केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के बीच 'अल्पसंख्यकों' को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी बहस छिड़ गई है. मामला तब शुरू हुआ जब किरेन रिजिजू कहा कि भारतीय अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों से ज्यादा लाभ मिलता है. उनके इस बयान पर ओवैसी ने आपत्ति जताते हुए कहा कि भारत के संविधान ने अल्पसंख्यकों को अधिकार दिए हैं.
किरेन रिजिजू ने पूछा, 'अल्पसंख्यक पलायन क्यों नहीं करते?', ओवैसी ने 'बहुत बड़ा' जवाब दिया
Kiren Rijiju ने दावा किया कि India दुनिया का अकेला देश है जहां Minority को Majority से ज्यादा अधिकार, सुरक्षा और सुविधाएं मिलती हैं. उनके इस बयान पर AIMIM चीफ Asaduddin Owaisi ने पलटवार किया है.

किरेन रिजिजू ने सोमवार, 7 जुलाई को इंडियन एक्सप्रेस में एक आर्टिकल लिखा. इसमें उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का अकेला देश है जहां अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों से ज्यादा अधिकार, सुरक्षा और सुविधाएं मिलती हैं.
इस पर असदुद्दीन ओवैसी ने पलटवार करते हुए कहा,
“आप भारतीय गणतंत्र के मंत्री हैं, राजा नहीं. अल्पसंख्यकों के अधिकार 'खैरात' नहीं हैं, बल्कि संविधान से मिले मौलिक अधिकार हैं.”
ओवैसी ने पलटवार किया तो रिजिजू भी जवाब देने के लिए तैयार थे. उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट लिखकर सवाल उठाया,
"ठीक है, फिर हमारे पड़ोसी देशों से अल्पसंख्यक भारत आना क्यों पसंद करते हैं और हमारे अल्पसंख्यक पलायन क्यों नहीं करते?"
उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की योजनाएं सभी के लिए हैं, लेकिन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के जरिए अल्पसंख्यकों को खासतौर पर अतिरिक्त लाभ दिया जा रहा है.
असदुद्दीन ओवैसी ने रिजिजू के इस सवाल पर तीखी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों का भारत छोड़कर ना जाना इस बात का संकेत नहीं कि वे खुश हैं, बल्कि ये उनके संघर्ष, साहस और संविधान में विश्वास का प्रतीक है. उन्होंने लिखा,
“दरअसल, हमें पलायन करने की आदत नहीं है. हम अंग्रेजों से नहीं भागे, हम बंटवारे के दौरान नहीं भागे, और हम जम्मू, नेल्ली, गुजरात, मुरादाबाद, दिल्ली आदि नरसंहारों के कारण नहीं भागे. हमारा इतिहास इस बात का सबूत है कि हम अपने ऊपर जुल्म करने वालों के साथ ना तो सहयोग करते हैं और ना ही उनसे छिपते हैं. हम अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ना जानते हैं और हम इंशाअल्लाह लड़ेंगे.”
AIMIM प्रमुख ने आगे कहा,
"हमारे महान देश (भारत) की तुलना पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल और श्रीलंका जैसे असफल राज्यों से करना बंद करें. जय हिंद, जय संविधान!"
ओवैसी सियासी बयानबाजी तक नहीं रुके. उन्होंने अपने बयान में मुसलमानों की जमीनी हालत का जिक्र किया. उन्होंने अपने बयान में मुसलमानों की शिक्षा, रोजगार और सामाजिक स्थिति पर भी रोशनी डाली.
शिक्षा में गिरावट: असदुद्दीन ओवैसी ने दावा किया कि मुस्लिम छात्रों के लिए चलाई जा रही कई छात्रवृत्तियां बंद कर दी गई हैं, जैसे- मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप, प्री-मैट्रिक और मेरिट-कम-मीन्स स्कॉलरशिप. ओवैसी के मुताबिक, इससे मुस्लिम छात्रों की हायर एजुकेशन में भागीदारी घटी है.
