हम आपको सुना रहे हैं गुरुदत्त(Gurudutt) की कमाल क्लासिक ‘प्यासा’ के रोचक किस्से. इसके फर्स्ट पार्ट में हमने कुछ रोचक किस्से आपके सामने परोसे. आपने अभी तक नहीं पढे तो यहां क्लिक करके पढ़ लीजिए. तो शुरू करते हैं ‘प्यासा’(Pyaasa) के किस्सों की दूसरी किश्त.
क्या 'प्यासा' के वक्त दिलीप कुमार ने गुरुदत्त के साथ धोखा किया?
वर्ल्ड सिनेमा की महान फ़िल्मों में शुमार 'प्यासा' के बॉलीवुड किस्से. जब दिलीप कुमार ने गुरुदत्त के साथ वादाखिलाफी की थी.


क्या 'प्यासा' ही गुरु दत्त की लाइफ को एक ट्रैजिक एंड की तरफ ले गई थी?
1951 में ‘बाज़ी’ रिलीज़ हुई. इसके ठीक दो साल बाद गुरुदत्त ने प्लेबैक सिंगर गीता रॉय से शादी कर ली. 'प्यासा' के सभी गाने गीता दत्त ने ही गाए थे. इसी फ़िल्म के चलते दोनों के बीच दूरियां भी बढ़ीं. कहते हैं दत्त, गुलाब का रोल कर रही वहीदा रहमान की तरफ़ अट्रैक्ट हो रहे थे. जिसके चलते गीता और उनका झगड़ा होता. धीरे-धीरे उनके रिश्ते में प्यार की जगह शक ने ले ली. सत्या शरण अपनी किताब 'टेन ईयर्स विद गुरुदत्त' में लिखती हैं -
“दत्त और वहीदा के रिश्ते के पनपने का सबसे बड़ा कारण गीता थीं. इस रिश्ते के टूटने का कारण भी गीता ही बनीं. जब गुरु दत्त के तथाकथित रूप से मुसलमान बनकर, वहीदा से निकाह करने पर बवाल खड़ा हुआ, तब गीता लंदन में थीं. वो लंदन से घर वापस आने की बजाय कश्मीर चली गईं. दिन हफ्ते में बदल गए, हफ्ते महीनों में. गीता वापस आने का नाम नहीं ले रही थीं. इस बीच गुरु दत्त को पता चला, गीता किसी पाकिस्तानी पुरुष के साथ वक़्त बिता रही हैं. गुरु दत्त अपने रिश्ते को एक और मौका देना चाहते थे इसलिए उन्होंने वहीदा रहमान से नाता तोड़ दिया. यह सब उन्होंने इसलिए किया ताकि गीता उस पाकिस्तानी शख़्स को छोड़कर वापस उनके पास चली आएं. दत्त ने गीता के साथ अपना जीवन नए सिरे से शुरू किया, पर दोनों फिर अलग हो गए".
कुछ समय बाद गुरुदत्त ने असमय मृत्यु हो गई. अपुष्ट तौर पर इसे आत्महत्या भी कहा जाता है. गीता खूब शराब पीने लगीं और इसी शराब ने उनकी भी जान ले ली.

पहले फ़िल्म में लीड रोल दिलीप कुमार को लिया गया था
गीता दत्त 'प्यासा' में कई तरह के बदलाव करना चाहती थीं. पर आखरी वक्त तक गुरुदत्त ने फिल्म में किसी तरह के बदलाव पर हामी नहीं भरी और 'प्यासा' वैसी ही बनी जैसी गुरुदत्त चाहते थे. लेकिन उन्होंने फिल्म में अभिनेता के चयन पर गीता की बात ज़रूर मानी. वो चाहती थीं कि फिल्म में लीड रोल गुरुदत्त खुद करें. पर इसके पीछे भी एक किस्सा है. गुरुदत्त ने अपने ऊपर 6-7 रील्स शूट कर ली थीं. पर जब स्क्रीन पर ख़ुद को देखा तो उन्हें लगा, वो इस किरदार के लिए मुफ़ीद नहीं हैं. वो चाहते थे कि दिलीप कुमार विजय का रोल करें. चूंकि विजय का किरदार ट्रेजेडीज से भरा हुआ था और दिलीप ट्रेजेडी किंग कहलाते थे. मीटिंग होती है. दत्त, दिलीप कुमार को स्क्रिप्ट नरेट करते हैं. दिलीप साहब फ़िल्म के लिए हामी भी भर देते हैं. और फीस के तौर पर डेढ़ लाख रुपए की मांग करते हैं. गुरुदत्त हिचकते हैं,
दिलीप साहब इतने पैसे तो मेरे पास नहीं हैं और मैं इतने बड़े बजट की फिल्में भी नहीं बनाता.
दिलीप साहब कहते हैं, तुम पैसों की चिंता नहीं करो, फ़िल्म बनाओ बाक़ी मेरे डिस्ट्रीब्यूटर सब संभाल लेंगे.
गुरुदत्त नहीं माने. उन्होंने दिलीप साहब को स्पष्ट किया कि वो सिर्फ़ ऐक्टर के तौर पर उन्हें फ़िल्म में लेना चाहते हैं. बाक़ी का सारा काम वो खुद देखेंगे. दिलीप कुमार उस समय मान भी गए और शूट पर आने की हामी भर दी. पर जिस दिन शूट होना था दिलीप साहब आए ही नहीं. गुरुदत्त को पता चला कि वो शूटिंग लोकेशन से थोड़ी दूर बीआर चोपड़ा के ऑफिस में बैठे हुए हैं. उस दौर में बीआर और गुरुदत्त एक दूसरे के राइवल माने जाते थे. तो दत्त ने ख़ुद न जाकर एक असिस्टेंट को दिलीप साहब को बुलाने भेजा. दिलीप कुमार ने 10 से 15 मिनट में आने की बात कहकर असिस्टेंट को वापस भेज दिया. अब एक घंटा हो गया, दो घंटे हो गए, तीन घंटे हो गए, पर दिलीप साहब नहीं आए. तब दत्त ने टीम को बुलाया और कहा:
अब दिलीप साहब तो आने से रहे. मैं ही विजय का रोल करूंगा.
और वो सीन जहां भंवरे को पैर से दबाकर मार दिया जाता है, खुद दत्त ने शूट किया. आखिरकार गीता की इच्छा पूरी हुई और गुरुदत्त ने 'प्यासा' में लीड रोल प्ले किया. दिलीप कुमार ने बाद के दिनों में दिए एक इंटरव्यू में कहा था:
“मैंने ये फ़िल्म कभी साइन ही नहीं की थी. ये रोल देवदास जैसा था. मुझे लगा एक जैसे दो रोल नहीं करने चाहिए.”
हालांकि इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, स्क्रीन राइटर सलीम ने एक चैट शो में कहा था कि मैंने दिलीप साहब से पूछा कि किन फिल्मों को रिजेक्ट करने का आपको मलाल है. तब उन्होंने कहा था:
तीन फ़िल्में; ‘बैजू बावरा’, 'ज़ंजीर' और ‘प्यासा’

