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'तेज़ाब' वाले लोटिया पठान यानी किरण कुमार आज कल कहां हैं?

किरण कुमार ने कॉलेज में मारपीट की और डायरेक्टर ने उन्हें फिल्म का हीरो बना डाला.

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'तेज़ाब' के एक सीन में अनिल कपूर, माधुरी दीक्षित और किरण कुमार.

बचपन में हमारे मोहल्ले में एक नियम था. रात का खाना खाने के बाद बच्चे गली में इकट्ठा होते. स्ट्रीट लाइट के नीचे क्रिकेट मैच खेला जाता. जगह इतनी सी थी कि वन टिप आउट ने भावी क्रिकेटर्स के करियर खत्म कर दिए. खैर, रोज़ बिना बुलाए सब हाज़िर होते. सिवाय गुरुवार के. उस दिन भी मोहल्ले में रहने वाले दो भाइयों के अलावा सब आते. उनसे कारण पूछते तो जवाब मिलता कि ‘करण को देखना है’. उनका पूरा परिवार रात को करीब नौ या साढ़े नौ बजे करण को देखता. डिटेक्टिव करण को. ये दूरदर्शन पर आने वाला एक धारावाहिक था. 

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‘डिटेक्टिव करण’ में किरण कुमार. 

हमने भी करण को देखा. लेकिन सिर्फ डिटेक्टिव करण तक नहीं. हमने उन्हें लोटिया पठान के रूप में देखा. वो लोटिया जो मुन्ना का कट्टर दुश्मन था. हमने उन्हें उस आदमी में देखा जो सुनील शेट्टी के साथ अपनी बेटी की शादी नहीं होने देता. जिसकी वजह से सुनील शेट्टी को पांच से पांच सौ करोड़ तक का सफर करना पड़ जाता है. यहां बात हो रही है किरण कुमार की. वो किरण कुमार, जिनका सुंदर सपना मीना कुमारी ने तोड़ दिया था. कॉलेज में मार पिटाई की, ऐसी कि कॉलेज बंद करवा दिया. इंदिरा गांधी के एक फैसले ने उनका पूरा करियर चौपट कर दिया. संभले, उभरे और गुजरातियों के अमिताभ बच्चन बन बैठे. फिल्मी माहौल में पले बढ़े इस लड़के का सफर कैसा रहा, वो आज कल कहां हैं, कौन सी फिल्मों और शोज़ में काम कर रहे हैं. आज बात करेंगे.

# मीना कुमारी ने पास बुलाकर छन्न से सपना तोड़ दिया

किरण का फंडा बचपन से क्लियर था, कि बड़े होकर ऐक्टर बनना है. वो अपने पिता जीवन से प्रभावित थे. उन्हें फिल्मों की तैयारी करते देखते. उनके साथ फिल्म के सेट्स पर जाते, ऐक्टर्स से मिलते. जीवन अपने समय के दिग्गज कैरेक्टर आर्टिस्ट्स में से एक थे. 300 से ज़्यादा फिल्मों में काम किया. किसी में लाला बने तो किसी में रॉबर्ट. उनके निभाए नारद मुनि के किरदार को कैसे भूला जा सकता है. बताया जाता है कि वो इकलौते ऐसे कलाकार थे, जिन्होंने एक ही किरदार कई फिल्मों में निभाया. वो 61 फिल्मों में नारद मुनि बने थे. 

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नारद मुनि के किरदार में जीवन. 

जिस तरह किरण को बचपन में ही पता था कि उन्हें ऐक्टर बनना था, ठीक उसी तरह एक और बात पर यकीन था. मीना कुमारी से शादी करनी है. 1960 की बात है. उस वक्त किरण की उम्र करीब आठ या नौ साल रही होगी. पिता ने एक दिन बातों-बातों में बताया कि वो ‘कोहिनूर’ नाम की फिल्म पर काम कर रहे हैं. दिलीप कुमार और मीना कुमारी लीड में है. ये आखिरी नाम सुनकर किरण की आँखें कोहिनूर से ज़्यादा चमक गईं. उन्होंने पिता के साथ फिल्म के सेट पर चलने की ज़िद की. पास से मीना कुमारी को देखना चाहते थे. अपने दिल की बात बयां करनी थी. फिल्म सेट पर पहुंचे. दूर देखा कि मीना कुमारी एक कुर्सी पर बैठी हैं. पिता ने मिलवाया कि हैलो, ये मेरा बेटा है. मीना ने किरण को पास बुलाकर अपनी गोद में बिठा लिया. कहा कि कितना क्यूट बच्चा है. ये तारीफ मिलनी थी और किरण का सपना टूटना था. मीना कुमारी ने उन्हें बच्चा मान लिया था. अब ये शादी नहीं हो पाएगी.

