महाराष्ट्र के सियासी गलियारों से एक बड़ी खबर सामने आई है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 1 जुलाई को अपने महाराष्ट्र यूनिट का नया बॉस चुन लिया (BJP Maharashtra president ). नाम है रविंद्र चव्हाण (Ravindra Chavan). डोंबिवली से चार बार विधायक बन चुके हैं और मराठा समुदाय का बड़ा चेहरा हैं. रविंद्र चव्हाण की नियुक्ति यूं ही नहीं हुई, इसके पीछे रणनीति भी है, और 2029 के विधानसभा चुनावों की बुनियाद भी.
कौन हैं रविंद्र चव्हाण जिन्हें बीजेपी ने पूरा महाराष्ट्र 'सौंप' दिया है?
रविंद्र चव्हाण कोई नया चेहरा नहीं हैं. 54 साल के चव्हाण डोंबिवली के माहिर सियासी खिलाड़ी बताए जाते हैं. 2009, 2014, 2019 और 2024 में डोंबिवली विधानसभा सीट से विधायकी जीत चुके हैं. 2024 में उन्होंने 77,106 वोटों से धुआंधार जीत दर्ज की थी.

रविंद्र चव्हाण कोई नया चेहरा नहीं हैं. 54 साल के चव्हाण डोंबिवली के माहिर सियासी खिलाड़ी बताए जाते हैं. 2009, 2014, 2019 और 2024 में डोंबिवली विधानसभा सीट से विधायकी जीत चुके हैं. 2024 में उन्होंने 77,106 वोटों से धुआंधार जीत दर्ज की थी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक चव्हाण ने अपनी पॉलिटिकल इनिंग 2000 में कल्याण-डोंबिवली नगर निगम (KDMC) से शुरू की, जहां वे पार्षद बने. इससे पहले वे स्टूडेंट पॉलिटिक्स में एक्टिव रहे. पार्षद बनने के बाद वे KDMC की स्थायी समिति के चेयरमैन बने. 2002 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के कल्याण उप-जिले के अध्यक्ष बनकर संगठन में अपनी धाक जमाई.
2016-2019 में देवेंद्र फडणवीस की सरकार में इन्हें पोर्ट्स, मेडिकल एजुकेशन, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी और फूड और सिविल सप्लाई जैसे मंत्रालय मिले. फिर 2022-2024 में एकनाथ शिंदे की महायुति सरकार में लोक निर्माण विभाग (PWD) संभाला और सिंधुदुर्ग के संरक्षक मंत्री भी रहे.
RSS कनेक्शनडोंबिवली में 25 साल से सक्रिय रविंद्र चव्हाण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से भी जुड़े रहे हैं. वे वीर सावरकर के फैन हैं. मॉरीशस में उनकी प्रतिमा लगवाने में इनका बड़ा रोल रहा. इतना ही नहीं, इन्होंने डोंबिवली में सावरकर उद्यान में 'ज्योत' नाम का प्रोग्राम चलाकर सावरकर की विचारधारा को बढ़ावा दिया.
दिसंबर 2024 में BJP के सदस्यता अभियान की कमान चव्हाण के हाथ में ही थी. 1.5 करोड़ नए मेंबर्स जोड़ने का टारगेट था, और इन्होंने इस टारगेट को हिट भी किया. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं,
"जब पार्टी सत्ता में होती है, तो सही समन्वय की आवश्यकता के कारण संगठनात्मक भूमिकाएं बहुत महत्वपूर्ण हो जाती हैं. चव्हाण की कार्यशैली ने यही सुनिश्चित किया.”
कोंकण की 39 विधानसभा सीटों में से 35 पर BJP की जीत में चव्हाण का बड़ा हाथ माना जाता है. इन सीटों पर कभी उद्धव ठाकरे की शिवसेना का रौब जमता था. पार्टी के एक अन्य नेता कहते हैं कि चव्हाण का प्रमोशन इस क्षेत्र में गहरी पैठ बनाने की भाजपा की मंशा को दर्शाता है. जहां पार्टी ने पिछले साल के विधानसभा चुनावों में अपना प्रदर्शन बेहतर किया था. इस नेता ने बताया,
"ये डिप्टी सीएम शिंदे को भी एक संदेश देता है, जिनका ठाणे, कल्याण, डोंबिवली और नवी मुंबई में प्रभाव है."
बता दें कि जनवरी 2025 में चव्हाण को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था. अगस्त 2022 से पार्टी के अध्यक्ष रहे बावनकुले महायुति 2.0 सरकार में राजस्व मंत्री बन गए थे. जिसके बाद से ये कुर्सी खाली थी. चव्हाण की ताजपोशी कोई सरप्राइज नहीं, बल्कि ‘फडणवीस की चाल का हिस्सा’ बताई जा रही है.
