पंजाब में इन दिनों काफी हलचल है. नई दिल्ली में संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने वाला है. लेकिन गर्मी चंडीगढ़ में बढ़ी है. सत्ताधारी आम आदमी पार्टी हो या कांग्रेस या भाजपा की पूर्व सहयोगी शिरोमणि अकाली दल. तीनों केंद्र सरकार को घेर रहे हैं. आरोप लगा रहे हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार पंजाब के गांवों के ऊपर बने चंडीगढ़ का कंट्रोल हासिल करना चाहती है. वह इसे पंजाब से छीनना चाहती है. पंजाब के सीएम भगवंत मान ने तो ऐलान ही कर दिया कि चंडीगढ़ पर सिर्फ पंजाब का हक है और ये हक वो बर्बाद नहीं होने देंगे.
मोदी सरकार ने चंडीगढ़ से जुड़े जिस बिल को रोक लिया है, उस पर AAP-कांग्रेस नाराज क्यों हैं?
1 दिसंबर 2025 से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने वाला है. इस सत्र से पहले पंजाब में सियासी गर्मी बढ़ गई है. वजह है- चंडीगढ़ को लेकर एक बिल, जिसे लेकर दावा किया जा रहा है कि अगर वो कानून बन गया तो चंडीगढ़ का पूरा प्रशासन बदल जाएगा.


इस पूरे विरोध की वजह एक कथित संविधान संशोधन बिल है, जिसे शीतकालीन सत्र में पेश होने की बात कही जा रही है. हालांकि, सरकार ऐसे किसी बिल से इनकार कर रही है, लेकिन सियासत में बिना आग के धुआं नहीं उठता. यही ‘धुआं’ केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी के विरोधियों को आशंकित कर रहा है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा,
संसद के आगामी शीतकालीन सत्र के बुलेटिन में चंडीगढ़ के लिए पूर्णकालिक लेफ्टिनेंट गवर्नर (LG) नियुक्त करने की सुविधा देने वाला संविधान संशोधन बिल पेश करने के लिए सूचीबद्ध (Listed) था. इस पर तुरंत और जोरदार तरीके से कांग्रेस और पंजाब की दूसरी पार्टियों ने विरोध किया. अब केंद्रीय गृह मंत्रालय कह रहा है कि उसका शीतकालीन सत्र में यह बिल पेश करने का कोई इरादा नहीं है. यह मोदी सरकार की कार्यशैली का एक और उदाहरण है. पहले घोषणा, फिर सोच.

जयराम रमेश ने यह बात मोदी सरकार की तारीफ में नहीं कही है. ‘पहले घोषणा, फिर सोच’ से ये मतलब निकलता है कि सरकार किसी भी बिल को लाने से पहले उसकी टेस्टिंग करती है. वह पब्लिक डोमेन में रिएक्शन के लिए रखा जाता है. जैसा रिएक्शन आता है, उस हिसाब से बिल पर काम आगे बढ़ाया जाता है.
बिल क्या है?हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक इस बिल का मकसद चंडीगढ़ को आर्टिकल-240 के तहत लाना है. इसका मतलब है कि चंडीगढ़ को देश के उन केंद्र शासित प्रदेशों की कैटिगरी में रखा जाएगा, जिनकी अपनी विधानसभा नहीं होती और जिनके लिए राष्ट्रपति सीधे नियम बना सकते हैं. फिलहाल अनुच्छेद 240 में अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप, दादरा और नगर हवेली, दमन दीव और पुडुचेरी आते हैं.
भारतीय संविधान का आर्टिकल 240 कहता है कि भारत के राष्ट्रपति केंद्रशासित प्रदेशों अंडमान निकोबार, लक्षद्वीप, दादरा नगर हवेली, दमन दीव और पुडुचेरी के लिए शांति, विकास और अच्छे प्रशासन के लिए नियम-कानून बना सकते हैं. इनमें पुडुचेरी के लिए कुछ शर्तें हैं. यहां अनुच्छेद 239(A) के तहत पुडुचेरी के लिए एक विधानसभा बनाई जाती है. जिस दिन विधानसभा की पहली मीटिंग होती है, इस दिन से राष्ट्रपति इस केंद्रशासित प्रदेश के लिए कोई नियम नहीं बना सकेंगे. लेकिन अगर यहां विधानसभा किसी कारण से भंग हो जाती है या कामकाज निलंबित हो जाता है तो इस दौरान यहां फिर से राष्ट्रपति नियम बना सकते हैं.