मशहूर डीओपी वी. के. मूर्ति बार बार गुरुदत्त को 'प्यासा' बनाने से क्यों रोकते थे?
1951 में देवानंद प्रोडक्शन के तहत बनी फ़िल्म 'बाज़ी' से गुरुदत्त का डायरेक्टोरियल डेब्यू हो चुका था. वो तभी से 'प्यासा' बनाना चाहते थे. पर जितनी बार वो फ़िल्म बनाना चाहते, वी.के. मूर्ति उन्हें रोक लेते. ये वही मशहूर सिनेमैटोग्राफर वी. के. मूर्ति हैं, जिन्होंने गुरुदत्त की फ़िल्मों में लाइट और शैडो के संयोजन से ऐसा कमाल किया, जिसे बीट कर पाना इस तकनीकी युग में भी संभव नहीं है. 'प्यासा', 'काग़ज़ के फूल', 'चौदहवीं का चांद', 'साहब बीबी और ग़ुलाम' जैसी गुरुदत्त की ब्लैक एंड वाइट फ़िल्मों में उन्होंने लाइट और कैमरे से चमत्कार उत्पन्न करके दर्शकों का मन मोह लिया था. इन्हीं मूर्ति को गुरुदत्त ने अपनी दूसरी फ़िल्म 'जाल' की स्टोरी सुनाई. मूर्ति को सही लगी और फ़िल्म का प्री-प्रोडक्शन शुरू हुआ. इस मुलाक़ात के दो हप्ते बाद दोनों एक बार फिर मिले. तब गुरुदत्त ने मूर्ति से कहा - "मूर्ति, मेरे पास एक और स्टोरी है, सुनाऊं?" मूर्ति ने हामी भरी. गुरुदत्त ने कहानी सुनाई और वो कहानी थी 'प्यासा' की. मूर्ति ने कहा -
'देखो भई गुरुदत्त, तुमने अभी सिर्फ़ एक फ़िल्म डायरेक्ट की है और वो भी थोड़ा बहुत क्राइम और डिटेक्टिव बैकग्राउन्ड की फ़िल्म है. लोगों ने इसे पसंद भी किया है. अभी इसी तरह की दो-चार फिल्में और बनाओ. पहले खुद को एक निर्देशक के तौर पर स्थापित करो. फिर जैसी चाहो वैसी फ़िल्म बनाना'.
दत्त जब भी कोई नई फ़िल्म बनाने जाते तो कहते, "मैं अब प्यासा बनाऊंगा". मूर्ति हर बार उन्हें रोक लेते. 'मिस्टर एंड मिसेज 55' बनाने के बाद गुरुदत्त अड़ गए और बोले अब तो 'प्यासा' बनकर रहेगी. उन्होंने मूर्ति से कहा:
अब तुम मुझे नहीं रोकोगे. ‘प्यासा’ का प्रोडक्शन होगा. पैसों के लिए मैं दूसरी फ़िल्म बनाऊंगा और अपने लिए 'प्यासा'.
उसी समय उन्होंने राज घोसला को ‘सीआईडी’ का डायरेक्शन दिया और खुद चल पड़े 'प्यासा' बनाने.
‘प्यासा’ को तब तक बनने दीजिए, हम जल्द ही मिलेंगे इसके किस्सों की अगली किश्त के साथ.