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'देखना था कि मेरे मरने पर कितने लोग आते हैं', रिटायर्ड सैनिक ने अपनी ही शवयात्रा निकलवाई, भोज भी कराया

मोहनलाल कहते हैं कि वो बस देखना चाहते थे कि उनकी शवयात्रा में कौन-कौन शामिल होता है. मोहनलाल कहते हैं कि जीते-जी तो सब पूछेंगे. असली कमाई तो यह है कि मरने के बाद आपकी शवयात्रा में कितने लोग आते हैं.

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गयाजी के मोहनलाल ने अपनी खुद की शवयात्रा निकलवाई (PHOTO- Social Media)

'मैं देखना चाहता था कि जब मेरी मौत हो, तो कितने लोग आते हैं.' ये कहना है बिहार के गयाजी में अपनी ही शवयात्रा में शामिल होने वाले एक रिटायर्ड एयरफोर्स सैनिक का. ऐसा कहा भी जाता है कि 'इंसान ने पूरे जीवन में क्या कमाया, ये जानना हो तो उसकी अंतिम यात्रा देख लो.' ये है तो कहावत, लेकिन इसमें काफी हद तक सच्चाई भी है. और इसी सच्चाई को जानने के लिए गयाजी के रिटायर्ड एयरफोर्स जवान मोहनलाल ने अपनी खुद की अंतिम यात्रा (Retired Air Force Soldier Mohanlal makes his own funeral procession) निकाली. मुक्तिधाम यानी शमशान घाट पहुंचने के बाद खुद का प्रतीकात्मक पुतला जलवाया. साथ में गाना भी बज रहा था 'चल उड़ जा रे पंछी, अब देश हुआ बेगाना'.

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गांव के लोगों के लिए करते हैं काम

ये पूरा मामला बिहार के गयाजी का है. जिले के गुरारू ब्लॉक में कोंची नाम का गांव पड़ता है. यहां इंडियन एयरफोर्स के एक रिटायर्ड जवान रहते हैं. नाम है मोहनलाल. एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार मोहनलाल क्षेत्र में समाजसेवा के काम भी करवाते हैं. कुछ समय पहले ही उन्होंने देखा कि बरसात की वजह से लोगों को शव जलाने में दिक्कत आ रही है. लिहाजा उन्होंने अपने खर्च से गांव में कई सुविधाओं से लैस एक मुक्तिधाम बनवाया.

मोहन लाल के दो बेटे हैं, जिसमें एक बेटा डॉ दीपक कुमार कोलकाता में डॉक्टर है. और दूसरा बेटा विश्व प्रकाश इंटर कॉलेज (10+2 विद्यालय) में  काम करता है. एक बेटी गुड़िया कुमारी हैं, जो धनबाद में रहती हैं. मोहन लाल की पत्नी जीवन ज्योति 14 वर्ष पहले गुजर गई थीं. तबसे मोहनलाल गांव के लोगों के लिए  काम करते आ रहे हैं.

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खुद की शवयात्रा निकाली, भोज भी करवाया

खुद की शवयात्रा निकालना अपने आप में अनोखी बात है. लिहाजा जब आसपास के लोगों को पता चला कि मोहनलाल अपनी शवयात्रा निकाल रहे हैं, तो बड़ी संख्या में लोग इसमें शामिल होने आए. मोहनलाल ने अर्थी बनवाई, खुद उस पर लेटे और मुक्तिधाम पहुंचने तक उसी पर बिल्कुल किसी शव की तरह ही पड़े रहे. मुक्तिधाम पहुंचने के बाद उनका प्रतीकात्मक पुतला जलाया गया और सामूहिक भोज का आयोजन किया गया.

‘मैं खुद से यह देखना चाहता था’

इस अनोखी शवयात्रा के बारे में बताते हुए मोहनलाल कहते हैं कि वो बस देखना चाहते थे कि उनकी शवयात्रा में कौन-कौन शामिल होता है. मोहनलाल कहते हैं कि जीते-जी तो सब पूछेंगे. असली कमाई तो यह है कि मरने के बाद आपकी शवयात्रा में कितने लोग आते हैं. वो कहते हैं 

मरने के बाद लोग अर्थी उठाते हैं, लेकिन मैं चाहता था कि यह दृश्य मैं खुद देखूं और जान सकूं कि लोग मुझे कितना सम्मान और स्नेह देते हैं.

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मोहनलाल की ये शवयात्रा पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है. इस अनोखी यात्रा, बैंडबाजे के साथ 'राम नाम सत्य है' की गूंज के बीच वे फूल-मालाओं से सजी अर्थी और भोज की लोगों के बीच खूब चर्चा है.

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