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कुकी उग्रवादी घर से मां सहित छह को ले गए, फिर मार दिया, इन दो बच्चों ने बताया कैसे बचाई जान

Manipur के जिरीबाम जिले के बोरोबेक्रा गांव के इन दो भाइयों ने सबकुछ अपने सामने होते देखा. पूरे मैतेई परिवार में ये दो ही जिंदा बचे हैं. कैसे दोनों ने खुद की जान बचाई, अब सब मीडिया को बताया है.

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अपहरण के बाद मारा गया परिवार. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)

मणिपुर (Manipur) के जिरीबाम जिले के मैतेई परिवार के 6 सदस्यों के अपहरण के बाद उनकी हत्या कर दी गई थी. अब इस परिवार के दो बच्चों ने घटना का आंखों देखा हाल बताया है. इनका कहना है कि इनके सामने ही कुकी उग्रवादियों ने उनके घर पर हमला किया था. इनमें से एक बच्चे की उम्र 12 साल और दूसरे की 14 साल है. दोनों भाइयों ने बताया कि उन्होंने एक खेत में छिपकर अपनी जान बचाई.

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NDTV की एक रिपोर्ट के मुताबिक जिरीबाम जिले के बोरोबेक्रा गांव के इन दो भाइयों में से बड़े भाई ने बताया कि उसने कुकी उग्रवादियों के आते ही भागकर अपनी जान बचाई. वहीं, छोटा भाई उस समय पड़ोस के दूसरे मकान में था और उस घर के लोगों के साथ खेत में छिपकर उसने अपनी जान बचाई. इनके मुताबिक 11 नवंबर को जब हमला हुआ था, उस समय घर पर 31 साल की उनकी मां तेलेम थोइबी, आठ साल की उनकी बहन, उनकी दादी, मौसी, मौसी के 10 महीने और 3 साल के दो बेटे मौजूद थे.

हमले में बचे 12 साल के लड़के ने बताया,

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'जब उग्रवादियों ने हमला किया तब मैं अपने पड़ोस में स्थित एक अंकल के घर पर था. इन अंकल का घर मेरे घर से चार घर छोड़कर है. जब गोलियों की आवाजें आईं तो मैं देखने के लिए उनके घर से बाहर निकला, तो कुकी उग्रवादी जोर-जोर से चीख रहे थे. सीआरपीएफ मेरे घर के आसपास मौजूद रहती है, लेकिन उस समय जवान लंच करने के लिए गए हुए थे. केवल एक सैनिक पीछे की ओर था. उग्रवादियों को देखकर मैं एक खेत में छिप गया था. मैं लेटा रहा उठा नहीं, क्योंकि मुझे गोली लगने का डर था.'

उसने आगे बताया,

'हमलावर दो गाड़ियों में आए थे, कुछ पैदल आए थे. उन्होंने हमारे घर को चारों तरफ से घेर लिया. कुकी हमलावरों में महिलाएं भी शामिल थीं. मैंने यह नहीं देखा कि कितनी महिलाएं थीं, लेकिन मैंने उनके चेहरे देखे... जब मैं अपने अंकल और आंटी के साथ खेत में छिपा था तो मैंने अपने घर से धुआं उठते देखा... मेरा बड़ा भाई भी मेरी मां के साथ था. लेकिन वो वह भागने में कामयाब रहा.'

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14 साल के दूसरे लड़के ने बताया कि हमलावरों ने गाडी से उतरते ही गोलियां चलानी शुरू कर दी थीं. कहा,

'उग्रवादी हथियारों से लैस थे, वे गाड़ियों से बाहर निकले और घर पर गोलीबारी शुरू कर दी. उनमें से दो आगे आये और उन्होंने दरवाजे पर लात मारी. उन्होंने हमें बाहर निकलने के लिए कहा, तो सभी लोग घर से बाहर निकले. दरवाजे पर कुल चार उग्रवादी खड़े थे. उनमें से एक ने मेरी बांह पकड़ ली और फिर मेरे चेहरे पर बंदूक की बट जोर से मारी.'

आगे बताया,

'मैं वहां से भागने में कामयाब रहा. उन्होंने कई राउंड फायरिंग की. फिर मेरे परिवार को बंदूक की नोक पर वहां से ले गए. मैं पास के एक खेत में छिप गया. फिर मैंने एक कैस्पर (बख्तरबंद वाहन) को बाजार की ओर, नदी के घाट की ओर, उनका पीछा करते हुए भी देखा.'

लड़के ने आगे कहा कि इस सफ़ेद कैस्पर पर भी फायरिंग की गई. इससे गाड़ी को नुकसान भी पहुंचा. मणिपुर में लोग आमतौर पर किसी भी बड़ी बख्तरबंद एसयूवी या ट्रक को "कैस्पर" कहते हैं, ये गाड़ियां उग्रवाद विरोधी अभियानों में सुरक्षाबलों के द्वारा इस्तेमाल की जाती हैं.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने हिला दिया लोगों को!

इससे पहले 27 नवंबर को मणिपुर के इस परिवार के सदस्यों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक हुई थी. रिपोर्ट में चौंकाने वाली बातें सामने आई थीं. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 10 महीने के बच्चे और तेलेम थोइबी की आंखें गायब थीं. और 8 साल की बच्ची के शरीर पर गोलियों के कई निशान थे. उसके पेट में भी चोटें आई थीं. इसके अलावा तेलेम थोइबी को भी गोली लगने से उनके सिर की हड्डियां क्षतिग्रस्त हो गई थीं और झिल्ली गायब थी.

परिवार के बाकी के 3 सदस्यों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट इससे कुछ रोज पहले जारी की गई थी. उनके शव बराक नदी से बरामद किए गए थे, जो मणिपुर के जिरीबाम जिले से दक्षिण असम के कछार तक बहती है.

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परिवार के तीन अन्य सदस्यों की पिछली पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, 3 साल के चिंगखेंगनबा सिंह, एल हेतोनबी देवी (25 साल) और वाई रानी देवी (60 साल) को भी गंभीर चोटें आई थीं. चिंगखेंगनबा सिंह की दाहिनी आंख गायब थी और उसके सिर में गोली लगने से बना घाव था. अधिकारियों के अनुसार, रिपोर्ट में उनके हाथ की बांह और शरीर के अन्य हिस्सों पर कटे हुए घाव, छाती में फ्रैक्चर और घाव के निशान भी थे.

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