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कोरोनावायरस में लगातार बदलाव क्यों आ रहा? डॉक्टर ने समझा दिया

किसी वायरस का मकसद ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को इंफेक्ट करना होता है. अकेला वायरस ऐसा नहीं कर सकता. इसलिए, वो लगातार अपनी कॉपीज़ बनाता जाता है. जब वायरस की किसी कॉपी में ज़्यादा बदलाव आ जाता है, तो वो कॉपी 'वेरिएंट' कहलाती है.

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हर कुछ वक्त में कोविड-19 के फैलने की ख़बरें आती हैं (फोटो:Freepik)

‘आखिर कब जाएगा कोरोना?’ जब भी कोविड-19 के मामले बढ़ते हैं, सबसे पहले यही सवाल मन में आता है. सवाल ये भी आता है कि आखिर बिन बुलाए मेहमान की तरह, कोविड हर कुछ समय में लौट क्यों आता है और जब भी आता है, हर बार एक नए रूप में आता है. ऐसा क्यों? हम ख़बरों में वेरिएंट, सब-वेरिएंट जैसे शब्द पढ़ रहे हैं, पर इनका मतलब क्या है?

देखिए, वायरस का बड़ा सिंपल-सा फॉर्मूला है. इसे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों में फैलना है. मगर अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता. इसलिए, वायरस लगातार अपनी कॉपी बनाता जाता है. जब भी ये वायरस अपनी कॉपी बनाता है, ज़रूरी नहीं वो हूबहू उसके जैसी ही हो. यानी नई कॉपी में कुछ बदलाव हो सकता है. जब वायरस के जेनेटिक रंग-रूप में बहुत बड़ा बदलाव आता है, तो ये एक नया ‘वेरिएंट’ बन जाता है. जैसे डेल्टा और ओमिक्रॉन.

ये वेरिएंट भी लगातार अपनी कॉपीज़ बनाते रहते हैं. जब ऐसी ही किसी कॉपी में थोड़ा-सा जेनेटिक बदलाव आता है, तो वो ‘सब-वेरिएंट’ कहलाता है. आजकल कोविड के जो मामले बढ़ रहे हैं, वो ओमिक्रॉन के सब-वेरिएंट्स की वजह से बढ़ रहे हैं. क्या हमें इन सब-वेरिएंट्स से डरने की ज़रूरत है? चलिए समझते हैं. ये भी समझेंगे कि कोविड बार-बार लौटकर क्यों आता है. कोविड के वायरस में लगातार बदलाव क्यों आ रहा है. क्या कोविड पहले जितना ख़तरनाक नहीं रहा. अगर नहीं, तो इसके पीछे वजह क्या है.

कोविड के वायरस में लगातार बदलाव क्यों आ रहा है?

ये हमें बताया डॉक्टर अक्षय बुधराजा ने. 

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डॉ. अक्षय बुधराजा, हेड, रेस्पिरेटरी एंड स्लीप मेडिसिन, आकाश हेल्थकेयर

हर वायरस में धीरे-धीरे बदलाव आते ही हैं. चाहें वो इन्फ्लुएंजा वायरस हो, RAC वायरस हो या कोरोनावायरस. ये बदलाव बड़े हैं या छोटे, ये निर्भर करता है कि बदलाव वेरिएंट में है या सब-वेरिएंट में. पिछले दो-ढाई सालों में जो बदलाव देखने को मिले हैं, वो ओमिक्रॉन वेरिएंट के सब-वेरिएंट में हुए हैं. ये बदलाव बहुत छोटे होते हैं. ये किसी भी वायरस में देखने को मिलते हैं. कोरोनावायरस से पहले इन्फ्लुएंजा वायरस में ये बदलाव हर कुछ समय में देखने को मिलता था. ओमिक्रॉन के सब-वेरिएंट में ये बदलाव दो गुना तेज़ है. 

हर कुछ समय में कोविड के नए सब-वेरिएंट क्यों आ रहे हैं?

