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मूवी रिव्यू: दी व्हाइट टाइगर

कई पीढ़ियों में एक बार पैदा होता है व्हाइट टाइगर, इसलिए खास है. पर क्या फिल्म के बारे में भी ये कहा जा सकता है?

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'स्लमडॉग मिलियनेयर' की तरह इसे भी विदेशी डायरेक्टर ने बनाया है. फोटो - ट्रेलर
2008 में एक फिल्म आई थी. ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’. फिल्म की पृष्ठभूमि इंडिया. ब्रिटिश फिल्ममेकर डैनी बॉयल ने बनाई थी. अब ऐसी एक और फिल्म आई है जिसकी पृष्ठभूमि भारत है, इंडिया नहीं. वो बात अलग है कि कहानी का ज़्यादातर एक्शन इंडिया में ही सेट है. इसे बनाया है अमेरिकन डायरेक्टर रमिन बहरानी ने. नाम है ‘दी व्हाइट टाइगर’. फिल्म 22 जनवरी 2021 को नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई. क्या ये फिल्म ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ की छाया से निकल, अपनी पहचान बना पाने में सक्षम है? आइए जानते हैं.
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फिल्म कहीं आपको खुश करेगी तो कहीं असहज महसूस करवाएगी. फोटो - ट्रेलर

# कहानी क्या है?
भारत देश में दो दुनिया है, एक उजाले की और एक अंधेरे की. कहानी शुरू होती है अंधेरे से. छोटा-सा गांव लक्ष्मणगढ़. जहां बलराम अपने परिवार के साथ रहता है. पिता दिन-रात रिक्शा खींचकर कर्ज़े के बोझ को काम करने में लगे हैं. बलराम अपनी फैमिली में सबसे अलग है. स्कूल जाता है. पढ़ने का शौक है. एक दिन इंस्पेक्शन पर आए ऑफिसर को अपनी रीडिंग से इंप्रेस कर देता है. जो कहते हैं कि बेटा, तुम व्हाइट टाइगर हो. पीढ़ियों में एक बार पैदा होने वाला.
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फिल्म अरविंद अड़िगा की बुक पर बेस्ड है. फोटो - ट्रेलर

दुनिया को जंगल मानने वाले बलराम की एक दिन किस्मत बदल जाती है. जब गांव में सारस की एंट्री होती है. गांव का जमींदार. पूरा गांव सारस और उसके बेटे नेवले के अंगूठे तले दबता है. बलराम इनका ये नामकरण इनकी प्रवृति के आधार पर करता है. पर इनके साथ तीसरा शख्स भी है. सारस का छोटा बेटा अशोक. अमेरिका रिटर्न. नज़र पड़ते ही बलराम इसे अपना मालिक मान लेता है. इसी उम्मीद में शहर पहुंच जाता है. अशोक के यहां नौकरी करने लगता है. उसका ड्राइवर बनकर. तनख्वाह के नाम पर बलराम को कुछ नहीं चाहिए. बस अपने अशोक सर और उनकी वाइफ पिंकी मैडम को खुश रखना चाहता है. लाइफ सही चल रही है. पर एक दिन कुछ घट जाता है. कुछ ऐसा जो बलराम को खुद से सवाल करने पर मज़बूर कर देता है कि आखिर क्यूं नौकरों में अपने मालिक को खुश रखने की चाह होती है? और ये बिन बताई, बिन सिखाई चाह आती कहां से है? जिसके आगे वो सब कुछ भूल येस सर, येस सर, किए घूमते हैं. दिमाग में ऊपजे ये सवाल उसे कहां ले जाएंगे, और उससे क्या करवाएंगे? ये जानने के लिए फिल्म देखिए.
# कैसा है ये टाइगर?
बात करते हैं कास्ट की. फिल्म में 3 मेजर किरदार हैं. अशोक, पिंकी और बलराम. राजकुमार राव और प्रियंका चोपड़ा ने अशोक और पिंकी के किरदार निभाए हैं. बलराम हलवाई बने हैं आदर्श गौरव. इन्हें आपने ‘हॉस्टल डेज़’ और ‘लैला’ जैसे वेब शोज़ में भी देखा होगा. पर इस व्हाइट टाइगर ने यहां जो दहाड़ लगाई है, उसकी गूंज के निशान लंबे समय तक रहने वाले हैं. बलराम हर समय अपनी व्यथा ज़ाहिर नहीं करता. ऑडियंस को मौका देता है कि आओ और मेरी आंखों में झांक लो. जैसे एक सीन है. जहां बलराम मुसीबत में है. निकलने का शायद कोई रास्ता नहीं. कैमरे का फोकस पूरी तरह से उसके चेहरे पर है. उसकी आंखें बिना पलकें झपकाए एकटक कहीं टिकी हैं. जैसे आस-पास की हलचल से उसने कब का वास्ता तोड़ लिया हो. तभी आंखें नम होने लगती हैं. जैसे अब तक भ्रम में जी रहा था और अब रियलिटी चेक मिला हो. फिल्म में बलराम का किरदार आपको कई इमोशन फ़ील करवाएगा. कभी लगेगा कि बेचारा कितना शरीफ है. तो कभी उसे स्क्रीन पर देख असहज हो जाएंगे. उसके अंदर बैठे घिनौनेपन को देख डर लगने लगेगा. ये कमाल है आदर्श गौरव का. इनपर आगे नज़र रखिएगा.
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कह सकते हैं कि आदर्श गौरव फ्यूचर के स्टार बनने वाले हैं. फोटो - ट्रेलर

