हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन को इंडियन क्रिकेट टीम के साथ ब्रेकफास्ट करना था. रांची के रेडिसन होटल में इसके लिए सारे इंतजाम कर लिए गए थे. लेकिन तय समय पर न तो हेमंत पहुंचे, न ही कल्पना. इसके बदले उनके बच्चों ने क्रिकेट खिलड़ियों के साथ फोटो खिंचवाई. पता चला कि हेमंत और कल्पना तो अचानक दिल्ली निकल गए हैं. बस यहीं से कहानी चल पड़ी कि दिल्ली में ‘बीजेपी के एक बड़े नेता से इन दोनों की मुलाकात हुई’ और अब झारखंड में भी एनडीए सरकार बन सकती है. पर क्या सच में ऐसा होने जा रहा है. या ये कोई सियासी पतंगबाजी है, है भी अगर तो इसी वक्त क्यों?
झारखंड में NDA सरकार? हेमंत सोरेन दिल्ली में किस BJP नेता से मिले जो खलबली मच गई?
कहां से ये बात चल पड़ी कि झारखंड में भी एनडीए की सरकार बन सकती है? हेमंत सोरेन और बीजेपी को इस साथ से फायदा अधिक है या नुकसान?
.webp?width=360)

दिल्ली से लेकर रांची तक हलचल!
हेमंत और कल्पना सोरेन, साथ में झारखंड के चीफ सेक्रेटरी अविनाश कुमार 29 नवंबर को दिल्ली आए. खबर छन कर आई कि हेमंत और कल्पना ने देर रात बीजेपी के सबसे ताकतवर नेता से मुलाकात की. वैसे जेएमएम और ना ही बीजेपी की तरफ से इस मुलाकात को लेकर कुछ भी कंफर्म किया गया है. अब अगर मुलाकात हुई है. तो फिर ‘जरूरी बातें’ भी हुई होंगी. और इस गुपचुप मुलाकात से बात निकली है कि जेएमएम और बीजेपी में खिचड़ी पक रही है. बीजेपी के एक सांसद की पहल पर कल्पना इस मुलाकात के लिए तैयार हुईं, ऐसा कहा गया.
हेमंत के भरोसेमंद चीफ सेक्रेटरी अविनाश कुमार, जो कभी उनके पर्सनल सेक्रेटरी भी रहे, ने भी कथित तौर पर हेमंत को बीजेपी की लीडरशिप से मुलाकात के लिए राजी किया. 2 दिसंबर को हेमंत को रांची वापस लौटना था. लेकिन वे नहीं लौटे. कहा जा रहा है कि मेल-मुलाकात के इस सिलसिले में अभी और भी कुछ चैप्टर जुड़ने हैं. एक बात और, जिस दिन हेमंत को रांची लौटना था, उसी दिन झारखंड के राज्यपाल संतोष गंगवार की गृह मंत्री अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात हो रही थी, और उसी दिन रांची में चर्चित चार्टेड एकाउंटेंट नरेश केजरीवाल के कुछ ठिकानों पर छापेमारी हो रही थी.
लोग गंगवार की अमित शाह से मुलाकात को भी इसी सियासी घटनाक्रम से जोड़कर देखने लगे. पर गंगवार तो अपने बेटे की शादी का निमंत्रण देने शाह के यहां पहुंचे थे. हां, जहां तक नरेश केजरीवाल की बात है, तो उस दिन ईडी की टीम ने केजरीवाल के रांची, मुंबई और सूरत में 15 जगहों पर एक साथ दबिश दी थी. बताते हैं कि हेमंत सरकार से जुड़े कई लोगों के विदेशों में किए गए इंवेस्टमेंट की अहम जानकारी इन रेडों में मिली है. आपके मन में एक सवाल आ रहा होगा कि, ये सब अभी ही क्यों हो रहा है.
हेमंत सोरेन की मजबूरी है कोई?
सबसे पहले तो ये जान लीजिए कि इस नए सियासी समीकरण के बनने के पीछे की वजह बिहार विधानसभा चुनाव और उसके नतीजे हैं. जिसके बाद देश में ये माहौल बन रहा है कि एनडीए को हराना बहुत मुश्किल है. यहां ये भी गौरतलब है कि तमाम वादों के बावजूद कांग्रेस और आरजेडी ने बिहार चुनाव में जेएमएम को एक सीट भी नहीं दी थी. इसी के बाद जेएमएम की तरफ से कहा गया था, ‘हमारी पीठ में छुरा घोपा गया. और सही समय पर इसका हिसाब-किताब होगा.'
तो क्या ये वही समय है? समय हो भी तो कहानी कुछ और है. और वो है, हेमंत सोरेन पर चल रहे ईडी के केस, गिरफ्तारी की तलवार, झारखंड की आर्थिक कंगाली.
लेकिन जो हाल जेएमएम का है, वही बीजेपी का भी. साल भर पहले हुए चुनाव के बाद से बीजेपी कैंप में घनघोर निराशा है. अभी हाल ही में जो घाटशिला विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ, उसमें भी बीजेपी की हार ने पार्टी को और हताश और निराश कर दिया. अब उन्हें भी 'अच्छे दिनों' की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही.
