इज़रायली फिल्ममेकर Nadav Lapid इन दिनों भारत में चल रहे एक विवाद का केंद्र बने हुए हैं. IFFI 2022 में The Kashmir Files पर उनकी टिप्पणी पर हंगामा मच गया है. नदाव, 53वें इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया के ज्यूरी हेड हैं. 28 नवंबर की शाम उन्होंने इस इवेंट के मंच से कहा-
कौन हैं नदाव लैपिड, जिन्होंने 'द कश्मीर फाइल्स' को अश्लील, प्रोपगैंडा फिल्म बोलकर हलचल मचा दी?
नदाव को अपने देश में भी कई किस्म के इल्ज़ाम झेलने पड़ते हैं. मगर वही उनकी फिल्ममेकिंग की मेन थीम है.
'' 'द कश्मीर फाइल्स' फिल्म देखकर हम सभी डिस्टर्ब और हैरान थे. यह हमें एक प्रोपेगेंडा, अश्लील फिल्म की तरह लगी, जो इतने प्रतिष्ठित फिल्म समारोह के लिए उचित नहीं है. मैं आप लोगों के साथ इस असंतोष को खुले तौर पर साझा कर सकता हूं. क्योंकि इस समारोह की आत्मा ही यही है कि हम यहां आलोचनाओं को स्वीकार करते हैं और उस पर चर्चा करते हैं.
कार्यक्रम की सिनेमाई समृद्धि, इसकी विविधता और इसकी जटिलता के लिए मैं समारोह के प्रमुख और प्रोग्रामिंग के निदेशक को धन्यवाद देना चाहता हूं. हमने डेब्यू कॉम्पटीशन में सात फिल्में देखीं और अंतरराष्ट्रीय कॉम्पटीशन में 15 फिल्में देखीं. इसमें से 14 फिल्मों में सिनेमाई विशेषताएं थीं. 15वीं फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' ने हम सभी को परेशान और हैरान किया है.''
'द कश्मीर फाइल्स' के बारे में लंबे समय से इस तरह की बातें कही/लिखी जा रही हैं. मगर केंद्रीय मंत्रियों के सामने मंच से ऐसा कहने का साहस अब तक किसी ने नहीं किया था. क्योंकि सबको डर था कि वो इससे जुड़ा जो कुछ भी कहेंगे, उन्हें इसके नतीजे भुगतने पड़ेंगे. नदाव IFFI में किसी देश से ज़्यादा सिनेमा के प्रतिनिधी के तौर पर शामिल हुए थे. उन्हें जो सही लगा, उन्होंने वो कहा. इसका नतीजा ये हुआ कि भारत में इज़रायल के राजदूत नाओर जिलोन ने कहा कि लैपिड को अपने बयान पर शर्मिंदा होना चाहिए. उन्होंने भारत से माफी भी मांगी है. इज़रायल राजदूत ने ट्विटर पर एक थ्रेड लिखकर लैपिड की आलोचना की.
# कौन हैं नदाव लैपिड?
नदाव लैपिड इज़रायली फिल्ममेकर हैं. उनका जन्म 1975 में तेल अविव में रहने वाले यहूदी परिवार में हुआ था. माता-पिता इज़रायली फिल्म इंडस्ट्री में काम करते थे. पिता राइटर थे और मां फिल्में एडिट किया करती थीं. लैपिड ने तेल अविव यूनिवर्सिटी से फिलॉसफी की पढ़ाई की. इसके बाद वो इज़रायल की आर्मी से जुड़ गए. मैंडेटरी सर्विस के लिए. यहां से निकलने के बाद वो पेरिस चले गए. लैपिड पेरिस में लिटरेचर की पढ़ाई कर रहे थे. वो फिल्ममेकिंग का कोर्स करने के लिए वापस अपने देश लौटे. येरुसलेम के सैम स्पीगल फिल्म एंड टेलीविज़न स्कूल में दाखिला पाया.