किरण अपने इंटरव्यूज़ में बताते हैं कि बचपन से ही उन्हें खूब लाड़ मिला. नतीजतन वो शरारती हो चले. घर पर किसी की बात नहीं सुनते. बेटे को कैसे सुधारा जाए, जीवन को ये समझ नहीं आ रहा था. उन्होंने अपने एक दोस्त से बात की. दोस्त भी फिल्म इंडस्ट्री से ताल्लुकात रखता था. उसने समझाया कि इंदौर के बोर्डिंग स्कूल भेज दो. यही हुआ भी. स्कूल के बाहर एक बोर्ड हुआ करता था. आज भी है. जहां मेधावी छात्रों के नाम लिखे जाते हैं. जीवन ने कहा कि तुम्हारा नाम यहां होना चाहिए. किरण पढ़ाई में अच्छे नहीं थे, खासतौर पर मैथ्स से जन्मजात दुश्मनी थी मै. क्रिकेट खेलना शुरू किया, ड्रामे में हिस्सा लेने लगे, एग्ज़ाम में नकल करके काम चल जाता. कुछ ही समय में स्कूल के सबसे पॉपुलर बच्चे बन गए. उनका नाम स्कूल के बोर्ड पर छप चुका था.

स्कूली पढ़ाई पूरी हुई. घर लौट आए. उस दौरान उम्र रही होगी करीब 15 या 16 साल. पिता किसी फिल्म पर काम कर रहे थे. देव आनंद हीरो थे. फिल्म का नाम था ‘गैम्बलर’. एक दिन शूटिंग के बाद जीवन घर आए. आंखों में तेज लिए एक ऐक्टर के बारे में बताने लगे. ‘नया लड़का है, कमाल का ऐक्टर. टिपिकल हीरो जैसा चेहरा नहीं है लेकिन दिलचस्प चेहरा है. पूना में कहीं से पढ़कर आया है. तुम्हें उससे मिलना चाहिए.’ पिता ने जब इतनी तारीफ कर दी तो स्वाभाविक रूप से किरण उस नए ऐक्टर से मिलना चाहते थे. शूटिंग पर गए. जीवन ने नए लड़के से मिलवाया. उस शख्स ने हाथ बढ़ाकर कहा,

Hi, I am Shatrughan Sinha. 

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‘गैम्ब्लर’ के सीन में देव आनंद के साथ शत्रुघन सिन्हा. 

किरण ने उन्हें अपने ऐक्टिंग इंट्रेस्ट के बारे में बताया. शत्रुघ्न सिन्हा ने उन्हें पुणे के फिल्म एंड टेलिविज़न इंस्टिट्यूट यानी FTII के बारे में बताया. कहा कि मैं भी वहीं से पढ़कर निकला हूं. तुम्हें ज़रूर अप्लाइ करना चाहिए. किरण मान गए और उन्होंने FTII में एडमिशन ले लिया.

# मारपीट करने के बाद पहली फिल्म मिली

किरण ने FTII में ऐक्टिंग डिपार्टमेंट जॉइन किया था. सब कुछ सही चल रहा था कि अचानक एक दिन बड़ी गड़बड़ हुई. उनके डिपार्टमेंट के बच्चों की डायरेक्शन डिपार्टमेंट वालों से लड़ाई हो गई. डायरेक्शन वालों ने फैसला लिया कि ऐक्टिंग वालों के साथ अब से काम नहीं करेंगे. इसमें ऐक्टिंग वालों का बड़ा नुकसान था. कल को कॉलेज से पास होने पर दिखाने के लिए कुछ नहीं होगा, कि कॉलेज में किस शॉर्ट फिल्म में काम किया. बात और बिगड़ी. झड़प, मुक्कालात तक पहुंची. पुलिस को बुलाना पड़ा. किरण समेत चार बच्चों को कॉलेज से निकाल दिया गया. 