बीजेपी के एक सांसद का दावा है कि पार्टी के कई नेता जेएमएम जाने को भी तैयार हैं. पार्टी की हालत ये है कि अपने दम पर वो किसी को राज्यसभा भी नहीं भेज सकती. जबकि अगले साल जून में झारखंड की एक राज्यसभा सीट खाली हो रही है. बीजेपी से राज्यसभा सांसद दीपक प्रकाश का कार्यकाल खत्म होगा. कभी झारखंड बीजेपी के अध्यक्ष रहे और अभी बिहार बीजेपी के सह-प्रभारी दीपक प्रकाश बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की गुडबुक में हैं. बीजेपी की तरफ से दीपक प्रकाश पूरी कोशिश में हैं कि ‘हरे और भगवा का गठबंधन’ हो जाए.
कांग्रेस नंबर गेम में है बहुत जरूरी!
चुनावी राजनीति का उसूल तो यही कहता है कि जो जीतेगा, वो ही सरकार बनाएगा. पर बीजेपी के बारे में लोग कहते हैं कि वो हारकर भी सरकार बना लेती है. जैसे महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में हुआ. तो क्या अगली बारी अब झारखंड की है? जहां बीजेपी 6 साल से सत्ता से बाहर है.
इधर, कांग्रेस और जेएमएम में भी तनातनी की खबरें है. हाल में हेमंत के कई सरकारी कार्यक्रम में कांग्रेस कोटे के मंत्री मंच पर हेमंत के साथ नहीं दिखे. हेमंत सरकार के नियुक्ति पत्र कार्यक्रम के पोस्टर से भी कांग्रेस कोटे के मंत्रियों की तस्वीरें गायब रहीं. अब ये सब यूं ही तो नहीं हुआ होगा. पर कांग्रेस को तस्वीरों में नजरअंदाज करना एक बात है, विधानसभा में उनके नंबर की अनदेखी हेमंत नहीं कर सकते. क्योंकि 81 सदस्यों वाली झारखंड विधानसभा में 34 सीटें ही झारखंड मुक्ति मोर्चा के पास है. बहुमत के लिए जरूरी नंबर है 41. यहां तक पहुंचने के लिए हेमंत को कांग्रेस के 16 विधायकों की जरूरत पड़ रही है.
हालांकि कांग्रेस के सरकार से निकलने की भरपाई बीजेपी से हो सकती है. जिसके 21 विधायक हैं. साथ ही, बीजेपी के सहयोगियों के पास भी 3 विधायक हैं. मतलब एनडीए के 24 विधायक हेमंत के साथ आते हैं तो उनका नंबर 58 तक पहुंच जाएगा. जो सरकार बनाने के लिए जरूरी नंबर से कहीं ज्यादा होगा.
हेमंत-बीजेपी साथ आएंगे तो…
अगर दोनों साथ आते हैं तो हेमंत सोरेन की ईडी वाली फाइल बंद हो सकती है. महाराष्ट्र में चक्की पीसिंग वाले अजित पवार का मामला याद ही है. दूसरी बात - डबल ईंजन की सरकार में हेमंत सोरेन को पैसे की भी दिक्कत नहीं रहेगी. अभी तो ‘मईयां सम्मान योजना’ के तहत 2500 रुपये हर महीने देने में सोरेन सरकार के पसीने छूट जाते हैं. बाकी इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास कार्यों की तो बात छोड़ ही दीजिए.
तीसरी बात- चर्चा है कि हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन अब रांची के बजाय दिल्ली की राजनीति करना चाहती हैं. एनडीए में आने के बाद मोदी मंत्रिमंडल में उनके लिए जगह भी बन सकती है. हालांकि ये सब इतना भी आसान नहीं है. ये यूपी में अखिलेश यादव का बीजेपी के साथ जाने जैसा है. बीजेपी के संग होने पर हेमंत की सबसे बड़ी चुनौती अपने परंपरागत वोटरों को एकजुट रखने की होगी.
आदिवासी, ईसाई और मुसलमान जेएमएम के बेस वोटर रहे हैं. बीेजेपी के साथ जाने पर ईसाई और मुसलमान वोटरों का मन बदल सकता है. ये वोटर जेएमएम के बदले कांग्रेस का रुख कर सकते हैं. हेमंत के एक सहयोगी मंत्री कहते हैं कि अभी भले साथ हो जाएं, लेकिन चुनाव तो अलग-अलग ही लड़ेंगे.
बीजेपी के लिए भी ये थोड़ा इसलिए मुश्किल होगा कि कल तक जिसे आप भ्रष्टाचारी बता रहे थे, उसे गले कैसे लगा लिया. हालांकि पार्टी ये काम कई बार कर चुकी है.
वैसे राजनीति में अब ये सब कौन ही पूछता है, लेकिन फिर बात तो है ही. हां, बीजेपी के लिए फायदा ये है कि उनकी एक और राज्य में सरकार बन जाएगी. लेकिन तमाम जोड़-घटाव, मेल-मिलाप के बाद भी न तो बीजेपी और न ही हेमंत सोरेन की तरफ से इस कथित रिश्ते की रजामंदी पर कोई बात कही गई है. हालांकि सोरेन की पार्टी ने सोशल मीडिया पर लिखा है, ‘झारखंड झुकेगा नहीं.’
किसके सामने झारखंड झुकेगा नहीं और कौन झारखंड को झुका रहा है, ये तो हेमंत सोरेन ही बेहतर बताएंगे.
वीडियो: राजधानी: अमित शाह की बैठक में यूपी बीजेपी अध्यक्ष का नाम तय हुआ?















.webp)

.webp)


.webp)
