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कोटा का कोचिंग और हॉस्टल कारोबार पड़ रहा ठप्प! कमरों पर लग रहे ताले, मालूम है किस लिए?

हॉस्टल के जिस कमरे का किराया 15 हजार रुपये होता था, वो अब 8 हजार पर आ गया है. Kota पहुंचने वाले छात्रों की संख्या में 25 से 30 प्रतिशत तक गिरावट आई है.

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कोटा का कोचिंग व्यवसाय गिरावट की ओर है. (सांकेतिक तस्वीर: Wikimedia Commons)

राजस्थान का कोटा (Kota) शहर. इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश की तैयारी कराने वाले इस शहर का कारोबार ठप्प पड़ रहा है. मीडिया संस्थान बीबीसी हिंदी ने इस शहर पर विस्तार से एक रिपोर्ट की है. इसके मुताबिक, यहां के हॉस्टल के अधिकांश कमरे खाली पड़े हुए हैं. कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल ने BBC को बताया है कि पिछले 2 दशक में कोटा में ऐसी स्थिति पहली बार बनी है. यहां आने वाले छात्रों की संख्या में 25 से 30 प्रतिशत की कमी आई है.

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मित्तल का कहना है कि कोटा की कोचिंग इंडस्ट्री 6 हजार करोड़ रुपये से 3 हजार करोड़ रुपये पर आ गई है. एक हॉस्टल संचालक ने बताया कि एक साल पहले वो राजीव नगर में एक कमरे का 15 हजार रुपये प्रतिमाह तक का किराया लिया करते थे. लेकिन अब ये 8 हजार रुपये पर आ गया है. पिछले कुछ सालों में कोटा में 350 से ज्यादा हॉस्टल बनाए गए हैं.

पहले लगभग हरेक हॉस्टल में बच्चे भरे रहते थे. लेकिन अब अधिकांश हॉस्टलों के बाहरे ‘टू लेट’ के बोर्ड लगे हैं. और अधिकांश कमरों पर ताले लगे हैं. कोरोना के बाद शहर में बच्चों की संख्या उम्मीद से ज्यादा बढ़ी थी. लेकिन अब इस संख्या में गिरावट आई है.

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कोटा में पुराने साइकिल के बेचने और खरीदने के कारोबार में शामिल दिनेश कुमार भावनानी बताते हैं कि उनकी दुकान पर पहले 4 लोग काम करते थे. लेकिन अब 1 व्यक्ति का वेतन निकालना भी मुश्किल हो रहा है. ऐसे ही जिस मेस में पहले 20 लोग काम करते थे, वहां अब 5 लोगों से ही काम चलाना पड़ रहा है. एक चाय दुकानदार ने बताया कि उनकी दुकान पर रोजाना 80 किलो दूध की चाय बिकती थी. लेकिन अब 40 किलो दूध की ही चाय बिक पाती है. 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कोटा में 2023 में 23 छात्रों ने आत्महत्या कर ली. साल 2015 के बाद ये पहला मौका था जब इतनी बड़ी संख्या में बच्चों ने अपनी जान दे दी.

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बिहार के आदित्य कुमार कोटा से वापस आ चुके हैं. उन्होंने पटना में बीबीसी संवाददाता सीटू तिवारी को बताया कि वो और उनके साथी 2024 में कोटा से वापस आ गए. क्योंकि लगातार आत्महत्या की खबरों से उन्हें परेशानी होती थी. टेस्ट में कम नंबर आने पर उन्हें नीचे के बैच में डाल दिया जाता था. ऐसे ही एक दूसरे छात्र ने बताया कि वो जिस छात्र के साथ बैठकर खाना खाते, अगले दिन उन्हीं में से किसी के आत्महत्या की खबर आ जाती थी.

इससे पहले 9 दिसंबर को इंडिया टुडे की रिसर्च टीम ने भी इस मामले को रिपोर्ट किया था. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि हॉस्टल, मेस और कोचिंग के साथ-साथ स्टेशनरी की दुकानें, परिवहन और खेल सामग्रियों से जुड़े कारोबार भी ‘खतरे’ में हैं. इस शहर की अर्थव्यवस्था यहां आने वाले बच्चों पर टिकी है. उनकी संख्या घटने के तमाम कारण हैं. एक कारण ये भी है कि कोटा की कोचिंग पद्धति पर आधारित बहुत सारे ऑनलाइन कोचिंग प्लेटफॉर्म्स शुरू हो गए हैं.

(अगर आप या आपके किसी परिचित को खुद को नुकसान पहुंचाने वाले विचार आ रहे हैं तो आप इस लिंक में दिए गए हेल्पलाइन नंबरों पर फोन कर सकते हैं. यहां आपको उचित सहायता मिलेगी. मानसिक रूप से अस्वस्थ महसूस होने पर डॉक्टर के पास जाना उतना ही ज़रूरी है जितना शारीरिक बीमारी का इलाज कराना. खुद को नुकसान पहुंचाना किसी भी समस्या का समाधान नहीं है.)

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