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कॉलेज में मारपीट के चलते किरण को निकाल दिया गया. 

ऐक्टिंग के बाकी बच्चे इस पर नाराज़ हुए. लड़े तो डायरेक्शन वाले भी थे, उन्हें क्यों नहीं निकाला. मैनेजमेंट के फैसले के खिलाफ धरने पर बैठ गए. 45 दिन तक कॉलेज बंद रहा. कॉलेज मैनेजमेंट को कोई रास्ता न सूझे. उन्होंने मसले को सुलझाने के लिए एक कमिटी बनाई. ख्वाजा अहमद अब्बास उस कमिटी का हिस्सा थे. ‘आवारा’, ‘नीचा नगर’ और ‘जागते रहो’ जैसी फिल्में लिखने वाले के ए अब्बास. अमिताभ बच्चन को लेकर ‘सात हिंदुस्तानी’ बनाने वाले के ए अब्बास. वो बच्चों से बात करने कॉलेज पहुंचे.

किरण को पहचान गए. कहा कि तुम्हारे पिता इतने शरीफ हैं और तुम गुंडागर्दी करते हो. डांट लगाई. अंत में कहा कि कल मुझे मेरे गेस्ट हाउस आकर मिलो. किरण को लगा कि डांट का कोटा अभी पूरा नहीं हुआ है. वो अगले दिन गेस्टहाउस पहुंचे. डांट नहीं पड़ी. बल्कि एक अनपेक्षित खुश खबर मिल गई. के ए अब्बास ने कहा कि मैं एक फिल्म बना रहा हूं, ‘दो बूंद पानी’. उसमें लंबू इंजीनियर की ज़रूरत है. वो रोल करना चाहोगे? किरण तुरंत मान गए. लड़ाई-झगड़े की वजह से उन्हें अपनी पहली फिल्म मिल गई थी.

# इंदिरा गांधी के एक फैसले ने करियर डुबो दिया

‘दो बूंद पानी’ की शूटिंग जैसलमेर में हुई. वो भी बहुत मुश्किल हालात में. किरण बताते हैं कि धूल और चिलचिलाती गर्मी के बीच उन्हें नहाने के लिए सिर्फ एक पानी बाल्टी दी जाती. दो दिन में एक बाल्टी पानी. ऐक्टिंग के अलावा उनसे प्रोडक्शन के काम भी करवाए जाते. किसी ऐक्टर की ट्रेन आ रही है, उसे लेने के लिए जीप ले जाओ. फलां-फलां सामान लाना है, ले आओ. किरण की भागदौड़ चलती रहती. वो बताते हैं कि ये फिल्म असली मायने में उनके लिए सही ट्रेनिंग थी. अब वो कैसे भी हालात में काम कर सकते थे.

‘दो बूंद पानी’ रिलीज़ हुई. लोगों को पसंद आई. हिट साबित हुई. किरण को अपनी अगली फिल्मों के लिए स्ट्रगल नहीं करना पड़ा. सिनेमाघर से जॉन वेन की फिल्म देखकर लौट रहे थे कि एक शख्स ने फिल्म ऑफर कर दी. ये उनकी दूसरी फिल्म ‘बिंदिया और बंदूक’ थी. तीसरी एक कॉमेडी फिल्म थी, ‘जंगल में मंगल’. किरण ने पैर जमाने शुरू कर दिए थे. काम मिलता जा रहा था. लग रहा था कि अब सब सही चलने वाला है. तभी इंदिरा गांधी सरकार ने इमरजेंसी लागू कर दी. इमरजेंसी के वक्त फिल्मों को लेकर भी सरकार का रवैया सख्त था. गुलज़ार की फिल्म ‘आंधी’ को बैन कर दिया गया. ‘किस्सा कुर्सी का’ जैसा तीखा सटायर बैन हुआ. उसी इमरजेंसी की चपेट में किरण कुमार की भी फिल्में आईं. एक-दो नहीं बल्कि छह फिल्में. छह पूरी तरह तैयार फिल्में जिन्हें सरकार ने रिलीज़ नहीं होने दिया. 

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किरण की दूसरी फिल्म, ‘बिंदिया और बंदूक’. 

