Gadar 2 को अपना विलन नहीं मिल रहा था. अमरीश पुरी के जूतों को भरना आसान बात नहीं थी. हिंदी और साउथ से एक्टर्स को खंगाला गया. फिर तलाश की सुई जाकर रुकी मनीष वाधवा पर. वो मनीष वाधवा जिन्होंने अपने पिता की फिल्म में पहली बार काम किया. जी लगाकर थिएटर किया. टीवी का वो एक रोल, जिससे वाहवाही लूट ली. शाहरुख की फिल्म के विलन बने. करण जौहर की ‘तख्त’ साइन की, लेकिन फिर फिल्म ही डिब्बाबंद हो गई. ये पूरी जर्नी उनको ‘गदर 2’ तक कैसे लेकर आई, उनकी कहानी को थोड़ा करीब से जानेंगे.
कहानी 'गदर 2' के विलन मनीष वाधवा की, जो 'चाणक्य' के लिए 13 साल पहले गंजे हुए, आज तक बाल न उगा सके
मनीष की कहानी में स्कूटर सवारी का रोल है. टांग पर खींचकर मारी गई उस कोल्हापुरी चप्पल का रोल है. रोल है, हैदराबाद से आई उस कॉल का, जिसे वो प्रैंक समझ रहे थे.

# पिता ने फिल्म बनाई और बेटे को एक्टिंग का कीड़ा काट गया
मनीष वाधवा का जन्म अंबाला में हुआ. पिता एयरफोर्स में कार्यरत थे. मां गृहिणी थीं. अपने मन के लिए सत्संग समाज में गाया भी करती थीं. सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद पिता ने अपने पैशन पर ध्यान देने का फैसला लिया. वो फिल्म इंडस्ट्री में आना चाहते थे. अपनी फिल्में बनाना चाहते थे. उनका सपना कभी पूरा नहीं हो सका. खुद से एक फिल्म बनाई लेकिन वो लोगों तक नहीं पहुंच सकी. उस फिल्म में उन्होंने अपने बेटे मनीष से एक्टिंग करवाई. मनीष बताते हैं कि वो शूटिंग वाला अनुभव आज भी उनके ज़ेहन में ताज़ा है.
नन्हें मनीष आधे बाजू की स्वेटर पहने शीशे के सामने शूट कर रहे थे. उस वक्त तक शूटिंग का श तक नहीं पता था. लेकिन उस अनुभव ने मन के अंदर कुछ जगा दिया. स्कूल में, अपने सत्संग समाज में छोटे-मोटे नाटक करने लगे. उधर दूसरी ओर पिता अपने पैशन के लिए बंबई आना चाहते थे. घर के बड़ों को मुश्किलों से मनाया गया. सब कुछ फाइनल हो जाने के बाद उनका परिवार बंबई आ चुका था.
# डायरेक्टर ने चप्पल मारी और कहा – “अपने आप को संजय दत्त समझता है”
इंडिया में पैदा होने वाला हर नौजवान ज़िंदगी के किसी मोड़ पर दो सपने देखता है – हीरो बनने का और देश के लिए क्रिकेट खेलने का. हीरो वाले सपने के लिए टाइम नहीं था. इसलिए मनीष ने क्रिकेट पर फोकस किया. मुंबई में कॉलेज की पढ़ाई के दौरान वो क्रिकेट में सक्रिय हो गए. इसी को करियर बनाने का प्लान था. हालांकि साथ में नाटक भी चल ही रहा था. क्योंकि वो मन को सुख देता था.
एक दिन वो कोई लोकल नाटक कर के घर लौट रहे थे. रास्ते में उनके प्रोफेसर ने देख लिया. उनके बगल में अपना स्कूटर रोका. ये टीचर थे परेल सर. उन्होंने लिफ्ट ऑफर की. मनीष को लगा कि अब यहीं क्लास लगेगी. परेल सर ने पूछा कि कहां गायब रहते हो. क्या करते हो आजकल. मनीष ने बता दिया कि कुछ दोस्तों के साथ मिलकर नाटक किया करता हूं. परेल सर ने सुना और दो दिन बाद मनीष के नाम का बुलावा भेजा. वो चाहते थे कि मनीष कॉलेज के लिए नाटक करें. इस तरह मनीष ने अपना पहला नाटक लिखा – ‘अंगूर खट्टे हैं’. लेकिन वो उसे डायरेक्ट करने को तैयार नहीं थे. इसलिए बाहर से डायरेक्टर को बुलाया गया. वो उनके साथ थिएटर डायरेक्शन की बारीकियां सीखने लगे.

