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सीपी राधाकृष्णन की उम्मीदवारी: बीजेपी का बड़ा दांव, क्या बिखर जाएगा विपक्ष?

BJP ने CP Radhakrishnan को उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 का उम्मीदवार बनाकर OBC कार्ड और दक्षिण भारत दोनों पर दांव लगाया है. इस कदम से विपक्षी एकता और DMK की रणनीति पर बड़ा असर पड़ सकता है.

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बीजेपी का दांव, सीपी राधाकृष्णन बने एनडीए उम्मीदवार (Photo-PTI)
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हिमांशु मिश्रा

बीजेपी ने सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर राजनीति की बिसात पर ऐसा तीर चलाया है, जो कई निशाने साधता है और अंदाज़ भी बिल्कुल अनूठा है. इस फैसले का सीधा संदेश है-पार्टी अब एक बार फिर गेमचेंजर बनने की तैयारी में है.

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विपक्ष में दरार की आशंका

राधाकृष्णन की उम्मीदवारी विपक्ष के भीतर नई खटास पैदा कर सकती है. इससे पहले भी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पदों के चुनाव में विपक्षी एकता बार-बार दरकती रही है. प्रतिभा पाटिल से लेकर जगदीप धनखड़ तक, कई मौकों पर नाम सामने आते ही कई दलों ने पाला बदला-किसी ने विचारधारा भुला दी, तो किसी ने मौके का फायदा उठाया.

डीएमके का मुश्किल इम्तिहान

तमिलनाडु की राजनीति में यह चुनाव खास मायने रखता है. डीएमके, जिसके पास 32 सांसद हैं, अब दुविधा में है-क्या "अपने राज्य के उम्मीदवार" का समर्थन किया जाए या दिल्ली की राजनीति के लिहाज से विरोध का रास्ता अपनाया जाए?
चुनौती और भी बड़ी है क्योंकि अगले साल राज्य विधानसभा चुनाव होने हैं. डीएमके का फैसला सीधे-सीधे चुनावी राजनीति को प्रभावित कर सकता है, और बीजेपी–AIADMK इसे हथियार बना सकती हैं.

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सीपी राधाकृष्णन की उम्मीदवारी: बीजेपी ने खेला ओबीसी और साउथ कार्ड (फोटो- PTI)
जाति, क्षेत्र और सियासत का तिहरा संतुलन

राधाकृष्णन को उतारकर बीजेपी ने कई समीकरणों पर एक साथ दांव खेला है.

  • ओबीसी कार्ड: गाउंडर (कोंगु वेल्लालर) समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो राज्य का मजबूत ओबीसी वोट बैंक है.
  • क्षेत्रीय संतुलन: दक्षिण भारत में पार्टी की पकड़ मज़बूत करने का इरादा साफ है.
  • चुनावी नज़र: तमिलनाडु चुनाव 2026 में हैं, ऐसे में यह फैसला एनडीए के लिए बड़ा लाभकारी साबित हो सकता है.
पिछली बार का गणित

पिछले उपराष्ट्रपति चुनाव में जगदीप धनखड़ को 528 वोट मिले थे. इस बार एनडीए के पास 422 सांसदों का पक्का समर्थन है. साथ ही बीजेडी, वाईएसआरसीपी और बीआरएस जैसी पार्टियों के 22 सांसद भी साथ आ सकते हैं. टीएमसी ने पिछली बार मतदान का बहिष्कार किया था-इस बार उसका रुख निर्णायक होगा.

संघनिष्ठ उम्मीदवार का संदेश

बीजेपी ने बार-बार यह संकेत दिया है कि अब संवैधानिक पदों पर वही नेता पहुंचेंगे, जो संगठन और संघ की विचारधारा से जुड़े रहे हों. राधाकृष्णन इसी नीति का चेहरा हैं-संघ के पुराने सिपाही और जमीनी राजनीति से जुड़े कार्यकर्ता.

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तमिलनाडु से तीसरे उपराष्ट्रपति

अगर चुनाव जीते, तो सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु से उपराष्ट्रपति बनने वाले तीसरे नेता होंगे. ऐसे में डीएमके के लिए यह फैसला आसान नहीं है-‘अपनों’ का सम्मान करें या केंद्र की राजनीति को ध्यान में रखते हुए विरोध करें.

सौ बात की एक बात

सीपी राधाकृष्णन की उम्मीदवारी महज़ एक नामांकन नहीं है. यह दक्षिण भारत में पैर जमाने की कोशिश, ओबीसी समीकरण साधने की रणनीति और विपक्ष की एकता की असली परीक्षा है. बीजेपी ने शतरंज की बिसात पर नया मोहरा चला है-अब देखना यह है कि विपक्ष किस तरफ चाल चलता है.

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