आर्थिक बदहाली: ओवैसी ने कहा कि मुसलमानों की हिस्सेदारी अब अनौपचारिक और असंगठित क्षेत्रों में ज्यादा है, जहां रोजगार की कोई गारंटी नहीं होती. सरकारी आंकड़े भी बताते हैं कि मुसलमानों की आर्थिक हालत लगातार बिगड़ रही है.
मुस्लिम इलाकों में भेदभाव: मुस्लिम बहुल इलाकों में सड़क, पानी, स्कूल, अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है. ऐसे इलाकों को सरकारी योजनाओं से दूर रखा गया है.
नफरत और हिंसा का डर: ओवैसी ने पूछा कि क्या अल्पसंख्यकों को हर दिन पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, रोहिंग्या या जिहादी कहा जाना 'सम्मान' की बात है? उन्होंने सवाल किया कि क्या मॉब लिंचिंग करना सुरक्षा का उदाहरण है? क्या मस्जिदों और मजारों को बुलडोजर से गिराना विशेषाधिकार है?
लोकसभा सांसद ने ये भी कहा,"हम दूसरों से ज्यादा नहीं, सिर्फ संविधान में लिखे हक मांगते हैं." उन्होंने अपने बयान के आखिर में कहा,
"हम दूसरे देशों के अल्पसंख्यकों से तुलना की मांग नहीं कर रहे हैं. हम बहुसंख्यक समुदाय को मिलने वाली सुविधाओं से ज्यादा नहीं मांग रहे हैं. हम सिर्फ संविधान में दिए गए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय मांग रहे हैं."
इससे पहले किरेन रिजिजू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीते 11 सालों में अल्पसंख्यकों को मिले फायदे गिनवाए.
‘भागीदारी से भाग्योदय’ का सिद्धांत: अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास' के मूल मंत्र को अपनाते हुए 'भागीदारी से भाग्योदय' की नीति को लागू किया.
प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम (PMJVK): अल्पसंख्यकों को समर्पित इस योजना के तहत पिछले 11 सालों में 5.63 लाख इंफ्रास्ट्रक्चर यूनिट्स (स्वास्थ्य, शिक्षा, सफाई, ऊर्जा आदि) को मंजूरी दी गई. इनमें से 2.35 लाख यूनिट्स (51 फीसदी) को जियो-टैग किया गया है. इस योजना पर 10,749.65 करोड़ रुपये खर्च किए गए. 2023 से यह योजना पूरी तरह डिजिटल कर दी गई है.
छात्रवृत्तियों में बढ़ोतरी: बीते 10 सालों में छात्रवृत्ति देने में 172 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया. महिला लाभार्थियों की संख्या 182 फीसदी बढ़ी है.
प्रधानमंत्री विरासत का संवर्धन (PM VIKAS): 9.25 लाख से ज्यादा लोगों को प्रशिक्षण और रोजगार में सरकार से मदद मिली. अल्पसंख्यक कारीगरों और सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने के लिए 'लोक संवर्धन पर्व' जैसे कार्यक्रम आयोजित किए गए.
स्किल और रोजगार: 2014 में जहां जीरो-स्ट्रक्चर प्लेसमेंट था, वहीं अब तक 10 लाख से ज्यादा लोगों को स्किल और प्लेसमेंट दिया जा चुका है. सरकार ने खासतौर पर युवा और शिक्षित महिलाओं पर जोर दिया है.
हज यात्रा: पिछले 10 सालों में हज कार्यक्रम में सुधार हुआ है. स्वास्थ्य संबंधी घटनाएं और मौतें बेहद कम हुई हैं. भारत का हज कोटा 2014 में 1.36 लाख से बढ़कर 2025 में 1.75 लाख हो गया है.
महिला हज यात्री: 2018 में महिला हज यात्रियों के लिए ‘मेहरम के बिना महिला’ (LWM) श्रेणी शुरू की गई, जिसके तहत 2024 में 4,558 महिलाओं ने हज किया.
ये सभी उपलब्धियां किरेन रिजिजू ने अल्पसंख्यकों के लिए केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए गिनवाईं. उन्होंने जोर दिया कि भारत में अल्पसंख्यक विकास की यात्रा में बराबरी के भागीदार हैं.
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