Sunny Sanskari Ki Tulsi Kumari
Director: Shashank Khaitan
Cast: Varun Dhawan, Janhvi Kapoor, Sanya Malhotra, Rohit Saraf
Rating: 2 Stars
मूवी रिव्यू - सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी
कैसी है वरुण धवन, जान्हवी कपूर, सान्या मल्होत्रा और रोहित सराफ की फिल्म 'सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी', जानने के लिए रिव्यू पढ़िए.


02 अक्टूबर के दिन वरुण धवन, जान्हवी कपूर, सान्या मल्होत्रा और रोहित सराफ की फिल्म ‘सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी’ रिलीज़ हुई है. इसे शशांक खैतान ने धर्मा प्रोडक्शन्स के लिए डायरेक्ट किया है. धर्मा के पास ‘बाहुबली’ के डिस्ट्रिब्यूशन राइट्स हैं. इसलिए ये फिल्म ‘बाहुबली’ के रेफ्रेन्स से ही शुरू होती है. वरुण धवन का किरदार सनी संस्कारी, अपनी गर्लफ्रेंड अनन्या को प्रपोज़ करना चाहता है. चूंकि अनन्या की फेवरेट फिल्म ‘बाहुबली’ है, इसलिए वो उस फिल्म का नकली-सा सेट तैयार करता है. प्रपोज़ करता है और रिजेक्ट हो जाता है. अनन्या बताती है कि उसकी शादी विक्रम सिंह से हो रही है.
अब सनी को मालूम पड़ता है कि विक्रम ने भी अपनी गर्लफ्रेंड तुलसी से हाल ही में ब्रेक अप किया है. वो तुलसी को साथ लेकर अनन्या और विक्रम की शादी तुड़वाने का प्लान बनाता है. ये कोई स्पॉइलर नहीं है. इतना या कहें तो इससे ज़्यादा मेकर्स ने ट्रेलर में दिखा दिया था. ‘सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी’ ऐसी फिल्म है जहां ट्रेलर देखकर आपको आइडिया लग जाता है कि ये कहानी किस नोट पर खत्म होने वाली है. इसलिए क्लाइमैक्स ऐसी फिल्मों का हाई पॉइंट नहीं. बल्कि किरदार उस क्लाइमैक्स तक कैसे पहुंचते हैं, उनके साथ क्या उठा-पटक होती है, ये फिल्म उस अनुभव या कहें तो फन को बेचने की कोशिश करती है. एक लाइन में कहा जाए तो ‘सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी’ उस अनुभव को बेचने में नाकाम साबित हुई है.

ये ऐसी फिल्म नहीं जहां आप दिमाग के तार जोड़कर लॉजिक निकालने की कोशिश करें. ये मानकर चलती है कि सिनेमाघर की कुर्सी पर बैठने से पहले आप लॉजिक को घर छोड़कर आए हैं. इनका दावा होता है कि हम आपको बस एंटरटेन करने की कोशिश कर रहे हैं. बिल्कुल किसी फास्ट फूड की तरह. वो आपको हेल्दी बनाने का दावा नहीं करता, लेकिन जीभ के चटकारों के लिए ख्याल अच्छा है. ये फिल्म न तो कोई हेल्दी डिश है, और न ही फास्ट फूड जितनी एंटरटेनिंग. ‘सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी’ एक फन नोट पर शुरू होती है. आप वरुण धवन को कभी शाहरुख तो कभी सलमान की मिमिक्री करते देखते हैं. भयंकर ज़हरीली किस्म की फनी कविताएं लिखते हुए पाते हैं. ये सभी एलिमेंट्स अपना काम करते हैं. आपको हंसाते हैं, एंटरटेन करते हैं.
लेकिन फिर फिल्म को अपना नेरेटिव याद आता है, कि कहानी को भी तो आगे बढ़ाना है. बस यहीं पर फिल्म बिखरने लगती है. कुछ फनी सीन्स के लिए आप फर्स्ट हाफ का हाथ पकड़कर रखते हैं, लेकिन सेकंड हाफ में ‘भुला देना मुझे, है अलविदा तुझे’ हो जाता है. उसकी सबसे बड़ी वजह है कन्फ़्यूज़न. सेकंड हाफ में फिल्म बुरी तरह से कन्फ्यूज़ हो जाती है. वो हर दिशा में फैलने लगती है. मछली की आंख के अलावा उसे सब कुछ दिखने लगता है. हर तरफ तीर मारने की कोशिश होती है. नतीजतन अंत में सब कुछ घायल हो जाता है. बस बचती है तो मछली की आंख. जैसे उसे मॉडर्न पहनावे और छोटी सोच पर कमेंट्री करनी है. सनी को तुलसी का मसीहा बनना है. उसके लिए आवाज़ उठानी है. सिर्फ इतना ही नहीं, सनी एक महिला किरदार को समझाता है कि कैसे उसे शादी के बाद अपनी पहचान बचाए रखनी चाहिए. ये सब अच्छी बातें हैं. लेकिन आउट ऑफ प्लेस महसूस होती हैं. इस पॉइंट तक आपके किरदार ने अपनी बातचीत, अपने बर्ताव से ऐसा कुछ नहीं दर्शाया. मगर फिर अचानक से वो ज़रूरी सोशल कमेंट्री करना लगता है.

फिल्म में एक सीन है जहां वरुण का किरदार सनी, जान्हवी के किरदार तुलसी को अपना प्लान समझा रहा होता है. वो कहता है कि मैं डांस करूंगा, और तुम अनन्या और विक्रम को जलाने के लिए सीटी बजाना. तब तुलसी उसे तपाक से जवाब देती है कि वो नॉन-स्ट्राइकर एंड पर नहीं है, वो भी बैटिंग करना जानती है. यानी उसे सनी के पीछे-पीछे चलने की ज़रूरत नहीं है, वो खुद भी अपने फैसले ले सकती है. ये सीन आता है और उसके बाद हर एक सीन में सनी के मुताबिक ही चीज़ें चलती हैं. तुलसी का किरदार बस वहां है. पिछले हफ्ते ‘होमबाउंड’ रिलीज़ हुई थी. जान्हवी भी उस फिल्म का हिस्सा थीं. उन्होंने ‘होमबाउंड’ में बेहतरीन काम किया. बस ‘सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी’ में उनके काम के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता.
लाउड किरदारों को बेचना बहुत मुश्किल है. वरुण ऐसा कर जाते हैं, मगर जान्हवी के केस में ऐसा नहीं हो पाता. अनन्या और विक्रम बने सान्या मल्होत्रा और रोहित सराफ ने भी ठीक काम किया है. स्क्रिप्ट को उनसे जितनी ज़रूरत थी, वो उतना डिलीवर कर देते हैं. ये स्क्रिप्ट के हिस्से का दोष था कि वो इन एक्टर्स को ठीक से इस्तेमाल नहीं कर सकी.
पुराने दिनों में कोई फिल्म आपको अपने पाश में जकड़ पा रही है या नहीं, उसे नापने के कई तरीके थे. आज के समय में एक असरदार तरीका है. अगर कोई फिल्म देखते वक्त आपको बार-बार अपना फोन चेक करने की ज़रूरत महसूस हो, तो मामला बंडल हो गया है. और ‘सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी’ देखते वक्त मुझे कई बार अपना फोन चेक करना पड़ा.
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