बिहार में पिछले आठ सालों में नशीली दवाओं (Drug cases) के इस्तेमाल के मामले चार गुना ज्यादा बढ़ गए हैं. साल 2016 में ऐसे 518 मामले दर्ज किए गए थे. जबकि 2024 में ये बढ़कर 2 हजार 411 तक पहुंच गया. डॉक्टर्स और जांच अधिकारी नशीली दवाओं के इस्तेमाल में बढ़ोतरी को शराबबंदी से जोड़ कर देख रहे हैं. साल 2016 में ही बिहार में शराबबंदी (Liquor Ban) लागू की गई थी.
'शराबबंदी के बाद चरस, गांजा की खपत बढ़ गई', अधिकारी ने बिहार की छिपी 'सच्चाई' उजागर कर दी
Bihar की राजधानी Patna के दो प्रमुख सरकारी अस्पताल पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (PMCH) और इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (IGIMS) के डॉक्टरों ने पिछले छह-सात सालों में नशीली दवाओं, नींद की गोलियां, दर्द निवारक दवाओं और सिंथेटिक पदार्थों के आदी लोगों की संख्या में वृद्धि की पुष्टि की है.

बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई (EOU) द्वारा शेयर किए गए आंकड़ों के मुताबिक, पिछले आठ सालों में नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) एक्ट, 1985 के तहत गिरफ्तार लोगों की संख्या भी बढ़ गई है. साल 2016 में ये संख्या 496 थी, जोकि 2024 में बढ़कर 1 हजार 813 हो गई है. इस साल मई तक NDPS एक्ट के तहत 569 मामले दर्ज हुए हैं और 577 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, EOU के आंकड़ों से ये भी पता चला है कि चरस, स्मैक (हेरोइन), ब्राउन शुगर(मिलावटी हेरोइन) और डोडा (अफीम की भूसी) जैसे नशीले पदार्थों की जब्ती में भी वृद्धि हुई है. डॉक्टरों का मानना है कि नशे के आदी लोग इनका इस्तेमाल शराब के विकल्प के तौर पर कर रहे हैं.
EOU के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल मानवजीत ढिल्लों ने राज्य में नशीले पदार्थों के सेवन में वृद्धि की बात को स्वीकार किया है. उन्होंने बताया, ‘हमने शराबबंदी के बाद से ग्रामीण इलाकों में गांजे और शहरी इलाकों में स्मैक की खपत में वृ्द्धि देखी है. शहरी इलाकों में युवा मेथ, ब्राउन शुगर और कफ सिरप जैसे सिंथेटिक नशीले पदार्थों का तेजी से प्रयोग कर रहे हैं.’
बिहार की राजधानी पटना के दो प्रमुख सरकारी अस्पताल पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (PMCH) और इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (IGIMS) के डॉक्टरों ने पिछले छह-सात सालों में नशीली दवाओं, नींद की गोलियां, दर्द निवारक दवाओं और सिंथेटिक पदार्थों के आदी लोगों की संख्या में वृद्धि की पुष्टि की है. IGIMS में मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख डॉ. राजेश कुमार ने बताया, शराब पर बैन के बाद से बिहार के ज्यादातर नशेड़ी आसानी से उपलब्ध और सस्ती चीजों का सेवन करने लगे हैं.
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PMCH और IGIMS के डॉक्टरों ने बताया कि उनके यहां पिछले छह-सात सालों में हर महीने कम से कम 200 ऐसे मरीजों का इलाज किया गया है. उन्होंने आगे बताया कि इनमें से अधिकतर मरीज हेरोइन, ब्राउन शुगर, गांजा, स्मैक, डोडा जैसे नशीले पदार्थों या इनहेलेंट (गोंद, व्हाइटनर, बोनफिक्स) के आदी हैं.
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