ये शर्त सिर्फ पुडुचेरी के लिए है. बाकी के 4 UTs के लिए राष्ट्रपति ही नियम बनाते हैं और राष्ट्रपति के बनाए नियम इतने पॉवरफुल होते हैं कि वो संसद के बनाए किसी कानून या किसी दूसरे लागू कानून को भी बदल सकते हैं या कैंसिल कर सकते हैं. राष्ट्रपति के बनाए नियमों का संसद के बनाए कानून जितना ही असर होता है.
बिल को लेकर विरोध क्यों है?माना जा रहा है कि अगर बिल संसद में पेश होता है और पास भी हो जाता है तो इससे दिल्ली और जम्मू-कश्मीर की तरह चंडीगढ़ में भी एक लेफ्टिनेंट गवर्नर (LG) नियुक्त करने का रास्ता खुल जाएगा. फिलहाल, तो चंडीगढ़ का प्रशासक (Administrater) पंजाब का राज्यपाल होता है. वो प्रदेश के मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करता है. ऐसे में परोक्ष तौर पर चंडीगढ़ पंजाब सरकार के ही अधीन है, लेकिन यह बिल पास हुआ तो वहां का मौजूदा सिस्टम पूरी तरह से बदल जाएगा.
इसी को लेकर आम आदमी पार्टी, कांग्रेस समेत पंजाब की अधिकतर पार्टियों को परेशानी है. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कांग्रेस सांसद पवन बंसल ने कहा कि सरकार का ये कदम चंडीगढ़ पर गंभीर असर डाल सकता है. अगर चंडीगढ़ आर्टिकल 240 के तहत आ गया तो केंद्र सरकार को बहुत बड़ी शक्तियां मिल जाएंगी. बंसल ने कहा,
अगर चंडीगढ़ को आर्टिकल 240 के तहत कर दिया गया तो केंद्र ऐसी शक्ति हासिल कर लेगा कि संसद के बनाए गए किसी भी कानून या चंडीगढ़ पर लागू किसी दूसरे कानून को सिर्फ एक रेगुलेशन बनाकर बदला या हटाया जा सकता है. वो भी संसद को बाइपास करके. अभी ये अधिकार सिर्फ संसद के पास है.
उदाहरण बताते हुए बंसल ने आगे कहा,
अगर चंडीगढ़ के मेयर के कार्यकाल की अवधि बदलनी हो तो उसे संसद में पेश करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. सिर्फ केंद्र सरकार का एक जॉइंट सेक्रेटरी नोट पर साइन कर देगा कि राष्ट्रपति इस बदलाव को मंजूरी देते हैं और बदलाव तुरंत लागू हो जाएगा.

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने तो केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह पंजाब की राजधानी ‘छीनने’ की कोशिश कर रही है. उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया,
ये संविधान संशोधन पंजाब के हितों के खिलाफ है. हम केंद्र सरकार के पंजाब के खिलाफ रची जा रही साजिश को कामयाब नहीं होने देंगे. हमारे पंजाब के गांवों को उजाड़कर बने चंडीगढ़ पर सिर्फ पंजाब का हक है. हम अपना हक यूं ही जाने नहीं देंगे. इसके लिए जो भी कदम उठाने पड़ेंगे, हम उठाएंगे.
कांग्रेस के नेता अमरिंदर सिंह राजा वारिंग का कहना है कि वो इस बिल का विरोध संसद में भी करेंगे और सड़कों पर भी. यह पंजाब का मुद्दा है और वो इस पर हर तरीके से लड़ेंगे. शिरोमणि अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि यह बिल पंजाब के हितों के खिलाफ है और इससे केंद्र सरकार पंजाब से किए गए पुराने सभी वादों से पीछे हट जाएगी, जिसमें उसने चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपने की बात कही थी.

