
10 एपिसोड्स में बंटा है पूरा शो.
# Vadham की कहानी क्या है? ‘वधम’ यानि वध, हत्या. कहानी भी इसी नोट पर खुलती है. एक मर्डर से. विगनेश नाम के एक शख्स का मर्डर हो जाता है. फ़ौरन, पुलिस हरकत में आ जाती है. क्यूंकि नॉर्मल सा लगने वाला विगनेश कोई आम आदमी नहीं था. अपोज़िशन पार्टी से उसकी अच्छी-खासी जान पहचान थी. पुलिस भी जांच के लिए एक टास्क फोर्स बनाती है. एक ऑल विमेन पुलिस टीम. ऐसा इसलिए क्यूंकि जहां मर्डर हुआ, वो एरिया एक ऑल विमेन पुलिस स्टेशन के अंडर आता है.

शक्ति है कहानी की मुख्य किरदार.
इस टास्क फोर्स को हेड करती है इंस्पेक्टर शक्ति. शक्ति की पर्सनैलिटी भी अपने नाम के अनुकूल है. कानून और न्याय जैसे शब्दों को सिर्फ किताबी नहीं समझती. उनमें यकीन रखती है. शक्ति की मदद करती हैं उसकी तीन कलीग्स. माया, रमिणी और मर्सी. ये चारों केस की जांच में लग जाते हैं. पर ये मर्डर तो सिर्फ ऊपर से दिखने वाली एक परत है. आगे क्या-क्या उधड़कर सामने आने लगता है, वही शो की कहानी है. आखिर ये विगनेश था कौन? इसके मर्डर से किसी को क्या फ़ायदा? ऐसे ही सवालों के जवाब ढूंढते हुए शक्ति अपने आप को मॉरल और लीगल ग्राउंड के बीच फंसा पाती है. यहां तक कैसे पहुंचती है और इन सब से निकलकर सच तक पहुंच पाएगी भी या नहीं, ये आपको 10 एपिसोडस की सीरीज़ में पता चलेगा. # कितना दम है Vadham में? सिनेमा की ग्रामर में कॉप शब्द शुनते ही क्या याद आता है. कोई मेल पुलिसवाला. रफ एंड टफ किस्म का. भ्रष्ट नेताओं को सलाम नहीं ठोकता. हां, लेकिन गुंडों को खूब ठोकता है. कभी पोल उखाड़कर तो कभी गाड़ी उड़ाकर. लेकिन ‘वधम’ की शक्ति ऐसी नहीं. वो इस बात से पूरी तरह वाकिफ है कि ‘माय लाइफ माय रुल्स’ को रियलिटी में लागू नहीं किया जा सकता. क्यूंकि वास्तविकता हमेशा आपके हिसाब से नहीं चलती. शक्ति एक पुलिसवाले के फ़र्ज़ को समझती है. साथ ही उससे चिपके ‘कॉम्प्रोमाइज़’ नाम के शब्द को भी. बेबस है कि खुद सही होने के बावजूद हमेशा सही नहीं कर सकती.
फिल्म हो या रियलिटी, हम पुलिसवालों से एक किस्म की सख्ती की उम्मीद करते हैं. नो डाउट, शक्ति भी इस मामले में कोई अपवाद नहीं है. सख्त है. गुस्सा आता है तो बॉक्सिंग पर निकालती है. लेकिन शक्ति सिर्फ सख्त नहीं है. उसके किरदार के और भी पहलू हैं. उन में से सबसे ज़रूरी है उसका वल्नरेबल होना. अपनी बेबसी को छुपाती नहीं है. अपने आसपास के लोगों से उस बारे में बात करती है.

देवा, जो पूरी तरह शक्ति को सपोर्ट करता है.
स्क्रीन पर भी इसे क्या बखूबी पेश किया है शक्ति बनी श्रुति हरिहरन ने. चाहे गुस्से मे हों या ईमोशनल, श्रुति ने किसी भी भाव को ओवर नहीं होने दिया. अपनी पकड़ में रखा. कन्नड सिनेमा को फॉलो करने वाले लोग श्रुति के काम से वाकिफ हैं. वहां अपनी फिल्मों के लिए फिल्मफेयर और स्टेट अवॉर्ड भी जीत चुकी हैं. यहां तक कि कन्नड सिनेमा की पहली क्राउड फंडेड फिल्म ‘लूसिया’ का भी हिस्सा थीं. # शो सिर्फ हीरो से नहीं बनता अंग्रेज़ी में कहावत है. ‘अ कैप्टन इज़ एज़ गुड एज़ द टीम’. यानि एक कप्तान तभी अच्छा है अगर उसकी टीम अच्छी हो. यहां ये बात सूट होती है. शक्ति का किरदार इसलिए इतना असरदार लगता है क्यूंकि उसके आसपास के किरदार उसे कॉम्प्लिमेंट करते हैं. उसके केस में ऐसे तीन किरदार हैं. माया, रमिणी और मर्सी. रमिणी का किरदार निभाया है अश्वती रविकुमार ने. वहीं, मर्सी और माया के रोल निभाए हैं के सेम्मलर अन्नम और प्रीतिशा प्रेम कुमारण ने. मेकर्स ने कोशिश की कि जैसे-जैसे शो आगे बढ़े, ये सिर्फ शक्ति का ही शो ना रहे. उसकी तीन साथियों की भी कहानियां ऑडियंस को देखने को मिलें. ऐसा हुआ भी और नहीं भी. क्यूंकि मेकर्स ने ये कहानियां सिर्फ छुई. ज़्यादा गहराई में नहीं उतरे. खासतौर पर माया की बैकस्टोरी. माया एक ट्रांस किरदार है. अपने इन्ट्रो सीन में अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने जाती है. उसे देखकर और मांएं दूरी बना लेती हैं. माया के साथ रोज़मर्रा की ज़िंदगी में होते भेदभाव को सिर्फ इस एक सीन तक समेट कर रख दिया.