किरण का करियर झटके से पिछड़ गया. उनके पास कोई काम नहीं. कोई उन्हें काम देने को राज़ी नहीं. वो बताते हैं कि उस वक्त हालत ऐसी थी कि कोई बोलता कि साथ में फोटो खिंचवाओ, उसके पैसे दूंगा, तो वो उसके लिए भी हां कर देते. उन्हें इन हालात से बाहर निकालने में मदद की आशा पारेख ने. उन्होंने किरण को फोन किया. बताया कि वो एक गुजराती फिल्म बना रही हैं. क्या वो उसमें विलेन बनना चाहेंगे? किरण को काम की सख्त ज़रूरत थी. उन्होंने हामी भर दी.

गुजरात जाकर शूटिंग की. फिल्म रिलीज़ हुई और चल निकली. फिल्म की कामयाबी के बाद किरण लगातार गुजराती सिनेमा में काम करते रहे. वहां करीब 70 फिल्में की. उन्हें गुजराती सिनेमा का अमिताभ बच्चन कहा जाने लगा. गुजराती सिनेमा में काम करने के दौरान ही उनकी मुलाकात सुषमा नाम की ऐक्ट्रेस से हुई. दोनों मिले, प्यार हुआ और कुछ समय बाद शादी भी कर ली. इतना कुछ हासिल करने के बाद अब घर वापसी का समय था. हिंदी फिल्मों में नई पारी का रास्ता खोला सलीम खान ने. सलीम उनके पिता के पुराने दोस्त थे. वही दोस्त, जिनके सुझाव पर किरण को बोर्डिंग स्कूल भेजा गया था. खैर, सलीम ने किरण को एक फिल्म ऑफर की. इस फिल्म का नाम ‘फ़लक’ था. इस फिल्म पर काम करने के दौरान उन्हें एक और फिल्म मिली. ये फिल्म थी गोविंदा, जितेंद्र और शत्रुघ्न सिन्हा स्टारर ‘खुदगर्ज़’. आगे चलकर इस फिल्म का गाना ‘आप के आ जाने से’ खासा पॉपुलर हुआ. किरण इस फिल्म में विलेन बने थे.

‘खुदगर्ज़’ ने किरण को हिंदी सिनेमा का उभरता हुए विलेन बना दिया. ये सिलसिला सिर्फ उस फिल्म तक नहीं थमा. फिर आई ‘तेज़ाब’, जहां उन्होंने अपने करियर का सबसे यादगार किरदार ‘लोटिया पठान’ निभाया. मुन्ना का दुश्मन ‘लोटिया पठान’ सबकी ज़ुबां पर चढ़ गया. ‘तेज़ाब’ के बाद उन्होंने ‘खुदा गवाह’, ‘हिना’ और ‘अंजाम’ जैसी फिल्मों में काम किया. वो नाइंटीज़ बॉलीवुड सिनेमा के ज़रूरी विलेन बन गए थे.                  

# आज कल कहां हैं?

किरण अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि वो हमेशा प्रोग्रेस के समर्थन में रहे हैं. इसलिए जब टेलिविज़न आया तो उन्होंने उस माध्यम को नकारा नहीं. जानते थे कि ये नया भविष्य है. फिल्मों के साथ-साथ टीवी शोज़ में काम किया. 1986 में आए शो ‘कथा सागर’ से उन्होंने टीवी पारी की शुरुआत की. ‘घुटन’, ‘शपथ’ और ‘पापा’ उनके सबसे पॉपुलर टीवी शोज़ में शामिल हुए. किरण आज भी फिल्मों और टीवी शोज़ में काम कर रहे हैं. 

Change is the only constant के सूत्र का पालन करने वाले किरण कुमार ने ओटीटी में भी काम करना शुरू कर दिया. 2022 में सोनाली बेंद्रे की पहली सीरीज़ ‘द ब्रोकन न्यूज़’ रिलीज़ हुई थी. किरण उस शो में नज़र आए थे. अजय देवगन की आने वाली फिल्म ‘भोला’ में भी दिखाई देंगे. इसके अलावा वो बताते हैं कि कुछ फिल्में और टीवी शोज़ पूरे हो जाने के बाद एक बार वो डायरेक्शन करना चाहते हैं. उनकी इच्छा है कि आगे चलकर अपनी फिल्में और टीवी सीरियल्स बनाएं.  

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