अब देश में परमाणु और जरूरी खनिजों की खदानों के लिए पर्यावरण मंजूरी लेने में जनता की राय लेने की जरूरत नहीं होगी. केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने परमाणु, जरूरी और रणनीतिक खनिजों की खदानों को सार्वजनिक परमार्श (Public Consultation) से छूट दे दी है. मंत्रालय ने कहा है कि ये छूट 'देश की रक्षा और सुरक्षा' से जुड़े कारणों और रणनीतिक जरूरतों की वजह से दी जा रही है.
सरकार कौन से खनन के लिए नहीं लेगी 'जनता की राय'? देश की सुरक्षा का हवाला दिया
EIA नोटिफिकेशन के तहत डेवलपमेंट और इंडस्ट्रियल प्रोजेक्ट्स के पर्यावरण, स्वास्थ्य और लोगों पर पड़ने वाले असर को जांचा जाता है. लोग इन खनन समेत अलग-अलग प्रोजेक्ट्स पर सरकार को अपनी राय देते हैं.


इस कदम से इन खनिजों के खनन को मंजूरी मिलने में तेजी आएगी और काम जल्दी शुरू हो सकेगा. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ये फैसला रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence) और परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) की मांग पर लिया गया है. अब ऐसे खनन प्रोजेक्ट्स के लिए जनता की राय जानने की प्रक्रिया जरूरी नहीं होगी.
पर्यावरण मंत्रालय का नया आदेश
एक्सप्रेस के मुताबिक केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अपने ऑफिस मेमोरेंडम (OM) में कहा है,
“इस मंत्रालय में एनवायरनमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट (EIA), नोटिफिकेशन, 2006 के मौजूदा प्रावधानों के तहत इस मामले की जांच की गई है, और राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा जरूरत और रणनीतिक जरूरत को ध्यान में रखते हुए, Part B में नोटिफाई परमाणु खनिजों और MMDR एक्ट के पहले शेड्यूल के Part D में नोटिफाई अहम और रणनीतिक खनिजों के सभी खनन प्रोजेक्ट्स को सार्वजनिक परामर्श से छूट दी जाएगी... और प्रस्ताव में शामिल पट्टे के क्षेत्रफल की परवाह किए बिना केंद्रीय स्तर पर उनको परखा जाएगा.”
मंत्रालय ने इन प्रोजेक्ट्स को जनता की राय से छूट तो दी है, लेकिन इनकी जांच जरूर होगी. जांच विशेषज्ञ समितियां (Expert Appraisal Committees) इनकी जांच करेंगी.
सार्वजनिक परामर्श क्या है?
EIA एक अहम सरकारी नियम है, जिसके तहत डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स और इंडस्ट्रियल प्रोजेक्ट्स के पर्यावरण, स्वास्थ्य और लोगों पर पड़ने वाले असर को जांचा जाता है. इसके तहत, सार्वजनिक परामर्श एक कानूनी प्रक्रिया है और इसमें प्रभावित लोगों की चिंताओं को सुलझाने के लिए जन सुनवाई करना शामिल है.
प्रोजेक्टस के असर को लेकर लोग अपनी लिखित राय और आपत्तियां सरकार के सामने रख सकते हैं. इसका मकसद प्रोजेक्ट्स की वजह से पर्यावरण, लोगों की सेहत और जिंदगी पर पड़ने वाले असर को समझना है. लेकिन अब परमाणु और रणनीतिक खनिजों के मामलों में यह प्रक्रिया नहीं अपनाई जाएगी.
रक्षा मंत्रालय और DAE ने क्या कहा?
रक्षा मंत्रालय ने 4 अगस्त को पर्यावरण मंत्रालय को बताया था कि रेयर अर्थ एलीमेंट्स (Rare Earth Elements) रक्षा क्षेत्र में बहुत काम आते हैं. इनका इस्तेमाल सर्विलान्स और नेविगेशन डिवाइस (जैसे रडार और सोनार) बनाने में होता है. इसके अलावा, ये चीजें कम्युनिकेशन और डिस्प्ले डिवाइस, सैन्य गाड़ियों और टैंकों के माउंटिंग सिस्टम और सटीक हमले करने वाले हथियार बनाने में इस्तेमाल होती हैं.
मंत्रालय ने कहा कि भारत में ये खनिज कम मात्रा में पाए जाते हैं और दुनिया के कुछ ही हिस्सों में मिलते हैं. इसलिए देश में इनका उत्पादन बढ़ाना बहुत जरूरी है. रक्षा मंत्रालय ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इनके खनन की मंजूरी में जनता की राय से छूट मिलनी चाहिए.
परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) ने भी 29 अगस्त को पत्र लिखकर कहा था कि थोरियम (Thorium) जैसे खनिज तीसरे चरण के परमाणु कार्यक्रम के लिए जरूरी हैं. ये खनिज समुद्री रेत (Beach Sand) से निकलते हैं. DAE ने कहा कि नई साइट से खनन शुरू करना जरूरी है, इसलिए सार्वजनिक परामर्श से छूट दी जाए.
यह फैसला सरकार की हाल की नीतियों से मेल खाता है. खान मंत्रालय के कहने पर केंद्र सरकार ने Parivesh पोर्टल पर ‘Critical Minerals’ के लिए अलग कैटेगरी बनाई है. वन (संरक्षण एवं संवर्धन) नियम, 2023 में बदलाव कर जरूरी खनिजों के लिए विशेष प्रावधान जोड़े गए हैं. इसके अलावा, MMDR Amendment Act, 2023 (खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023) में भी परमाणु और जरूरी खनिजों की लिस्ट शामिल की गई है.
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