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पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ ने कोर्ट में अपने आखिरी दिन सुनाया जरूरी फैसला, बेटे की 'इच्छामृत्यु' मांग रहे माता-पिता को ऐसे दी राहत

पूर्व CJI DY Chandrachud ने UP government को निर्देश दिया कि इलाज कि लिए व्यवस्था की जाए. इस पर सरकार ने क्या कहा?

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यूपी सरकार ने निर्देश मान लिया है. (फ़ोटो - PTI)

भारत के पूर्व मुख्य न्यायधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ के हस्तक्षेप के बाद 30 साल के हरीश राणा के माता-पिता को राहत मिली है. हरीश सिर पर गंभीर चोट लगने के कारण 13 साल से ज़्यादा समय से निष्क्रिय अवस्था में पड़े हैं. हरीश के माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट में उनकी ‘निष्क्रिय इच्छामृत्यु’ (Passive Euthanasia) की गुहार लगाई थी. क्योंकि वो बेटे के इलाज के लिए वित्तीय बोझ से परेशान थे. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को निर्देश दिया है कि वो इलाज के लिए उचित व्यवस्था करे. सरकार ने ये निर्देश मान भी लिया है.

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माता-पिता - 62 साल के अशोक राणा और 55 साल की निर्मला देवी - ने जो याचिका दायर की थी, उसमें हरीश के जीवन-सहायक उपायों को हटाने का अधिकार मांगा गया था. यानी इलाज के लिए जो तरीक़े अपनाए जा रहे हैं, उन्हें रोक दिया जाए. आसान भाषा में समझें, तो प्राकृतिक मृत्यु की मंजूरी के लिए, उसको कृत्रिम रूप से दिए जा रहे उपायों को रोका जाए. जिससे हरीश की निष्क्रिय इच्छामृत्यु हो सके. 

इसी पर डीवाई चंद्रचूड़ अपने अंतिम कार्य दिवस, यानी 8 नवंबर को सुनवाई कर रहे थे. उन्होंने यूपी सरकार से कहा कि हरीश की देखभाल के लिए चल रहे चिकित्सा व्यय को उठाने के तरीके ढूंढे. क्योंकि माता-पिता अपने बेटे की देखभाल करने की स्थिति में नहीं हैं. वहीं, यूपी सरकार ने घर पर देखभाल करने के लिए प्रतिबद्धता जताई है. सरकार की तरफ़ से बताया गया कि एक फिजियोथेरेपिस्ट और डाइटिशियन नियमित रूप से हरीश के घर का दौरा करेंगे.

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साथ ही एक ऑन-कॉल चिकित्सा अधिकारी और नर्सिंग सहायता भी है. इसके अलावा, सरकार ने बताया कि राज्य सभी ज़रूरी दवाइयां और चिकित्सा सुविधाएं भी निःशुल्क देगी. अगर घर पर सही से देखभाल नहीं होती, तो हरीश को अच्छी सुविधा के लिए नोएडा के ज़िला अस्पताल में ट्रांसफ़र कराया जाएगा. बताते चलें, मोहाली में पढ़ाई के दौरान हरीश की चौथी मंजिल की खिड़की से गिर गए थे. जिससे उनके सिर में गंभीर चोट आई और वो लकवाग्रस्त हो गए.

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अशोक राणा और निर्मला देवी के वकील मनीष ने पीठ को बताया है कि परिवार ने सरकार की देखभाल की योजना को स्वीकार कर लिया है. और अब, वो अपनी याचिका वापस ले लेंगे. इससे पहले, दिल्ली हाई कोर्ट ने ‘सक्रिय इच्छामृत्यु’ के ख़िलाफ़ फ़ैसला सुनाया था. उन्होंने अपने फ़ैसले में कहा था कि हरीश बिना किसी बाहरी उपकरण के अपना जीवन यापन कर सकते हैं.

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उस दौरान कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फ़ैसले का ज़िक्र किया था. जिसमें कुछ शर्तों के साथ ‘निष्क्रिय इच्छामृत्यु’ की मंजूरी दी गई थी. लेकिन कहा गया कि भारत में ‘सक्रिय इच्छामृत्यु’ कानूनी रूप से अस्वीकार्य है.

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