ये नियुक्ति इतनी खास क्यों?ये तो बात साफ है कि सियासत में कुछ भी बिना सोचे-समझे नहीं होता. चव्हाण की नियुक्ति के पीछे BJP ने कई चीजों को ध्यान में रखा है:
मराठा कार्ड: महाराष्ट्र में मराठा समुदाय का दबदबा है. मनोज जरांगे-पाटिल के आरक्षण आंदोलन ने इस समुदाय को सियासी तौर पर और ताकतवर बनाया. चव्हाण का मराठा होना BJP के लिए मास्टर स्ट्रोक है. पार्टी मराठा वोट बैंक को और पक्का करना चाहती है.
कोंकण का किला: कोंकण शिवसेना (उद्धव ठाकरे) का गढ़ रहा है. लेकिन 2024 के चुनाव में चव्हाण ने 39 में से 35 सीटें BJP की झोली में डाल दीं. अब अध्यक्ष बनकर वो इस इलाके में फिर चुनावी धमाल मचाने की कोशिश करेंगे.
BMC और लोकल इलेक्शन: इस साल के अंत में बृह्न्मुंबई नगर निगम (BMC) और बाकी स्थानीय निकायों के चुनाव होने हैं. चव्हाण की ठाणे जिले (कल्याण-डोंबिवली, नवी मुंबई) में जबरदस्त पकड़ है. शहरी वोटरों को लुभाने में इनके स्किल्स काम आएंगे.
फडणवीस का भरोसेमंद: चव्हाण को फडणवीस का 'लेफ्टिनेंट' माना जाता है. इस नियुक्ति से फडणवीस ने संगठन पर अपनी पकड़ और मजबूत कर ली है.
शिंदे को बैलेंस करना: एकनाथ शिंदे का शिवसेना के साथ गठबंधन है, लेकिन BJP कोई रिस्क नहीं लेना चाहती. चव्हाण ने 2024 में शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे की लोकसभा उम्मीदवारी का विरोध किया था. ये नियुक्ति शिंदे के प्रभाव को काउंटर करने की चाल भी है.
चव्हाण का करियर बेदाग नहीं है. कुछ मौके आए जब इनका नाम गलत वजहों से चर्चा में रहा:
मुंबई-गोवा हाईवे: जब रविंद्र चव्हाण PWD मंत्री थे, तो शिवसेना के रामदास कदम ने इन्हें ‘निकम्मा मंत्री’ कहकर तंज कसा था. क्योंकि मुंबई-गोवा हाईवे का काम समय पर पूरा नहीं हुआ. कदम ने कहा था,
“यहां तक कि भगवान राम भी 14 साल के वनवास के बाद लौटे थे, लेकिन हाईवे का काम पूरा होने का कोई संकेत नहीं दिख रहा है.”
इस प्रोजेक्ट को लेकर चव्हाण ने कहा था,
"मंत्री के रूप में मेरे कार्यकाल के दौरान 23,886 किलोमीटर तक फैली 92,000 करोड़ रुपये की लागत वाली सड़कें और 9,044 किलोमीटर पुलों से संबंधित कार्य पूरे किए गए."
लिंकन वाला बयान: 2016 में चव्हाण ने अब्राहम लिंकन का गलत उदाहरण देकर नरेंद्र मोदी और फडणवीस की तारीफ करते हुए दलित उत्थान की बात कही. ये बयान इतना गड़बड़ था कि BJP को बाद में सफाई देनी पड़ी थी. जब उनके बयान का वीडियो वायरल हुआ, तो चव्हाण ने नुकसान को कम करने की कोशिश की. उन्होंने ये तक कह दिया कि वीडियो एडिट किया गया है. उन्होंने कहा,
"मैंने कभी दलित समुदाय के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा है."
चव्हाण के सामने अब सबसे बड़ा टारगेट 2029 का विधानसभा चुनाव होगा. BJP का सपना है ‘शत प्रतिशत भाजपा’, यानी बिना गठबंधन के अकेले दम पर जीत. इसके लिए चव्हाण को संगठन को और चाक-चौबंद करना होगा. कोंकण और ठाणे में तो उनकी पकड़ पक्की है, लेकिन शिवसेना (उद्धव) और NCP (शरद पवार) जैसे विरोधी उनकी राह में कांटे बिछा सकते हैं.
इसके अलावा, BMC और दूसरे लोकल इलेक्शन में चव्हाण को शहरी वोटरों को लुभाना होगा. और हां, शिंदे की शिवसेना के साथ गठबंधन का बैलेंस बनाए रखना भी आसान नहीं होगा.
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