'विवाह' को हिंदू धर्म में 'पवित्र' माना जाता है. लेकिन आजकल ये 'विवाह' यानी शादी कई कारणों से विवादों में है. कभी छोटे-मोटे झगड़े, तो कभी बड़ी समस्याएं, शादीशुदा जीवन में निराशा की वजह बन रही हैं. नतीजतन, समाज में घरेलू हिंसा और दहेज कानून के गलत इस्तेमाल की घटनाएं भी बढ़ रही हैं. हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मुद्दे पर ये अहम टिप्पणी की.
'हिंदुओं में पवित्र माने जाने वाले विवाह खतरे में...', HC ने बहुत कुछ कह दिया
Hindu Marriage Disputes: एक मामले में Bombay High Court ने महसूस किया कि अगर पति-पत्नी पक्ष आपस में समझौता कर लेते हैं तो ऐसे मामलों में अदालत को भी उनकी मदद करनी चाहिए, ताकि उनका जीवन शांतिपूर्वक आगे बढ़ सके.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक केस की सुनवाई के दौरान कहा कि आजकल शादी से जुड़े झगड़े समाज में एक बड़ी समस्या बन चुके हैं. जस्टिस नितिन साम्बरे और जस्टिस महेंद्र नेर्लीकर की बेंच ने पति और उसके ज्यादा से ज्यादा रिश्तेदारों के खिलाफ FIR दर्ज कराने के महिलाओं के ट्रेंड पर गौर किया. कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक कलह के मामलों को 'अलग' नजरिए से देखने की जरूरत है.
जस्टिस नेर्लिकर के लिखे 19 पेज के आदेश में कोर्ट ने कहा,
“विभिन्न कारणों से आजकल वैवाहिक कलह समाज में एक समस्या बन गई है. वैवाहिक कलह के कारण झगड़ रहे पक्षों के पास कानून में कई समाधान उपलब्ध हैं. दोनों के बीच का छोटा-मोटा विवाद पूरी जिंदगी खराब कर देता है और हिंदुओं में पवित्र माने जाने वाले विवाह खतरे में पड़ जाते हैं. विवाह केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक मिलन है जो दो आत्माओं को एक साथ बांधता है. हालांकि, आजकल ऊपर बताए हालात में इन विवाहों को धक्का पहुंचता है. व्यक्तियों के बीच क्लेश, वैमनस्य और सामंजस्य की कमी संघर्ष का कारण बनती है.”
कोर्ट ने आगे कहा कि शादीशुदा संबंधों को बेहतर बनाने के लिए बनाए गए कानूनों, जैसे- घरेलू हिंसा अधिनियम, हिंदू विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम का लोग अक्सर गलत इस्तेमाल करते हैं, जिसके चलते मुकदमेबाजी में बढ़ोतरी होती है. इससे ना केवल अदालतों पर बोझ पड़ता है, बल्कि बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों को मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न समेत वित्तीय नुकसान भी होता है, जिसकी भरपाई नहीं हो सकती है.
कोर्ट ने यह महसूस किया कि अगर दोनों पक्ष आपस में समझौता कर लेते हैं तो ऐसे मामलों में अदालत को भी उनकी मदद करनी चाहिए, ताकि उनका जीवन शांतिपूर्वक आगे बढ़ सके. कोर्ट के अनुसार, अगर दोनों पक्षों ने अपने विवादों को सुलझा लिया और वे आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं, तो कोर्ट को ऐसे मामलों में आपराधिक कार्रवाई को रद्द करने का विचार करना चाहिए.
कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह के मामलों में अगर महिला अपनी शिकायत वापस लेने के लिए तैयार हो और अगर वो अपने पति और ससुराल के खिलाफ आरोप वापस ले रही है, तो कोर्ट को इसे सही समझना चाहिए और दोनों पक्षों के भले के लिए मामलों को खत्म करने का फैसला करना चाहिए.
इस फैसले में कोर्ट ने साफ किया कि भले ही IPC की धारा 498A और 377 और दहेज निषेध कानून की धाराएं- 3 और 4 गैर-समझौते योग्य हैं, फिर भी न्याय के तहत क्रिमिनल प्रोसीडिंग्स को खत्म किया जा सकता है. यह तब किया जा सकता है जब दोनों पक्षों की सोच एक जैसी हो और वे आपस में शांति से अपनी जिंदगी जीने की इच्छा रखते हों.
कोर्ट ने कहा कि अगर विवादों को शांतिपूर्वक सुलझाया जा सकता है, तो यह समाज और दोनों पक्षों के लिए अच्छा रहेगा. ऐसे मामलों में अदालत को उनकी मदद करने की जिम्मेदारी समझनी चाहिए, ताकि किसी भी पार्टी को गैरजरूरी कठिनाइयों का सामना न करना पड़े.
इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने पति, उसकी मां और दो बहनों के खिलाफ दायर FIR को रद्द कर दिया, क्योंकि पत्नी ने इसके लिए सहमति दी थी. दोनों पक्षों ने आपसी समझौता किया था. कोर्ट ने इस समझौते को सही माना और कहा कि इससे दोनों पक्षों का भविष्य बेहतर हो सकता है.
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