एक्टर्स की परफॉरमेंस ने शो को उठाया है.
स्क्रीन स्पेस चाहे कितनी भी मिली हो, प्रीतिशा ने डिलिवर किया ही है. ऐसा ही अश्वती और के सेम्मलर के बारे में भी कहा जा सकता है. सीन चाहे कितना भी प्रभावी हो, आप अपना अटेंशन सिर्फ शक्ति हो ही नहीं देंगे. आपका बराबर ध्यान इन तीन किरदारों पर भी होगा. # कोई हीरो इन फीमेल किरदारों को बचाने नहीं आएगा शो के राइटर और डायरेक्टर वेंकटेश बाबू ने पूरी कोशिश की कि अपने किरदारों को उस टिपिकल वाले पाले में ना गिरने दें. और काफी हद तक कामयाब भी हुए. सबसे पहली बात तो मुख्य किरदार शक्ति की. हम दोहराते-दोहराते थक गए लेकिन मेनस्ट्रीम सिनेमा नहीं थका. कहानी अच्छी भली फीमेल किरदार की चल रही होती है लेकिन अंत में कहीं से हीरो टपकता है और क्रेडिट ले उड़ता है. खुशकिस्मती से यहां ऐसा नहीं किया. शक्ति की लाइफ में दो मर्द हैं. उसका बॉयफ्रेंड देवा और उसके पिता. शक्ति को इन दोनों की ज़रूरत है. पर वो इन पर निर्भर नहीं है. दोनो बातों में फ़र्क है. ये दोनों उसके मॉरल कम्पस का काम करते हैं. कुछ भी दुविधा हो, इनसे शेयर करती हैं.

शक्ति के पिता एक रिटायर्ड पुलिसवाले हैं.
# दी लल्लनटॉप टेक शो की अपने सब्जेक्ट के प्रति अप्रोच की तारीफ होनी चाहिए. लेकिन बावजूद इसके ये बेस्ट शो नहीं है. और इसकी वजह है इसकी पेस. शुरू के पांच एपिसोड स्लो हैं. जिनकी भरपाई बाकी बचे पांच एपिसोड में करने की कोशिश की गई. जिस कारण जिन चीज़ों को टाइम मिलना चाहिए था, उन्हें नहीं मिल पाया. शुरू के एपिसोड्स में शक्ति को बार-बार अपने कॉलेज के दिन याद आते हैं. इन सीन्स की आगे कहानी में कहीं ज़रूरत महसूस नहीं होती.

शो की शुरुआती पेस थोड़ी स्लो है.
शो के एंड तक एक साथ कई सारे डेवलपमेंट होने लगते हैं. जो बेशक कहानी को एक्साइटिंग तो बनाते हैं. लेकिन एक पॉइंट पर ध्यान भटकाने लगते हैं. काश इनको कहानी में थोड़ा और समय दिया जाता. पर शायद ये शिकायतें सीज़न 2 में खत्म हो जाएं. क्यूंकि सीज़न 1 को ऐसे नोट पर खत्म किया है जहां दर्शक खुद सीज़न 2 का वेट करने पर मज़बूर हो जाएंगे.
बाकी, शो में जितने माइनस पॉइंट्स हैं, उनसे कहीं ज़्यादा प्लस पॉइंट्स हैं. इसलिए बावजूद इन छोटी-मोटी खामियों के, शो को देखा जा सकता है. जाते-जाते ऐसे ही एक प्लस पॉइंट की बात. अकसर हम सिनेमा में हैकर्स को देखते हैं. झट से कीबोर्ड पर उंगलियां चलाई और कुछ भी हैक कर लिया. लेकिन रियलिटी में ऐसा होता नहीं है. शो में भी ऐसा ही एक सीन है. जहां शक्ति अपने दोस्त वेंकी को मोबाईल हैक करने को कहती है. वो भी जल्दी. वेंकी ज़वाब देता है कि ऐसा सिर्फ फिल्मों में होता है. यहां टाइम लगेगा.