राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि पहलगाम हमले के बाद हमें पता चला कि हमारा दोस्त कौन है और कौन दुश्मन. अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में हमें सजग रहना चाहिए. साथ ही उन्होंने नेपाल और बांग्लादेश में हुई हिंसा का जिक्र करते हुए कहा कि भारत में भी उपद्रवियों को चाहने वाली शक्तियां एक्टिव हैं.
'हिंदू राष्ट्रवाद एक सूत्र में पिरोता है... किसी खास समुदाय को भड़काना षड्यंत्र', बोले मोहन भागवत
Mohan Bhagwat Vijayadashami Speech: RSS चीफ मोहन भागवत ने संघ के 100वें स्थापना दिवस के मौके पर पहलगाम हमले से लेकर ट्रंप के टैरिफ और नेपाल-बांग्लादेश की हिंसा पर भी बात की. उन्होंने भारत को दूसरे देशों पर निर्भरता कम करने की भी सलाह दी. पढ़ें मोहन भागवत के भाषण की अहम बातें.


मोहन भागवत ने RSS के स्थापना दिवस के कार्यक्रम में बोलते हुए ये बातें कहीं. इस साल RSS की स्थापना के 100 साल भी पूरे हो गए हैं. इस अवसर पर संघ देशभर में कार्यक्रम आयोजित कर रहा है. इसका मुख्य कार्यक्रम 100वें स्थापना दिवस के मौके पर नागपुर के रेशमबाग में आयोजित किया जा रहा है. इसमें पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया है. समारोह को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने पहलगाम हमले का जिक्र किया. उन्होंने कहा,
पहलगाम में आतंकियों ने धर्म पूछकर हिंदुओं की हत्या की. हमारी सरकार और सेना ने मुंहतोड़ तरीके से उसका जवाब दिया. हमारी सेना का शौर्य पूरी दुनिया ने देखा. इस घटना से हमें दोस्त और दुश्मन का भी पता चला. हमें अंतरराष्ट्रीय संबंधों में चेतना रखनी होगी. यह घटना हमें सिखा गई कि भले ही हम सभी के प्रति मित्र भाव रखते हैं और रखेंगे, लेकिन अपनी सुरक्षा के प्रति और अधिक सजग, समर्थ रहना पड़ेगा.
मोहन भागवत ने नक्सलियों पर सरकार द्वारा की गई कठोर कार्रवाई पर भी बात की और कहा कि हमें उग्रवाद को पनपने नहीं देना है. उन्होंने भारत के पड़ोसी देशों में हुई हिंसा का भी जिक्र किया और कहा कि भारत को भड़काने के लिए शक्तियां काम कर रही हैं. संघ प्रमुख ने इस पर कहा,
अमेरिका के टैरिफ का भी जिक्रकुछ सालों से हमारे पड़ोसी देशों में बहुत उथल-पुथल मची है. श्रीलंका में, बांग्लादेश में और हाल ही में नेपाल में जिस प्रकार जन-आक्रोश से सत्ता का परिवर्तन हुआ वह हमारे लिए चिंताजनक है. अपने देश में तथा दुनिया में भी भारतवर्ष में इस प्रकार के उपद्रवों को चाहने वाली शक्तियां सक्रिय हैं.
मोहन भागवत ने अपने भाषण में अमेरिका के टैरिफ का भी जिक्र किया और जोर दिया कि हमें स्वदेशी और स्वावलंबन अपनाना होगा. उन्होंने कहा कि अमेरिका ने टैरिफ नीति उनके हित के लिए अपनाई होगी. विश्व एक दूसरे पर निर्भरता से चलता है. अकेला राष्ट्र अलग-थलग नहीं चल सकता. लेकिन यह निर्भरता मजबूरी में ना बदला जाए इसका भी ध्यान रखना होगा. हमें स्वदेशी और स्वावलंबन अपनाना पड़ेगा. इसका कोई विकल्प नहीं है.
मोहन भागवत ने अपने भाषण में हिन्दू समाज और राष्ट्रवाद का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा,
किसी खास समुदाय को भड़काना एक साजिश है: भागवतजो हम सबको एक सूत्र में पिरोता है, वह है राष्ट्रवाद है, जिसे हम हिंदू राष्ट्रवाद कहते हैं. हमारे लिए यही हिंदू राष्ट्रवाद है. हिंदवी, भारतीय और आर्य, ये सभी हिंदू के पर्यायवाची हैं. हमारे यहां राष्ट्र-राज्य की अवधारणा कभी नहीं रही. हमारी संस्कृति ही हमारे राष्ट्र का निर्माण करती है. राज्य आते-जाते रहते हैं, लेकिन राष्ट्र सदैव बना रहता है. यही हमारा प्राचीन हिंदू राष्ट्र है. हमने हर तरह के उत्थान-पतन देखे हैं, गुलामी देखी है, आज़ादी देखी है, लेकिन हम इन सबसे उबरकर आए हैं. इसीलिए एक सशक्त और एकजुट हिंदू समाज ही देश की सुरक्षा और अखंडता की गारंटी है. हिंदू समाज एक ज़िम्मेदार समाज है. हिंदू समाज हमेशा से 'हम और वे' की मानसिकता से मुक्त रहा है.
मोहन भागवत ने लोगों से सभी धर्मों का सम्मान करने की भी अपील की. उन्होंने कहा कि समाज में एक-दूसरे के प्रति हमारा व्यवहार सामंजस्यपूर्ण और सम्मानजनक होना चाहिए. हर किसी की अपनी मान्यताएं, प्रतीक और पूजा स्थल होते हैं. हमें मन, वचन या कर्म से इनका अनादर न करने का ध्यान रखना चाहिए. इसके लिए जागरूकता फैलानी होगी. उन्होंने कहा,
जब समाज में विभिन्न मान्यताओं वाले कई लोग एक साथ रहते हैं तो समय-समय पर कुछ शोर-शराबा और अराजकता हो सकती है. इसके बावजूद, यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि नियम-कानून और सद्भावना भंग न हो. कानून को अपने हाथ में लेना, सड़कों पर उतरना और हिंसा व गुंडागर्दी करना ठीक नहीं है. किसी खास समुदाय को भड़काने की कोशिश करना और शक्ति प्रदर्शन करना, ये सब पूर्व नियोजित षड्यंत्र हैं.
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मोहन भागवत ने कहा कि हमारी मूल व्यवस्थाएं विदेशी हमलों के लंबे दौर में नष्ट हो गईं. हमें उन्हें आज के हिसाब से अपने घरों में, शिक्षा प्रणाली में और समाज के विभिन्न हिस्सों में फिर से स्थापित करना होगा. हमें ऐसे व्यक्तियों को आगे लाना होगा, जो इस काम को कर सकें. इस विचार को मानसिक रूप से स्वीकार करने के बाद भी, उसे व्यवहार में लाने के लिए मन, आवाज और काम की आदतों में बदलाव लाना ज़रूरी है. इसके लिए एक व्यवस्था की आवश्यकता है. संघ शाखा ऐसी ही एक व्यवस्था है.
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