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मनरेगा के बजट की लिमिट तय! पहले 6 महीने में 60 फीसदी ही खर्च कर सकेगी सरकार

वित्त मंत्रालय ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को बताया कि वह फाइनेंशियल ईयर 2025-26 की पहली छमाही में MNREGA के सालाना खर्च का 60 प्रतिशत ही खर्च कर सकता है. सरकार ने ये फैसला क्यों लिया है?

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मनरेगा की शुरुआत 2006 में हुई थी (फोटो: आजतक)

केंद्र सरकार ने कहा है कि वित्तीय वर्ष 2025-26 की पहली छमाही के लिए ‘मनरेगा’ (MNREGA) अपने सालाना बजट का 60 प्रतिशत ही खर्च कर सकता है. आसान भाषा में कहें तो जो धनराशि मनरेगा के लिए एक साल के लिए निर्धारित की गई थी. वो साल के पहले 6 महीने में सिर्फ 60 प्रतिशत ही खर्च की जाएगी. 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अब तक मनरेगा में कोई खर्च सीमा नहीं थी. वित्त मंत्रालय ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को बताया कि अब इस योजना को मासिक/त्रैमासिक व्यय योजना (MEP/QEP) के तहत लाया जाएगा. जो खर्च को कंट्रोल करने वाला सिस्टम है. मनरेगा को इस योजना के तहत लाने से ये होगा कि मनरेगा में होने वाले खर्च को महीने या तीन महीने के अंतराल पर ट्रैक और कंट्रोल किया जाएगा. अब तक मनरेगा को इससे छूट दी गई थी. शुरुआत में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मनरेगा को MEP/QEP के अंतर्गत लाने के प्रस्ताव का विरोध किया था. लेकिन आखिरकार वित्त मंत्रालय के इस प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई.

दोनों मंत्रालयों के बीच कई दौर की बातचीत के बाद ये फैसला लिया गया. वित्त मंत्रालय ने 29 मई को ग्रामीण विकास मंत्रालय को बताया कि वह फाइनेंशियल ईयर की पहली छमाही में मनरेगा के सालाना खर्च का 60 प्रतिशत ही खर्च कर सकता है. यानी कुल 86,000 करोड़ रुपये. इसका मतलब है कि सितंबर के बाद इस योजना के लिए केवल 51,600 करोड़ रुपये ही उपलब्ध होंगे. यानी सालाना बजट का 40 प्रतिशत.

बता दें कि वित्त मंत्रालय ने 2017 में MEP/QEP की शुरुआत की थी. ताकी मंत्रालयों को गैर-जरूरी उधारी से बचने में मदद मिल सके. अब तक  इसके दायरे से बाहर थी. लेकिन 2025-26 फाइनेंशियल ईयर की शुरुआत में, वित्त मंत्रालय ने MEP/QEP के तहत मनरेगा को भी शामिल करने का निर्देश दिया है.

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2006 में हुई थी शुरुआत

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MNREGS) 2006-07 में देश के सबसे पिछड़े 200 ग्रामीण जिलों में शुरू की गई थी. इसके बाद मनरेगा को 2007-08 में 130 और जिलों में और फैलाया गया और 2008-09 में ये योजना पूरे देश में लागू की गई. इस योजना की मांग में 2020-21 के दौरान उछाल देखा गया. जब कोविड-19 महामारी के बीच रिकॉर्ड 7.55 करोड़ ग्रामीण परिवारों ने इसके तहत काम हासिल किया. हालांकि, उसके बाद से इस योजना के तहत काम करने वाले परिवारों की संख्या में लगातार गिरावट आई है. 

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