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मूवी रिव्यू - तेहरान

कैसी है जॉन अब्राहम की फिल्म 'तेहरान', जानने के लिए रिव्यू पढ़िए.

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'तेहरान' सीधा ज़ी5 पर रिलीज़ हुई है.

Tehran
Director: Arun Gopalan
Cast: John Abraham, Manushi Chillar, Neeru Bajwa
Rating: 3.5 Stars

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जॉन अब्राहम, नीरू बाजवा और मानुषी छिल्लर की फिल्म ‘तेहरान’ ज़ी5 पर रिलीज़ हुई. फिल्म के शुरुआत में एक डिस्क्लेमर आता है कि ये असली घटनाओं पर आधारित है. हालांकि मेकर्स ने इसे ड्रामेटाइज़ भी किया है. हर फिल्म में एक Inciting Incident होता है. यानी वो घटना जो कहानी में मुख्य कन्फ्लिक्ट लाती है और यहां से आपके किरदार का सफर शुरू होता है. ‘तेहरान’ में ये घटना 13 फरवरी 2012 के दिन घटती है. इससे पहले ऑडियंस को बता दिया जाता है कि ईरान और इज़रायल के बीच अनबन चल रही है. ईरान के न्यूकलियर प्रोग्राम को चौपट करने के लिया इज़रायल उससे जुड़े कुछ लोगों को मरवा देता है. इसके जवाब में ईरान की तरफ से इज़रायल के राजदूत पर हमला होता है. ये हमला दिल्ली में होता है और एक बच्ची की मौत हो जाती है.

कहानी के इस पॉइंट पर हम दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ऑफिसर राजीव कुमार से मिलते हैं. ये रोल जॉन अब्राहम ने निभाया है. राजीव के सीनियर उसे Obsessed और सनकी जैसी संज्ञा देते हैं. कहते हैं कि एक बार इस आदमी ने ठान लिया तो काम पूरा कर के ही दम लेगा. हमले में हुई बच्ची की मौत का राजीव पर गहरा असर पड़ता है. अब वो ज़िम्मेदार लोगों को सज़ा देने के लिए निकल पड़ता है. इस दौरान कैसे इज़रायल उसे धोखा देता है, ईरान उसे खत्म कर देना चाहता है, और इंडिया उसका साथ छोड़ देता है, यही फिल्म की कहानी है.

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tehran review
‘तेहरान’ ने अपने किरदारों को ह्यूमनाइज़ किया है. 

01 घंटे 55 मिनट के रनटाइम लिए ‘तेहरान’ एकदम नो-नॉनसेंस फिल्म है. यानी फिल्म में कोई भी बेवजह या फिलर किस्म का सीन नहीं. सब कुछ पॉइंट टू पॉइंट चलता है. एक घटना घटती है, और आप किरदार को उसी दिशा में जाते हुए देखते हैं. ताकि वो अपना मकसद पूरा कर सके. फिल्म की कहानी के केंद्र में इंटेलिजेंस ऑफिसर्स हैं. ये वो लोग हैं जिनका नाम अखबारों में नहीं छपता, जिनकी कामयाबी पर देश पीठ नहीं थपथपाता. लेकिन अगर फेल हो गए तो कोई सहारा देने के लिए खड़ा न होगा. फिल्म भले ही कट-टू-कट दौड़ती है लेकिन इस बीच वो अपने किरदारों को ह्यूमनाइज़ करने की कोशिश भी करती है. राजीव अपनी बेटी के जन्मदिन पर समय पर पहुंचना चाहता है, एक अन्य किरदार है जो दफ्तर में शिफ्ट के दौरान अपने तलाक के पेपर्स साइन कर रहा है. एक सीनियर अधिकारी कहता है कि मुझे कल सुबह तक हर हाल में रिपोर्ट चाहिए. फिर जोड़ता है कि और मेरे लॉन फर्निचर का क्या हुआ. बिना कोई पक्ष लिए ब्युरोक्रेसी पर कमेंट कर दिया.