एक दिन रीहर्सल चल रही थी. तभी अचानक से डायरेक्टर ने अपने पांव से चप्पल निकाली और खींचकर मनीष के पैर पर मारी. चीखे कि क्या अपने आप को संजय दत्त समझते हो. दोनों पैरों पर खड़े नहीं हो सकते. मनीष को कुछ समझ नहीं आया. वो अपने दोनों पैरों पर ही खड़े थे. कुछ समय बाद एहसास हुआ कि वो क्या कहना चाह रहे थे. यहां पैर सीधे रखकर चलने की बात हो रही थी. उस कोल्हापुरी चप्पल ने मनीष को बहुत कुछ सीखा दिया. आगे वो एक्टिव तौर पर थिएटर करने लगे. कॉलेज स्तर की प्रतियोगिताओं में ईनाम जीते. थिएटर सर्कल में उनका नाम होने लगा.
# ‘कोहिनूर – संत या पापी’ से मिली बड़ी फिल्म, जिसकी रिलीज़ अटक गई
थिएटर में ज़्यादा पैसा नहीं होता. कलाकार मन की तृप्ति के लिए लगा रहता है. मनीष ने कमर्शियल थिएटर का रुख कर लिया. पैसा वहां भी ज़्यादा नहीं. लेकिन थोड़ा-बहुत काम चल जाए बस. उसी दौरान उन्हें एक बड़ा प्ले मिला. नाम था ‘मां रिटायर होती है’. जया बच्चन लीड रोल में थीं. उनके बेटे का रोल किया मनीष ने. प्ले को नामी लोगों से सराहना मिली. उन्हीं में से एक थे प्रकाश झा. वो एक फिल्म प्लान कर रहे थे.
उसमें नेगेटिव रोल के लिए उन्होंने मनीष को अप्रोच किया. मनीष बताते हैं कि भले ही टीवी ने उन्हें देशभर में फेमस किया, लेकिन वो हमेशा फिल्में करना चाहते थे. बहरहाल ‘राहुल’ नाम से ये फिल्म बनकर रिलीज़ हुई. प्रकाश झा को मनीष का काम पसंद आया. उन्होंने इंटरव्यूज़ में उनकी तारीफ की. लेकिन फिल्म के साथ मसला ये हुआ कि इसे ऑडियंस नहीं मिली. मनीष की पहली फिल्म के बारे में किसी को पता ही नहीं चला. कुछ ऐसा ही श्याम बेनेगल की फिल्म ‘नेताजी: द फरगॉटन हीरो’ के साथ भी हुआ. फिल्म में मनीष ने इनायत नाम का किरदार निभाया. रोल इतना छोटा था कि लोगों की नज़र ही नहीं पड़ी.

फिल्मों में बात नहीं बन रही थी. इसलिए मनीष ने टीवी में भी काम करना शुरू कर दिया. पहला शो आया ‘आम्रपाली’. लेकिन उन्हें पहला बड़ा ब्रेक दिलाने का काम किया ‘कोहिनूर’ ने. ‘कोहिनूर’ को अलग लेवल पर प्रमोट किया गया. मुंबई शहर में बड़े-बड़े बैनर लगवाए गए. लंबे बालों में मनीष की फोटो. साथ में लिखा होता: ‘कोहिनूर – सेंट ऑर सिनर’. इन होर्डिंग्स पर नज़र ना पड़ना लगभग नामुमकिन है. रामगोपाल वर्मा की भी नज़र उस पर पड़ी. एक दिन उनके ऑफिस से मनीष को कॉल आया. बताया गया कि रामू आपसे मिलना चाहते हैं.
