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बॉम्बे हाई कोर्ट ने लाइव स्ट्रीमिंग सुनवाई पर क्यों सवाल उठाए?

बेंच ने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 228A के तहत, कुछ अपराधों में पीड़ितों की पहचान उजागर करना दंडनीय है.

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बेंच ने इन नियमों की समीक्षा की, लेकिन अभी तक इस मामले पर कोई औपचारिक निर्देश नहीं जारी किया है. (फोटो- PTI)

बॉम्बे हाई कोर्ट ने संवेदनशील मामलों से जुड़ी कोर्ट की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग को लेकर सवाल खड़े किए हैं. इसको लेकर जजों ने कहा कि वे इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित गाइडलाइंस का पालन करेंगे (Bombay High Court on live-streaming of sensitive cases).

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जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस राजेश एस पाटिल की बेंच ने बताया कि उनके समक्ष आए अधिकांश मामले महिलाओं के विरुद्ध अपराध से जुड़े हैं. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस गडकरी ने कहा,

"मुश्किल से 20 से 25 प्रतिशत मामले UAPA या ऐसे अन्य कानूनों के अंतर्गत आते हैं. लगभग 70 प्रतिशत मामले महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित हैं."

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बेंच ने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 228A के तहत, कुछ अपराधों में पीड़ितों की पहचान उजागर करना दंडनीय है. यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) एक्ट और जुवेनाइल जस्टिस (JJ) एक्ट जैसे विशेष कानूनों के तहत भी इसी तरह के प्रतिबंध मौजूद हैं. जहां पीड़ित की पहचान उजागर करना एक आपराधिक दायरे में आता है.

कोर्ट ने ये टिप्पणी एक कपल की सहमति से दर्ज FIR को रद्द करने की मांग से जुड़े एक मामले की सुनवाई से पहली की. सुनवाई के दौरान पुरुष और महिला मौजूद थे, और इसकी लाइव-स्ट्रीमिंग चालू थी. बेंच ने इस दौरान कहा कि लाइव-स्ट्रीमिंग का एक्सेस किसी के पास भी हो सकता है, जिससे पीड़ित की पहचान उजागर हो सकती है.

कोर्ट ने एडिशनल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर से इस मुद्दे के समाधान के लिए उपाय सुझाने को कहा. जवाब में, एडिशनल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर अजय पाटिल ने लाइव-स्ट्रीमिंग और रिकॉर्डिंग पर बॉम्बे हाई कोर्ट के नियमों का हवाला दिया. इन नियमों का उद्देश्य पारदर्शिता और न्याय तक बेहतर पहुंच को बढ़ावा देना है. जिसके तहत कोर्ट ने लाइव-स्ट्रीमिंग का एक कानूनी ढांचा विकसित किया है.

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ये नियम संविधान के आर्टिकल 225 और आर्टिकल 227 के तहत बनाए गए हैं. जो कि बॉम्बे हाई कोर्ट और अन्य निचली अदालतों में लागू होते हैं. हालांकि, नियमों में कुछ श्रेणियों को लाइव-स्ट्रीमिंग से स्पष्ट रूप से बाहर रखा गया है. इसमें वैवाहिक मामले, बच्चों की कस्टडी और गोद लेने के मामले, उनसे संबंधित ट्रांसफर पिटीशन शामिल है. साथ ही IPC की धारा 376 के तहत बलात्कार सहित यौन अपराधों से जुड़े मामले, महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा और POCSO तथा JJ एक्ट के तहत होने वाली कार्यवाही भी शामिल है.

रिपोर्ट के मुताबिक बेंच ने इन नियमों की समीक्षा की, लेकिन अभी तक इस मामले पर कोई औपचारिक निर्देश नहीं जारी किया है.

बता दें कि लाइव-स्ट्रीमिंग का उद्घाटन पिछले महीने मुंबई में भारत के CJI बीआर गवई ने किया था. फिलहाल, बॉम्बे हाई कोर्ट की मेन बेंच की 12 पीठों, औरंगाबाद और नागपुर बेंच की तीन-तीन अदालतों की लाइव स्ट्रीमिंग की जाती है. इसके अलावा गोवा की दो अदालतों की कार्यवाही का भी सीधा प्रसारण किया जा रहा है.

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