फिल्ममेकिंग की पढ़ाई करने के साथ-साथ वो लिख भी रहे थे. 2001 में उनकी पहली नॉवल 'कंटिन्यूआ बाइलांडो' (Continua Bailando) प्रकाशित हुई. इसके बाद वो इज़रायल के कई डॉक्यूमेंट्री मेकर्स के साथ जुड़ गए. वो सिनेमैटोग्राफी किया करते थे. 2003 में नदाव लैपिड ने अपनी पहली डॉक्यूमेंट्री 'बॉर्डर प्रोजेक्ट' डायेरक्ट की. उसके बाद वो लगातार कई शॉर्ट फिल्मों और डॉक्यूमेंट्रीज़ पर काम करते रहे. अगले 7-8 सालों में उन्होंने 'रोड', 'एमिलीज़ गर्लफ्रेंड', 'Gaza Sderot' जैसे प्रोजेक्ट्स डायरेक्ट किए.
# फिल्ममेकिंग, विवाद और फिलॉसफी
नदाव लैपिड के साथ अच्छी चीज़ ये थी कि वो उन्हें जो जैसा लगता, उसे वैसे ही वो पर्दे पर उतार देते. 2011 में उन्होंने अपने करियर की पहली फिल्म 'पुलिसमैन' डायरेक्ट की. इस फिल्म के आधार पर उन्हें इज़रायल से निकलने वाले सबसे काबिल फिल्ममेकर्स में गिना जाने लगा. ऐसा क्या था इस फिल्म में? ये फिल्म दो पक्षों की लड़ाई दिखाती है. इज़रायली पुलिस और लेफ्ट विंग के आतंकवादी. फिल्म पाला नहीं चुनती. न ही किसी को सही या गलत बनाती-बताती है. इसका फैसला दर्शकों पर छोड़ दिया जाता है कि वो किसके साथ खड़े होना चाहते हैं. फिल्म ब्लैक एंड वाइट में डील नहीं करती. वो बताती है कि रियलिटी उतनी सिंपल नहीं है, जितनी अमूमन बताई या दिखाई जाती है. साधाषण विषयों की जटिलता पर बात होती है. खैर, 'पुलिसमैन' ने दुनियाभर के फिल्म फेस्टिवल्स में कई अवॉर्ड जीते. प्रतिष्ठित लोकार्नो फिल्म फेस्ट में 'पुलिसमैन' को स्पेशल ज्यूरी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. येरुसलेम फिल्म फेस्टिवल में भी इस फिल्म ने कई अवॉर्ड अपने नाम किए.
नदाव लैपिड की फिल्ममेकिंग के बारे में जब आप पढ़ने और समझने की कोशिश करते हैं, तो उसमें एक चीज़ स्टैंड आउट करती है. वो चीज़ों को उसी तरीके से पेश करते हैं, जैसी वो हैं. उसे सिंप्लीफाई नहीं करते. अगर वो किसी विषय को लेकर कंफ्यूज़ हैं, तो वो कंफ्यूज़न आपको उनकी फिल्ममेकिंग में दिखलाई पड़ती है. उनका फिलॉसफी बैकग्राउंड भी उनकी फिल्मों से झांकता है.
आगे नदाव लैपिड ने The Kindergarten Teacher नाम की फिल्म डायरेक्ट की. ये फिल्म एक पांच साल के बच्चे के बारे में बात करती है, जो कविताएं लिखता है. उस बच्चे और उसकी किंडरगार्टन टीचर के बीच जो संबंध है, वो फिल्म का मेन प्लॉट है. उस बच्चे की पोएट्री के माध्यम से कई थीम्स पर बात होती है. ये अपने आप में कितनी वीयर्ड सिचुएशन है कि एक पांच साल का बच्चा कविताएं करता है. और वो अपनी कविताओं के माध्यम से दुनियाभर की दिक्कतों पर विमर्श कर रहा है. इस किस्म का एब्सर्डिज़्म लैपिड के सिनेमा में पाया जाता है. 'द किंडरगार्टन टीचर' को 2014 कान फिल्म फेस्टिवल के इंटरनेशनल क्रिटिक्स वीक में प्रीमियर किया गया था.