उत्साह से भरे मनीष उनके ऑफिस पहुंच गए. रामू ने उन्हें ‘शबरी’ फिल्म ऑफर की. यहां बड़ा रोल था. मनीष को उम्मीद थी कि ‘शबरी’ के बाद सब कुछ बदल जाएगा. लोग उन्हें जानने लगेंगे. धड़ाधड़ काम मिलने लगेगा. मगर ऐसा हुआ नहीं. फिल्म साल 2005 में बनकर तैयार हो गई. अगले साल रिलीज़ का प्लान था. लेकिन किसी वजह से अटक गई. कोई बात ना बनते देख मनीष फिर से टीवी की तरफ मुड़ गए.
# “22 दिसम्बर 2010 की तारीख को कभी नहीं भूल सकता”
एक दिन मनीष को फोन कॉल आया. उन्हें बताया गया कि ‘चाणक्य’ पर एक शो बन रहा है. क्या आप धनानंद और चाणक्य के लिए ऑडिशन देना चाहेंगे. मनीष नेगेटिव रोल नहीं करना चाहते थे. उनकी इच्छा थी चाणक्य बनने की. ऐसा स्ट्रॉन्ग रोल, जिसे हर एक्टर करना चाहेगा. उन्होंने दोनों ही कैरेक्टर के ऑडिशन दिए. धनानंद के केस में तो ऑडिशन के 45 मिनट बाद ही उन्हें फाइनल कर लिया गया. इसके बावजूद भी उन्हें चाणक्य के लिए ऑडिशन देने के लिए बुलाया गया.
मनीष को खबर थी कि मेकर्स किसी बड़े एक्टर को चाणक्य के लिए कास्ट कर रहे हैं. तो फिर उनका ऑडिशन लेने का क्या मतलब. फिर भी मेकर्स के कहने पर उन्होंने चाणक्य का ऑडिशन दे दिया. मेकर्स के समीकरण बदल गए. अब वो मनीष को चाणक्य के लिए चाहते थे. मनीष को क्या ही आपत्ति थी. बस मेकर्स की एक शर्त थी. मनीष को गंजा होना पड़ेगा. वो प्रोस्थेटिक का इस्तेमाल नहीं करना चाहते थे. मनीष को ऐसा करना रिस्की लग रहा था. एक रोल के चक्कर में कहीं आगे काम मिलना बंद ना हो जाए. वो हर मुमकिन तरीके से इसे टालते रहे.
शूटिंग का दिन आ गया. दो घंटे में मनीष को कैमरे के सामने होना था. उधर वो बाल कटवाने को राज़ी नहीं. मन को ठोस कर के फैसला लिया गया. बाल कटवा लेते हैं. अपने ही हाथ की खेती है. छह महीने में वापस आ जाएगी. मनीष ने साल 2011 में टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में कहा था,
मैं 11 साल पहले गंजा हुआ और उसके बाद से लोगों ने मुझे बाल नहीं उगाने दिए. मुझे ऐसे ही कैरेक्टर ऑफर हुए, जहां ऐसे लुक की ज़रूरत थी. मुझे याद है मैं किस दिन गंजा हुआ था. वो तारीख थी 22 दिसम्बर 2010. मैंने सोचा था कि छह महीने में बाल आ ही जाएंगे. 11 साल हो गए. अब तक बाल नहीं उगा पाया हूं.
इमैजिन टीवी पर आने वाला ‘चाणक्य’ फट पड़ा. देशभर में उनके काम ने धाक जमा डाली. लोगों के लिए मनीष वाधवा की छवि ही ‘चाणक्य’ बन गई. आज भी सोशल मीडिया पर चाणक्य के कोट, स्टेटस आदि शेयर किए जाते हैं जहां बैकग्राउंड में मनीष की फोटो होती है.
# “मुझे लगा था कि फिल्म देखने के बाद लोग मुझे मारेंगे”
‘चाणक्य’ ने मनीष वाधवा का नाम और काम देशभर में फैला दिया. शो से ऐसी पुख्ता इमेज बनी कि उन्हें दमादम पीरियड ड्रामा के ऑफर आने लगे. उन्होंने लाइन से हिस्ट्री और मायथोलॉजी पर बने शोज़ किए. तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री में एक पीरियड फिल्म बन रही थी. लीड रोल में नानी और साई पल्लवी थे. उन लोगों को विलन की तलाश थी. कहीं से मनीष का नंबर निकालकर उन्हें कॉल किया गया. कहा कि सर, हमने आपको ‘चाणक्य’ में देखा है. हम आपको पिछले चार महीनों से ढूंढ रहे हैं. मनीष को लगा कि कोई फिरकी ले रहा है. उन्होंने पॉइंटेड सवाल पूछे. थोड़ी देर में क्लियर हो गया कि कोई प्रैंक नहीं हो रहा.
