फिल्म- सन ऑफ सरदार 2
डायरेक्टर- विजय कुमार अरोड़ा
एक्टर्स- अजय देवगन, मृणाल ठाकुर, रवि किशन, दीपक डोबरियाल, कुब्रा सैत, मुकुल देव, रौशनी वालिया
रेटिंग- 3 स्टार
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फिल्म रिव्यू- सन ऑफ सरदार 2
अजय देवगन, मृणाल ठाकुर और रवि किशन की फिल्म 'सन ऑफ सरदार 2' कैसी है, जानने के लिए पढ़ें ये रिव्यू.

अजय देवगन की 'सन ऑफ सरदार 2' बड़ी अटपटी टाइप की फिल्म है. एक ऐसी फिल्म, जिसे ऑलमोस्ट खुद नहीं पता कि वो क्या कर रही है. और इस चक्कर में वो बहुत सारी सही चीज़ें कर जाती है. हिंदी या भारतीय सिनेमा में शायद ही कोई ऐसी कॉमेडी फिल्म बनती है, जिसमें प्रॉब्लमैटिक चीज़ें न हों. 'सन ऑफ सरदार 2' भी उससे अछूती नहीं रहती. न ही वो खुद को रिडीम करने की कोशिश करती है. बावजूद इसके वो एक ऐसी फिल्म बनकर निकलती है, जिसे आप शायद बहुत समय तक याद न रखें. मगर उसके रेफरेंस लंबे समय तक इस्तेमाल होते रहेंगे. खासकर तब जब नो-ब्रेनर कॉमेडी फिल्मों का ज़िक्र आएगा.
फिल्म की बुनियादी कहानी ये है कि जस्सी की शादी हो चुकी है. मगर उसकी पत्नी स्कॉटलैंड में रहती है. काफी समय तक लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में रहने के बाद जस्सी का विज़ा लगता है. स्कॉटलैंड पहुंचने के बाद उसे पता लगता है कि उसकी पत्नी उससे तलाक लेना चाहती है. बड़े दुखी मन से वो उसका घर छोड़कर नया ठिकाना ढूंढने जाता है. जस्सी जिस घर में किराएदार बनकर जाता है, वहां चार-पांच पाकिस्तानी लोग रहते हैं. वो लोग बुरे वक्त पर जस्सी के काम आए हैं, इसलिए जस्सी उनके साथ हिसाब बराबर करना चाहता है. वो उनकी बिटिया की शादी में मदद करता है. क्या-कैसे, अगर ये सब मैं आपको बता भी दूं, तब भी आप उसे कॉन्प्रेहेंड नहीं कर पाएंगे. क्योंकि ये जो कुछ भी हो रहा है, उसमें लेश मात्र की गंभीरता या यूं कहें कि वास्तविकता नहीं है. बावजूद इसके 'सन ऑफ सरदार 2' को खारिज नहीं किया जा सकता.
'सन ऑफ सरदार 2' वैसी फिल्म है, जिसे खुद नहीं पता कि वो क्या कर रही है. इसलिए न वो अपनी गलतियां को सीरियसली लेती है. न ही खूबियों को एक्नॉलेज करती है. मैंने 'सन ऑफ सरदार 2' देखने से ठीक पहले 'धड़क 2' देखी थी. जो कि बिल्कुल अलग किस्म का सिनेमा है. ऐसे में मेरी 'सन ऑफ सरदार 2' से कोई उम्मीद नहीं थी. मुझे पता था कि इस फिल्म में क्या देखने को मिलने वाला है. मगर 'सन ऑफ सरदार 2' सरप्राइज़ करती है. मुझे नहीं याद कि आखिरी फिल्म मैंने कौन सी देखी थी, जिसमें इस तरह की अन-इंटेशनल संवेदनशीलता थी.
हैरत की बात ये है कि 'सन ऑफ सरदार 2' जिंगोइज़्म, इंडिया-पाकिस्तान मसला, LGBTQ, टूटे-बिखरे परिवारों, शादी और तलाक जैसे प्रासंगिक सामाजिक मसलों पर बात करती है. और हर मसले को बड़ी संजीदगी से बरतती है. और उसे इस बात का घमंड भी नहीं है. क्योंकि उसे पता ही नहीं है कि वो कह क्या रही है. ये बात जितनी आयरॉनिक है, उतनी ही फनी भी. मसलन, दीपक डोबरियाल ने फिल्म में एक ट्रांसवुमन का रोल किया है. मगर फिल्म में एक जोक ऐसा नहीं है, जो LGBTQ का मज़ाक उड़ाता हो. या उसे किसी तरह से टार्गेट करता हो. या उस किरदार के थ्रू कोई पॉइंट प्रूव करने की कोशिश करता हो. वो उस किरदार को बिल्कुल साधारण तरीके से लेता है. न उसे स्पेशल फील करवाया जाता है, न ही उसे कमतर महसूस करवाया जाता है. ये नॉर्मलाइजेशन मुझे फिल्म की सबसे प्रभावशाली चीज़ लगी.
