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मां-बाप, घर-बार सब छोड़ दिया, SIR की 'साधु समस्या' बनी बीजेपी का असली सिरदर्द

अयोध्या के साधु और संन्यासियों के SIR फॉर्म भरने में भाजपा कार्यकर्ताओं को एक अनोखी परेशानी से जूझना पड़ रहा है. ज्यादातर संत फॉर्म में अपनी मां के नाम का कॉलम खाली छोड़ रहे हैं. इससे वोटर लिस्ट से उनका नाम कटने का खतरा बढ़ गया है.

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संतों के एसआईआर फॉर्म भरने मेें आ रही हैं दिक्कतें (india today)

अयोध्या में रहने वाले विश्व हिंदू परिषद के नेता और संन्यासी रामविलास वेदांती ने अपने SIR (Special Intense revision) फॉर्म में माता का नाम ‘जानकी’ लिखा है. हालांकि ये उनकी मां का नाम नहीं है. ये भगवान राम की पत्नी सीता का दूसरा नाम है. उन्होंने ये इसलिए किया क्योंकि साधु-संन्यासी गृहस्थ नहीं होते. वह ‘सांसारिक मोह-माया और रिश्ते-नाते’ सब छोड़कर साधु बनते हैं. ऐसे में अपने पिता के नाम के आगे तो वह गुरु का नाम लिख देते हैं, लेकिन चूंकि उनके गुरु भी गृहस्थ नहीं होते यानी वह भी शादी-शुदा नहीं होते, इसलिए मां के नाम का कॉलम उन्हें खाली छोड़ना पड़ता है. 

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इंडियन एक्सप्रेस ने SIR प्रक्रिया के दौरान सामने आई इस जटिलत पर रिपोर्ट की है. रिपोर्ट कहती है कि इस समस्या ने बीजेपी को सोचने पर मजबूर कर दिया है. भाजपा नेताओं का मानना है कि SIR फॉर्म में मां का नाम खाली छोड़ने पर वोटर का मताधिकार छिन सकता है और ये बात साधु-संतों से ज्यादा उनकी पार्टी को टेंशन दे रही है. क्योंकि अयोध्या, मथुरा और काशी जैसे धार्मिक शहरों में हजारों की संख्या में साधु रहते हैं, जो भाजपा के वोटर माने जाते हैं. यही वजह है कि जब निर्वाचन आयोग ने SIR फॉर्म भरने की आखिरी तारीख को 11 दिसंबर से बढ़ाकर 26 दिसंबर किया तो सबसे ज्यादा राहत की सांस भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने ली. 

रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा नेता एक-एक साधु से संपर्क कर उनके SIR फॉर्म भरवा रहे हैं. मां के नाम वाली समस्या का तोड़ ये निकाला गया कि साधु-संन्यासी पहले तो ये कॉलम खाली न छोड़ें. जैविक मां-पिता का नाम नहीं लिख सकते तो इसकी जगह पर किसी ऐसी शख्सियत का नाम लिखें, जो उनकी धार्मिक मान्यता के हिसाब से पूजनीय हो. जैसे जानकी, पार्वती या किसी भी देवी का नाम. रामविलास वेदांती ने इसी सलाह को मानकर अपनी मां का नाम ‘जानकी' लिखा. 

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इंडियन एक्सप्रेस को उन्होंने बताया कि साधु-संतों में जिन्हें अपनी मां का नाम बताना होता है, वो जानकी ही बताते हैं. प्रेमशंकर दास नाम के एक अन्य संत ने कहा कि वो ‘विरक्त परंपरा’ का पालन करते हैं. न तो वह और न उनके गुरु ही गृहस्थ थे. ऐसे में उन्होंने आध्यात्मिक वजहों से अपनी माता का नाम ‘जानकी’ लिखा है और इस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

मथुरा-काशी में भी समस्या

अयोध्या के अलावा वाराणसी और मथुरा-वृंदावन के साधु-संत भी SIR फॉर्म में मां के नाम वाला कॉलम खाली छोड़ रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि उनके नाम मसौदा सूची से नहीं कटेंगे. लेकिन अगर कटते हैं तो वे वोटर्स लिस्ट का ड्राफ्ट पब्लिश होने के बाद आपत्तियां दर्ज कराएंगे.

चुनाव अधिकारी क्या कहते हैं?

इस समस्या पर अयोध्या के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट और ERO यानी निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी अनिरुद्ध प्रताप सिंह ने बताया कि अभी तो BLO साधुओं के पास जाकर उनका फॉर्म भर रहे हैं. साधु जो भी बताते हैं, उसे ही फॉर्म में भरा जा रहा है. अनिरुद्ध सिंह ने कहा, “हमने साधुओं से कहा है कि ये कानूनी दस्तावेज है. इसमें वो चाहें तो अपने जैविक मां-पिता का नाम लिख सकते हैं. इसके अलावा, जो लोग अपनी धार्मिक मान्यता के अनुसार मां का नाम सीता या जानकी बता रहे हैं, उन्हें भी दर्ज किया जा रहा है.”

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अधिकारी के मुताबिक, पहले के SIR में इस समस्या से कैसे निपटा गया था, इसके बारे में उन्हें जानकारी नहीं है. लेकिन, ये प्रक्रियाएं समय के साथ बदलती नहीं हैं. 

मां के नाम के अलावा, उन साधुओं के भी SIR फॉर्म भरने में दिक्कत हो रही है, जो किसी तरह की यात्रा पर हैं. कई साधुओं के पते पर गणना फॉर्म भेजे गए, लेकिन वो भरकर वापस नहीं आए. साधुओं के बारे में तो कहा ही जाता है- ‘रमता जोगी बहता पानी.’ यात्रा उनकी जीवनचर्या का हिस्सा है. एक्सप्रेस की रिपोर्ट में वृंदावन की सुदामा कुटी आश्रम का जिक्र है. यहां पर 167 फॉर्म भेजे गए थे, लेकिन उनमें से केवल 43 ही पूरी तरह भरे हुए वापस आए. बताया गया कि बाकी साधु यात्रा पर हैं. इसलिए उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है.

क्यों परेशान है भाजपा?

SIR फॉर्म न भरे जाने से साधु-संतों से ज्यादा दिक्कत तो भाजपा को है. वह भी तब जब पिछले साल ही लोकसभा चुनाव में उसे अयोध्या जैसी सीट गंवानी पड़ी हो. राम मंदिर निर्माण के बाद भाजपा कम से कम ये सीट गंवाने की उम्मीद तो नहीं कर रही थी. अयोध्या में तकरीबन 16 हजार साधु-संन्यासी रहते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक पार्टी को आशंका है कि अगर उनके फॉर्म नहीं भरे जाते तो यूपी विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को इस सीट पर बड़ा घाटा उठाना पड़ सकता है.

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