कुछ दिन बाद वो हैदराबाद में थे. ‘श्याम सिंहा रॉय’ के सेट पर. फिल्म में उन्होंने घनघोर दुष्ट किस्म के महंत का रोल किया. फिल्म बन गई. अब रिलीज़ के बाद मनीष को एक बात का डर था. कि फिल्म देखकर लोग कहीं उन्हें पीटने ना लगें. फिल्म में उनका किरदार महिलाओं का यौन शोषण करता है. उनको चिंता थी कि साई पल्लवी को लोग साउथ में पूजते हैं. तो फिल्म देखकर उन पर ना बरस पड़ें. हालांकि ऐसा कुछ नहीं हुआ. फिल्म आराम से रिलीज़ हो गई.

उसी दौरान ‘गदर 2’ से जुड़े लोग अपना विलन ढूंढ रहे थे. फिल्म की शूटिंग शुरू हो चुकी थी और अब तक विलन फाइनल नहीं हुआ था. फिल्म के फाइट मास्टर रवि वर्मा भी एक्टिवली ऑप्शन खोज रहे थे. तभी उन्हें मनीष का ध्यान आया. दोनों ने ‘श्याम सिंहा रॉय’ में भी साथ काम किया था. डायरेक्टर अनिल शर्मा को उनके बारे में बताया. अनिल ने मनीष को मिलने के लिए बुला लिया. वो उन्हें ‘चाणक्य’ से पहचान गए. ऊपर से उन्हें मनीष की हिंदी पर पकड़ भी अच्छी लगी. उन्होंने अपनी तरफ से मनीष को फाइनल कर लिया. बस उस बातचीत में सनी देओल मौजूद नहीं थे. उनका कहना था कि कुछ दिनों में सनी पाजी आ जाते हैं. वो भी आपसे मिल लेंगे. कहानी कुछ दिन आगे बढ़ी. सनी और मनीष मिले. सनी ने कहा कि अमरीश जी का रोल करना बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है. क्या आप इसे निभा पाएंगे. मनीष ने जवाब दिया,
आपके और अनिल जी के मार्गदर्शन में मैं अपनी पूरी कोशिश करूंगा.
मनीष फाइनल हो गए. ‘श्याम सिंहा रॉय’ और ‘गदर 2’ के बीच मनीष वाधवा ने एक और बड़ी फिल्म की थी. शाहरुख खान, जॉन अब्राहम और दीपिका पादुकोण स्टारर ‘पठान’. लॉकडाउन के दौरान उन्हें कास्टिंग डायरेक्टर शानू शर्मा ने ये फिल्म ऑफर की थी. मनीष ने करीब 7-8 दिनों तक फिल्म के लिए शूटिंग की. ‘पठान’ में उन्होंने पाकिस्तानी आर्मी ऑफिसर का रोल किया था.
अब तक की अपनी जर्नी में मनीष सिर्फ किसी एक चीज़ पर नहीं रुके. थिएटर किया. उसके बाद कोई दोस्त डबिंग स्टूडियो तक ले गया. अपनी पसंदीदा हॉलीवुड और साउथ की फिल्मों के लिए डब किया. कैप्टन अमेरिका के दोस्त बकी की हिंदी आवाज़ बने. टीवी में काम किया. जमकर काम किया. साथ ही फिल्में की. श्याम बेनेगल, रामगोपाल वर्मा से लेकर सिद्धार्थ आनंद और संजय लीला भंसाली जैसे फिल्ममेकर्स की फिल्मों में दिखे. और हां, रामगोपाल वर्मा की ‘शबरी’ नाम की फिल्म जो अटकी थी, वो साल 2011 में रिलीज़ हुई. मनीष कहते हैं कि वो अभी रुकेंगे नहीं. काफी चीज़ें प्लैंड हैं और काम करते रहेंगे.
वीडियो: गदर 2 और पठान के विलेन मनीष वाधवा ने अमरीश पुरी से होने वाली तुलना पर बात की