2019 में नदाव लैपिड ने Synonyms नाम की फिल्म डायरेक्ट की. ये कमोबेश उनकी सेमी-ऑटोबायोग्राफिकल फिल्म थी. ये एक यंग इज़रायली लड़के की कहानी थी, जो इज़रायल में मिलिट्री सर्विस पूरी करने के बाद पेरिस चला जाता है. मगर वहां जाने के बाद वो हिब्रू बोलने से बचता है. वो अपनी इज़रायली इमेज से निजात पाना चाहता है. ये फिल्म एक इंसान और खुद के साथ उसके कॉम्पिलिकेटेड रिलेशनशिप के बारे में थी. वो अपने देश के बारे में फील कुछ करना चाहता है, मगर वो फील कुछ और करता है. 'सिनोनिम्स' ने प्रतिष्ठित बर्लिन फिल्म फेस्टिवल का टॉप प्राइज़ जीता.
2021 में नदाव की आखिरी फिल्म Ahed's Knee रिलीज़ हुई. ये एक फिल्ममेकर की कहानी थी. एक फिल्म के प्रीमियर के दौरान उसकी मुलाकात देश के कल्चरल मिनिस्टर से होती है. इसके बाद उसके जीवन में आमूलचूल बदलाव आ जाता है. उसे अपनी आज़ादी और अपनी मां की जान बचाने के लिए लड़ना पड़ता है. ये फिल्म इज़रायल में लोगों की आज़ादी छीनने और मिलिट्री के वर्चस्व पर कटाक्ष करती है.
# इज़रायल में भी नदाव लैपिड पर लगते रहे हैं कई इल्ज़ाम
इज़रायल में नदाव की फिल्ममेकिंग और उनके विचारों के आधार पर उनसे सवाल किए जाते हैं. सबसे बड़ा सवाल, जो उनके सामने अलग-अलग तरीके से खड़ा होता है, वो ये कि लैपिड देशभक्त हैं या देशद्रोही. लैपिड जिस तरह की फिल्में बनाते हैं, उसमें वो इज़रायल को वैसा ही दिखाते हैं, जैसा वो देश है. जैसे 'रंग दे बसंती' के एक सीन में माधवन का किरदार कहता है- 'कोई भी देश परफेक्ट नहीं होता. उसे परफेक्ट बनाना पड़ता है.' जब तक कमियां नहीं पता होंगी, उस चीज़ को सुधारा नहीं जा सकता. लैपिड अपनी फिल्मों में इज़रायल की उन्हीं कमियों को उजागर करते हैं. इसी वजह से उनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि वो अपने देश से प्रेम नहीं करते. या अन्य शब्दों में कहें, तो देशद्रोही हैं. जिन चीज़ों की वजह से लोग उनके राजनीतिक झुकाव को लेकर कंफ्यूज़ रहते हैं, लैपिड की फिल्ममेकिंग का मेन थीम ही वो है. वो खुद अपनी फिल्मों में इस तरह के कंफ्यूज़न पर बात करते हैं. और यही चीज़ उन्हें एक अच्छा फिल्ममेकर बनाती है.
नदाव अपने एक इंटरव्यू में एक किस्सा बताते हैं. उन्होंने कहा, जब उनकी फिल्म 'सिनोनिम्स' का प्रीमियर हो रहा था, तब इज़रायल की कल्चरल मिनिस्टर मिरी रेगेव ने वहां एक आदमी को भेजा. वो शख्स लैपिड के पास आया और सीधे कहा-
''हाय, मैं ये पता लगाने आया हूं कि आपकी फिल्म एंटी है या प्रो.''
यानी आपकी फिल्म सरकार विरोधी है या सरकार का समर्थन करने वाली.
इसके जवाब में लैपिड ने कहा-
''जैसे ही आपको पता चले, प्लीज़ मुझे भी बताइएगा.''
नदाव लैपिड इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया से भी जुड़े रहे हैं. पिछले साल IFFI में उनकी फिल्म Ahead's Knee को 'सोल ऑफ एशिया सेक्शन' (Soul of Asia section) में प्रदर्शन के लिए बुलाया गया था. इस साल वो IFFI की ज्यूरी को हेड कर रहे थे.