'सन ऑफ सरदार 2' तकरीबन ब्रेनरॉट कॉमेडी है. फिल्म अपने हिस्से की भरपूर गलतियां भी करती है. उदाहरण के तौर पर बताऊं, तो रवि किशन के किरदार राजा का हाथ अंग्रेज़ी में तंग है. ऐसे में बहुत सारी चीज़ें गलत बोलता. उसका भेड़ों को पालने का बिज़नेस है. भेड़ों में जो कीड़े लग जाते हैं, उन्हें 'टिक्स' कहते हैं. मगर राजा इसके लिए कुछ ऐसा शब्द इस्तेमाल करता है, जो कि फनी तो किसी एंगल से नहीं है. ऐसी और भी प्रॉब्लमैटिक चीजें हैं फिल्म में. आपकी चार अच्छी बातें कर लेने से आपकी कही दो गलत बातें, सही नहीं हो जातीं. इसलिए इन्हें कॉल-आउट किया जाना ज़रूरी है.
फिल्म का एक सीक्वेंस है, जो जेन्यूइनली फनी है. सीन कुछ यूं है कि अजय देवगन का किरदार जस्सी बताता है कि वो कर्नल है. ऐसे में जब राजा उससे वॉर के किस्से सुनाने को कहता है, तो वो 'बॉर्डर' फिल्म से सनी देओल के डायलॉग्स बोलने लगता है. फिर सुनील शेट्टी और जैकी श्रॉफ के संवाद को दोहराता है. ये फिल्म का सबसे मज़ेदार सीक्वेंस है. जो कि बेसिकली स्पूफ है. मगर वो फिल्म की बहुत मदद करता है.
'सन ऑफ सरदार 2' परफॉरमेंस ओरिएंटेड फिल्म नहीं है. मगर फिल्म में रवि किशन ने जो काम किया है, वो शायद उनके करियर को नई दशा और दिशा दे सकता है. फिल्म में उनके किरदार का स्क्रीनटाइम शायद अजय देवगन से कम है. मगर उनका काम पूरी फिल्म पर हावी रहता है. फिल्म का हीरो होने की कुछ लिमिटेशंस होती हैं. अजय उसमें फंसकर रह जाते हैं. दीपक डोबरियाल ने फिल्म में गुल नाम की पाकिस्तानी ट्रांसवुमन का रोल किया है. उन्होंने उस रोल को करने के लिए कोई एक्सट्रा एफर्ट नहीं डाला है. जो कि उनके किरदार की सबसे शानदार बात है. बेहद रेस्ट्रेन्ड परफॉरमेंस, जो उसे बहुत असरदार बनाता है. चंकी पांडे ने दानिश नाम के पाकिस्तानी व्यक्ति का रोल किया है, जो कि कैटलिस्ट की भूमिका निभाता है. फिल्म के एक सीन में वो 'पाकिस्तान ज़िंदाबाद' के नारे लगाता है. आज के दौर में कोई फिल्म ऐसा करने का जोखिम उठाती है, और उससे पाक-साफ निकल जाती है. उससे किसी को कोई आपत्ति नहीं होती. क्योंकि वो सीन उस तरह से फिल्माया गया है. न ही वो पाकिस्तानियों को नीचा दिखाता है, न ही हिंदुस्तानियों से कमतर बताता है.
कुल जमा बात ये है कि ‘सन ऑफ सरदार 2’ एक जेन्यूइनली फन फिल्म है, जो पॉलिटिकली करेक्ट होने की कोशिश नहीं करती. अगर आप उस पर ढेर सारी उम्मीदों का बोझ लाद देंगे, तो शायद वो बिखर जाए. उसका नॉन-सीरियस होना ही उसकी सबसे बड़ी यूएसपी है. इसलिए उसे वैसे ही देखा जाना चाहिए.
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