# स्लमडॉग मिलियनेयर और पैरासाइट याद आएंगी 
फिल्म सिर्फ एक मालिक और उसके नौकर की कहानी नहीं. उस पूरे सिस्टम की कहानी है जो जन्म से एक को मालिक और दूसरे को उसका नौकर बनाता है. ब्रॉडली बात करें तो क्लास डिवाइड की. और इस क्लास डिवाइड को सटल नहीं रखा. पूरी फिल्म में इसके निशान दिखेंगे. जैसे बलराम और अशोक मंदिर जाते हैं. एक दान पात्र में चिल्लर डालता है तो दूसरा सौ का मुड़ा नोट. कुछ ऐसे ही सब्जेक्ट पर बात की थी 2020 की ऑस्कर विनिंग फिल्म ‘पैरासाइट’ ने. फिल्म में एक सीन है जहां एक किरदार अपने मालिक की बात करता है. कहता है कि वो अमीर हैं, फिर भी अच्छे हैं. सामने से जवाब मिलता है कि वो अच्छे हैं, क्यूंकि वो अमीर हैं. ‘दी व्हाइट टाइगर’ में भी इसी तर्ज पर एक सीन है. जहां बलराम साथी ड्राइवर से अशोक की तारीफ करता है. कहता है कि अच्छा आदमी है. साथी ड्राइवर बोलता है, “अच्छा आदमी? वो अमीर आदमी है.”
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अमीर-गरीब से फ़र्क से काफी ऊपर है कहानी. फोटो - ट्रेलर

शुरू में ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ की बात हुई थी. यहां उसपर भी चुटकी ली गई. बलराम समझता है कि हम सब मुर्गी के पिंजरे में बंद हैं. अपने अंजाम से वाकिफ़ होने के बावजूद मुर्गा पिंजरे में आराम से रहता है. कोई विरोध नहीं करता. एक जगह उसका डायलॉग है, “मैं मुर्गे के पिंजरे में फंस चुका था, और ये मानने की भूल मत कीजिएगा कि रातों-रात करोड़पति वाला शो जीतकर इस पिंजरे को तोड़ा जा सकता है.”
# बड़े पेट वाले और बड़ी भूख वालों का फ़र्क  
अशोक बलराम को बड़े अच्छे से ट्रीट करता है. बलराम भी उसके सामने फ्रैंक होने लगता है. खुलकर हंसता है, मन किया वो बात कर लेता है. पर इस बीच भी कभी नौकर-मालिक की ना दिखने वाली लाइन को नहीं भूलता. जैसे एक सीन में बाथरूम में हाथ धो रहा होता है. सामने देखता है कि स्लैब पर एयर फ्रेशनर रखा है. खोलकर देखता है कि क्या चीज़ है. कपड़ों पर, हाथों पर स्प्रे करने लगता है. अचानक उसका प्राइस टैग देखता है. उसकी सैलरी से भी ज़्यादा. फौरन, भाग खड़ा होता है. एक और सीन है. जहां अशोक के साथ वीडियो गेम खेल रहा होता है. खड़ा होकर स्क्रीन के सामने आ जाता है. अशोक उसे खींचकर सोफ़े पर बिठा देता है. अचानक से उठता है और सोफ़े से कूदकर ज़मीन पर जा बैठता है. जैसे मानो गेम में इतना खो गया कि अपनी जगह ही भूल गया हो.
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महेश मांजरेकर ने सारस का किरदार निभाया है. फोटो - ट्रेलर

# कुछ शिकायतें रह ही गईं  
अगर वेस्ट से आए किसी इंसान को बोलेंगे कि इंडिया की पेंटिंग बनाओ, तो वो क्या बनाएगा? सड़क पर गाय घूम रही है. फुटपाथ पर परिवार सो रहे हैं. और एक आदमी जो 50 के दशक के जादूगर वाली पोशाक पहने खड़ा है. यहां भी आपको इस तरह के स्टीरियोटाइप दिखेंगे. जैसे पिंकी के जन्मदिन पर बलराम को ऐसे ही जादूगर टाइप कॉस्टयूम पहना दी जाती है. और उसे ‘महाराजा’ कहकर बुलाया जाता है.
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ऐसे स्टीरियोटाइप कब खत्म होंगे? फोटो - ट्रेलर

दूसरी शिकायत है फिल्म का लगातार चलने वाला वॉयस ओवर. कई बार इतना ज़्यादा हो जाता है कि कहानी से डिस्ट्रैक्ट करने लगता है.
फिल्म का सब्जेक्ट कोई नया नहीं है. पर इसे अप्रोच करने का तरीका एकदम फ्रेश है. और यही रीज़न काफी है फिल्म को इस वीकेंड देखने के लिए.

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