कोविड का नया वेरिएंट नहीं आ रहा है. कोविड के पुराने वेरिएंट ओमिक्रॉन ने काफ़ी तबाही मचाई थी. ये बहुत तेज़ी से फैला था. अब जो भी बदलाव आ रहे हैं, वो इसी ओमिक्रॉन के सब-वेरिएंट में आ रहे हैं. वायरस वही है ओमिक्रॉन, बस उसमें छोटे-छोटे बदलाव आ रहे हैं. ये बदलाव तब आते हैं, जब वायरस शरीर के अंदर जाता है. हमारी इम्यूनिटी उससे लड़ती है. इससे वायरस में कुछ जेनेटिक बदलाव होते हैं. इस वजह से हमें कुछ हल्के लक्षण देखने को मिलते हैं. 

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कोविड-19 के लक्षण हों, तो टेस्टिंग कराना ज़रूरी है

क्या कोविड अब भी पहले जितना ख़तरनाक है?

कोविड अब पहले जितना ख़तरनाक नहीं है. जब पहली बार कोविड हुआ था, तब ये एक नया वायरस था. हमारे शरीर में इसके ख़िलाफ़ इम्यूनिटी नहीं बनी थी. अब लगभग हर इंसान को कोविड हो चुका है. ज़्यादातर लोगों ने वैक्सीन लगवा ली है. यानी हमारे अंदर कोविड के प्रति इम्यूनिटी भी बन चुकी है. खासतौर पर ओमिक्रॉन वेरिएंट के ख़िलाफ़. क्यों? क्योंकि ओमिक्रॉन ही सबसे ज़्यादा फैला था. अब लक्षण इसलिए देखने को मिलते हैं, क्योंकि वायरस के सब-वेरिएंट में बदलाव आते हैं. शरीर की इम्यूनिटी वायरस से अच्छे से लड़ती है. इसलिए केवल फ्लू जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं. जैसे मामूली सर्दी-ज़ुकाम, गले में ख़राश और बुखार. अगर इसकी तुलना इन्फ्लुएंजा या RAC वायरस से करें तो ये ज़्यादा जल्दी फैलता है. 

क्यों कोविड पहले जितना ख़तरनाक नहीं रहा?

नहीं, क्योंकि अब बदलाव कोविड के एक ही वेरिएंट ओमिक्रॉन के सब-वेरिएंट में आ रहे हैं. अगर वायरस के जेनेटिक रंग-रूप में बहुत बड़ा बदलाव आता है, तो ये एक नया वेरिएंट बन जाता है. अगर वायरस में बहुत बड़ा बदलाव आ जाए तो ये ख़तरे की बात हो सकती है. जब तक ये बदलाव किसी वेरिएंट के सब-वेरिएंट में आ रहा है, जैसे ओमिक्रॉन के  सब-वेरिएंट में, तो घबराने की बात नहीं है. हमारे शरीर में कोविड-19 होने और वैक्सीन लगने के बाद इसके प्रति इम्यूनिटी बन चुकी है. कई बार हमें पता चला कि कोविड हुआ है. कई बार कोविड तो हुआ, पर लक्षण पता नहीं चले. इससे शरीर में अच्छी-खासी एंटीबॉडीज़ बन चुकी हैं. इस वजह से जो भी लक्षण महसूस हो रहे हैं, वो काफ़ी हल्के हैं. हालांकि इम्यूनिटी कमज़ोर होने की वजह से बच्चों और बुज़ुर्गों को अभी भी ख़तरा है.

अब जो नई वैक्सीन आ रही हैं, वो ओमिक्रॉन वेरिएंट को टारगेट कर रही हैं. लोग बूस्टर डोज़ इसलिए नहीं ले रहे क्योंकि अभी कोई नई वैक्सीन आई नहीं है. अगर ऐसी कोई वैक्सीन मार्केट में आती है, तो कोरोना की भी वैक्सीन लगवानी पड़ेगी. जैसे हम इन्फ्लुएंजा की सालाना वैक्सीन लगवाते हैं ये वैक्सीन वायरस में हो रहे बदलावों के अनुसार हर 6 महीने-सालभर में अपडेट होती रहेगी.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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