बिल पर विरोध बढ़ा तो केंद्र सरकार ने आगे आकर साफ किया कि ऐसा कोई बिल लाने का इरादा अभी नहीं है. लेकिन सरकार इस बारे में सोच रही है कि कैसे चंडीगढ़ के लिए कानून बनाना आसान हो. हालांकि, सरकार ने इस पर अंतिम फैसला नहीं लिया है. गृह मंत्रालय ने अपने स्पष्टीकरण में कहा,
ये प्रस्ताव सिर्फ इतना है कि केंद्र सरकार चंडीगढ़ के लिए कानून बनाने की प्रक्रिया को आसान करना चाहती है. प्रस्ताव अभी केंद्र सरकार में विचाराधीन है. इस पर अभी कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया है. यह प्रस्ताव चंडीगढ़ के शासन या प्रशासनिक ढांचे में कोई बदलाव करने के लिए नहीं है. न ही इसका मकसद चंडीगढ़ और पंजाब या हरियाणा के बीच की मौजूदा पारंपरिक व्यवस्था को बदलना है. सभी संबंधित पक्षों से पर्याप्त बातचीत करने के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा और चंडीगढ़ के हितों को ध्यान में रखकर ही फैसला होगा. इस मुद्दे पर चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है.
अंत में सरकार ने साफ-साफ कहा,
केंद्र सरकार का आगामी शीतकालीन सत्र में इस तरह का कोई बिल पेश करने का इरादा नहीं है.
सरकार भले ही दावा खारिज कर रही हो, लेकिन भाजपा के लोग बिल के लिए बोलना शुरू कर चुके हैं. भाजपा नेता और वकील अरुण सूद को लगता है कि यह कदम चंडीगढ़ के लिए फायदेमंद हो सकता है. उनके मुताबिक, इससे चंडीगढ़ को केंद्र की निगरानी में ज्यादा बजट मिल सकता है और भविष्य में यहां अपनी अलग विधानसभा बनने का रास्ता भी खुल सकता है.
पहले भी हुए हैं प्रयासचंडीगढ़ को आर्टिकल 240 के तहत लाने की कोशिशें पहले भी हुई हैं. साल 2016 में नरेंद्र मोदी सरकार ने कोशिश की थी कि चंडीगढ़ को एक फ्री एडमिनिस्ट्रेटर दिया जाए ताकि पंजाब के राज्यपाल पर इस शहर की जो अतिरिक्त जिम्मेदारी है, उसे खत्म किया जा सके. तब केंद्र ने केजे अल्फोन्स (KJ Alphons) को एडमिनिस्ट्रेटर बनाने की कोशिश की थी. लेकिन शिरोमणि अकाली दल सरकार के विरोध के बाद इस फैसले को वापस ले लिया गया.
चंडीगढ़ की हिस्ट्री क्या है?बीबीसी से बात करते हुए चंडीगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री ने बताया कि साल 1952 में जब जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे, तब पंजाब के कुछ गांवों का अधिग्रहण करके चंडीगढ़ को बसाया गया था. उस समय पटियाला एंड ईस्ट पंजाब स्टेट यूनियन (PEPSU) की राजधानी पटियाला हुआ करती थी.
पेप्सू ब्रिटिश भारत का एक राज्य था, जिसमें 8 जिले पटियाला, जींद, नाभा, फरीदकोट, कलसिया, मलेरकोटला, कपूरथला और नालागढ़ थे. साल 1956 में नवगठित पंजाब राज्य में इसका विलय कर दिया गया और राजधानी बनी- चंडीगढ़. 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा राज्य बना और तब चंडीगढ़ दोनों प्रदेशों की राजधानी बनाई गई. साथ ही चंडीगढ़ को केंद्रशासित प्रदेश (UT) घोषित कर दिया गया.
अभी कैसे चल रहा चंडीगढ़ का प्रशासन?केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद यहां का प्रशासन एक चीफ कमिश्नर संभालते थे. वह सीधे केंद्र सरकार को रिपोर्ट करते थे. लेकिन 1984 के आसपास पंजाब में उग्रवाद चरम पर था. ऐसे में चंडीगढ़ में सिक्योरिटी सिस्टम को आसान बनाने के लिए व्यवस्था की गई कि पंजाब के राज्यपाल ही यहां के प्रशासक होंगे. तब से यही व्यवस्था चली आ रही है. पंजाब के राज्यपाल ही चंडीगढ़ के प्रशासनिक प्रमुख होते हैं.
चंडीगढ़ में इसी व्यवस्था को बदलने की चर्चा चल रही है.
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