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'फ्री स्पीच के केसों की सुनवाई अटकी रहना एक सजा', पूर्व CJI गवई ने अदालतों को बड़ा मैसेज दिया है

पूर्व CJI BR Gavai ने कहा कि जब अभिव्यक्ति से जुड़े मामले सालों तक अटके रहते हैं, तो मुकदमा ही सजा बन जाता है. देर होने से आरोपी की आज़ादी और उसकी छवि पर बुरा असर पड़ता है. और क्या कहा उन्होंने?

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मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान पूर्व CJI गवई ने यह बात कही (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)

पूर्व चीफ जस्टिस बी.आर. गवई (BR Gavai) ने कहा है कि अगर अभिव्यक्ति से जुड़े मामलों में जांच और मुकदमे लंबे समय तक चलते रहे, तो इससे लोगों के मौलिक अधिकारों को नुकसान पहुंच सकता है. फिर चाहे बाद में उन्हें बरी ही क्यों न कर दिया जाए. उन्होंने कहा कि इस देरी से आरोपी की आज़ादी और प्रतिष्ठा पर बुरा असर पड़ता है, जिसे बाद में ठीक नहीं किया जा सकता. 

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इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, बॉम्बे हाई कोर्ट में जस्टिस के.टी. देसाई मेमोरियल लेक्चर को संबोधित करते हुए पूर्व CJI ने कहा, 

अगर स्पीच से जुड़े मामलों की जांच, ट्रायल या अपील सालों तक अटकी रहती है, तो पूरी प्रक्रिया ही सजा बन जाती है. भले ही आरोपी को बाद में बरी कर दिया जाए, लेकिन इतनी देरी उसकी आज़ादी, प्रतिष्ठा और बोलने की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकती है.

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अदालतों में बढ़ते लंबित मामलों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा,

अब सुप्रीम कोर्ट को ऐसे कई मामले देखने पड़ रहे हैं जहां केस दर्ज करना, जमानत न देना, लंबे समय तक जेल में रखना सीधे-सीधे लोगों की बोलने की आज़ादी पर असर डाल रहे हैं.

जस्टिस गवई ने कहा कि डिजिटल समय में पत्रकारों की आज़ादी की रक्षा करना अदालतों की बड़ी जिम्मेदारी है. उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट लगातार यह कोशिश कर रहा है कि बोलने की आज़ादी बनी रहे और उस पर बेवजह रोक न लगे, ताकि सरकार या सिस्टम के कंट्रोल से यह अधिकार कमजोर न हो जाए.

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‘इंटरनेट’ पर क्या बोले पूर्व CJI?

जस्टिस गवई ने कहा कि भारत में बोलने की आज़ादी से जुड़े कानून इस बात को दिखाते हैं कि संविधान चाहता है कि सरकार किसी की सोच, बोलने या लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने की आज़ादी पर हावी न हो. इंटरनेट की भूमिका पर बोलते हुए जस्टिस गवई ने कहा,

अनुराधा भसीन केस (2020) में सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा था कि अभिव्यक्ति की आज़ादी का सही इस्तेमाल करने के लिए इंटरनेट की पहुंच बहुत ज़रूरी है, और इंटरनेट को लंबे समय तक बंद रखना संविधान के खिलाफ है.

उन्होंने चुनावी बांड के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि वोटर को सही जानकारी मिलना उसका अधिकार है, क्योंकि उसी पर उसकी अभिव्यक्ति और लोकतांत्रिक भागीदारी निर्भर है.

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