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पाकिस्तान ने अमेरिका को ऑफर किया 'पासनी बंदरगाह'; भारत को काउंटर करने की चाल या पैसे कमाने का रास्ता?

Pasni में इस प्रस्तावित Port पर "Direct Basing" की अनुमति नहीं होगी. इसका मतलब है कि इसका उपयोग American Military Base के रूप में नहीं किया जा सकेगा.

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पाकिस्तान ने ग्वादर पोर्ट में चीन से इन्वेस्च करवाया है (PHOTO-X)

अमेरिका को रिझाने के लिए पाकिस्तान हर मुमकिन कोशिश कर रहा है. खासकर ऑपरेशन सिंदूर के बाद से पाकिस्तान ये पक्का करने में लगा है कि अगर अगली बार भारत ने हमला किया तो मदद के लिए एक बड़ा पार्टनर साथ हो. यहां तक कि पाक आर्मी चीफ फील्ड मार्शल आसिम मुनीर एक पूरी अटैची लेकर उन्हें ये दिखाने पहुंच गए कि पाकिस्तान में कितने 'रेयर मिनरल्स' हैं. अब खबरें हैं कि पाकिस्तान ने अमेरिका को एक बंदरगाह बना कर उसे ऑपरेट करने का ऑफर दिया है. ये पाकिस्तान के तटीय शहर पासनी का इलाका है. ये शहर ग्वादर के पोर्ट से काफी नजदीक है. साथ ही ये ईरान से भी काफी नजदीक है. तो समझते हैं, क्या है इस जगह की अहमियत, और अगर ये प्रोजेक्ट अस्तित्व में आता है तो भारत के लिए इसके क्या मायने होंगे?

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क्या बनाने जा रहा है अमेरिका? 

फाइनेंशियल टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट में सबसे पहले ये बात सामने आई कि पासनी पोर्ट के लिए अमेरिका और पाकिस्तान के बीच बात चल रही है. रिपोर्ट कहती है कि फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के कुछ 'खास' सलाहकार इस पोर्ट डील से जुड़ा उनका संदेश लेकर अमेरिका गए थे.जानकारी के मुताबिक इस पोर्ट को एक रेलवे लाइन से जोड़ा जाएगा जो पाकिस्तान के भीतर से ताम्बा और एंटीमनी जैसे खनिज लेकर आएगी. ये दोनों खनिज/मिनरल्स बैटरी, आग बुझाने वाले यन्त्रों और मिसाइल में इस्तेमाल किए जाते हैं. 

अनुमान है कि इस पोर्ट की लागत 1.2 बिलियन डॉलर (लगभग 10 हजार करोड़ रुपये) होगी. इसे पाकिस्तानी सरकार बनाएगी, लेकिन फंडिंग और सपोर्ट अमेरिका देगा. पासनी में इस प्रस्तावित पोर्ट पर "डायरेक्ट बेसिंग" की अनुमति नहीं होगी. यानी ये ऐसा पोर्ट होगा जहां बाहर से आया कोई कार्गो या कंटेनर सीधा अपने डेस्टिनेशन (गंतव्य) तक पहुंचेगा. इसमें कार्गो को किसी बीच की फैसिलिटी से होकर नहीं गुजरना होता. इसका मतलब है कि इसका उपयोग अमेरिकी मिलिट्री बेस के रूप में नहीं किया जा सकेगा. लेकिन फिर भी ये प्रस्तावित पोर्ट सामरिक महत्व का है. यह चीन द्वारा डेवलप किए गए ग्वादर पोर्ट से लगभग 112 किलोमीटर और ईरान-पाकिस्तान सीमा से 160 किलोमीटर दूर है. 

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पाकिस्तान ने रिपोर्ट को नकारा

फाइनेंशियल टाइम की रिपोर्ट के छपने के बाद दुनिया भर में सुर्खियां बनने लगीं. इसके बाद पाकिस्तान के एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने पाकिस्तान के सरकारी टीवी को बताया कि ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं रखा गया था. उन्होंने आगे कहा कि इस विचार पर कोई भी चर्चा पूरी तरह खोज और शोध तक सीमित थी. सरकारी चैनल ने नाम न छापने की शर्त पर उनके हवाले से कहा

निजी कंपनियों के साथ बातचीत खोज और शोध जैसी चीजों पर आधारित थी. ये कोई आधिकारिक पहल नहीं है. पासनी की सुरक्षा किसी विदेशी ताकत को सौंपने की कोई योजना नहीं है. सेना प्रमुख के पास किसी भी आधिकारिक पद पर सलाहकार नहीं होते. इन चीजों को सीधे उनसे जोड़ना भ्रामक और गलत है. सेना प्रमुख को ऐसे किसी भी प्रस्ताव से सीधे नहीं जोड़ा जाना चाहिए.

भारत की चिंता

पासनी में प्रस्तावित पोर्ट भारत के हितों के लिए भी चुनौती बन सकता है. वजह है इसकी ईरान के चाबहार पोर्ट से नजदीकी. ये जगह (पासनी) चाबहार से लगभग 160 किलोमीटर दूर है. अमेरिका की इस जगह पर मौजूदगी से पाकिस्तान हमेशा भारत पर निगरानी करने की कोशिश करेगा. साथ ही अरब सागर में भारत के वॉरशिप्स और नेवी पर भी उसे निगाह मिलने की संभावना है. ऐसा भले ही कहा जा रहा हो कि ये पोर्ट सिर्फ व्यापार के लिए है, लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि इस पोर्ट का इस्तेमाल पाकिस्तान अपने हिसाब से करने की कोशिश जरूर करेगा. इस पोर्ट को बनाने के पीछे पाकिस्तान अपने दो टारगेट्स को साधने की कोशिश करेगा. एक तो उसे भारत का डर कम होगा. दूसरा ये होगा कि आर्थिक तौर पर लचर हो चुकी उसकी अर्थव्यवस्था को कुछ बल मिलेगा. 

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वीडियो: दुनियादारी: चाबहार पोर्ट को लेकर अमेरिका ने भारत को दिया बड़ा झटका, क्या-क्या नुकसान होंगे?

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