फिल्म में एक सीन है जहां लैला नाम की महिला को पूछताछ के लिए बुलाया जाता है. किसी अंग्रेज़ी क्राइम ड्रामा सीरीज़ की तरह वो कहती है कि उसे अपने वकील से बात करनी है. इस पर राजीव उसे नसीहत देता है, “HBO कम देखा करो लैला जी”. इस एक लाइन से कहानी पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन ऐसे संवाद आपकी कहानी को ज़मीनी हकीकत के करीब लेकर आते हैं. जैसे-जैसे कहानी में टेंशन बढ़ती है, वैसे-वैसे इस तरह के डायलॉग गायब होने लगते हैं. उसकी जगह एक्शन लेने लगता है. ये फिल्म का वो पक्ष है जिससे मुझे थोड़ी शिकायत रही. एक्शन सीन में सेंस ऑफ डायरेक्शन को लेकर मुझे कंफ्यूज़न हुई. कि एक सीन में कोई किरदार किस दिशा से आ रहा है, और किस दिशा से एग्जिट ले रहा है. इस मामले में डायरेक्शन और एडिटिंग, दोनों में ही खामी थी.

john abraham
जॉन ने कंट्रोल में रहकर परफॉर्म किया है. 

बहरहाल ‘तेहरान’ में जितनी भी खामियां हों, उन्हें इसकी राइटिंग ढक लेती है. फिल्म आपको अंत तक एन्गेज कर के रखती है. सब कुछ एक तार से बंधा हुआ लगता है. बस क्लाइमैक्स में ये पकड़ ढीली पड़ जाती है. ऐसा लगता है कि क्लाइमैक्स को जल्दबाज़ी में लपेट दिया गया. आपको वो इम्पैक्ट महसूस नहीं होता. लेकिन उसके अलावा राइटिंग से आपको शिकायत नहीं रह जाती. उसके अलावा जॉन अब्राहम भी फिल्म का एक मज़बूत पहलू हैं. जॉन को लेकर ये नज़रिया बना हुआ है कि वो भारी-भरकम बॉडी वाले किरदार ही कर सकते हैं. इसमें कुछ हद तक उनका दोष भी हैं. लेकिन यहां उन्होंने इस परसेप्शन को हल्की चोट मारने की कोशिश की है. जॉन कभी भी लाउड नहीं होते. जबकि फिल्म की कहानी और पॉपुलर सेंटीमेंट को भुनाने के लिए भरपूर मात्रा में लाउड हुआ जा सकता था. लेकिन वो कंट्रोल में रहते हैं.

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एक सीन है जहां एक किरदार राजीव से कहता है कि इज़रायल ने उसे धोखा दे दिया, और इंडिया ने उसका साथ छोड़ दिया है. ये वाक्य पूरा होता है और उसके चेहरे पर एक पीड़ा उभरती है. फिर फ्रेम वाइड होता है और आप देखते हैं कि उसने अपने पेट के ऊपर हाथ लगाया हुआ. एक सीन पहले उसे यहां चोट लगी थी. अब आप सोचते हैं कि इस आदमी की आंखों में दर्द क्यों उतर आया, क्या उसके शरीर की पीड़ा उसे तकलीफ दे रही है. या फिर पीड़ा इस बात की है कि उसके अपने वतन ने हाथ खींच लिए हैं. जॉन की परफॉरमेंस आपके लिए ये सवाल छोड़कर जाती है. उनके अलावा नीरू बाजवा, मानुषी छिल्लर और कुछ ईरानी एक्टर्स भी कास्ट का हिस्सा हैं. सभी ने कुलमिलाकर ठीक काम किया है. अरुण गोपालन के निर्देशन में बनी ‘तेहरान’ ज़ी5 पर स्ट्रीम हो रही है.                                        
 

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