे हैं जो स्टेल्थ तकनीक से लैस हैं. अमेरिका का F-35 lightning, F-22 Raptor,B-2 Spirit Bomber; चीन का Chengdu J-20, J-35 और रूस के Sukhoi Su-57 और Sukhoi Su-75 Checkmate इनमें प्रमुख हैं. रूस के S-500 एयर डिफेंस सिस्टम रडार से बचने में माहिर इन विमानों को भी ढूंढने और उन्हें तबाह करने में सक्षम है. इसमें लगा 91N6A(M) रडार स्टेल्थ विमानों को भी लोकेट कर लेता है. अमेरिका दुनिया भर में स्टेल्थ तकनीक में अग्रणी माना जाता है. ऐसे में रूस ने अमेरिकन जहाजों को ध्यान में रख कर S-500 एयर डिफेंस सिस्टम को बनाया है.
भारत को एक्सपोर्ट21 दिसंबर 2021 को फाइनेंशियल टाइम्स में एक रिपोर्ट छपी थी. इस रिपोर्ट में कहा गया कि लंबे समय से रूस का सामरिक पार्टनर होने के नाते, सबसे पहले भारत को S-500 एयर डिफेंस सिस्टम एक्सपोर्ट किया जा सकता है. फाइनेंशियल टाइम्स ने मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया तत्कालीन रूसी डिप्टी प्रधानमंत्री यूरी बोरिसॉव ने संकेत दिए हैं कि भारत वो देश है जो S-500 का पहला खरीददार बन सकता है. बाद में 2025 में प्रेसिडेंट पुतिन की भारत यात्रा के दौरान भी इसकी खूब चर्चा हुई. लेकिन डील पर बात आगे नहीं बढ़ सकी. वजह, भारत चाहता है कि पहले बचे हुए दो S-400 उसे मिल जाएं.
वीडियो: ऑपरेशन सिंदूर और भारत के S-400 खरीदने को लेकर रुसी राजदूत ने क्या कहा?
















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