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वेब सीरीज़ रिव्यू : सास बहू अचार प्राइवेट लिमिटेड

अच्छे संवादों और बेहतरीन अदाकारी के लिए सास बहू अचार प्राइवेट लिमिटेड आपका कीमती समय डिज़र्व करती है.

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देखते हैं अचार कैसा बना है

'पहले साल लगाई, दूसरे साल जमाई और फिर तीसरे साल कमाई'.

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शुक्ला जी का बताया बिजनेस फंडा तो आप समझ गए, अब ज़रा Zee5 पर स्ट्रीम हो रहे ‘सास बहू अचार प्राइवेट लिमिटेड’ का रिव्यू भी समझ लीजिए. 

रिश्तों की जटिल बुनावट को सुलझाने का प्रयास करती कहानी 

‘सास बहू अचार प्राइवेट लिमिटेड’ सुमन की कहानी है. जो अपने पति दिलीप से अलग हो चुकी है. उसके बच्चे पिता के पास रहते हैं. उसे बच्चों को अपने साथ रखना है, पर पैसे की कमी है. जीवन में घर चलाने के अलावा सुमन ने कुछ किया नहीं है. उसे तो यही सिखाया गया था कि शादी करो, गाड़ी आएगी, उसमें बिठाकर तुम्हें जो ले जाएगा वो सब संभाल लेगा. पर संभालने वाला तो अब है ही नहीं. वो पढ़ी-लिखी भी नहीं है, पर उसे अचार बनाना आता है. तो पैसे के लिए वो शुरू करती है अचार का बिजनेस. उसे लगता है अब तो पैसा ही पैसा होगा, पर स्टोरी में कॉन्फ्लिक्ट ना हो तो वो अच्छी स्टोरी कैसी? ख़ैर, पैसा ही पैसा कमाने के लिए उसका साथ देते हैं शुक्ला जी और उसकी सास, जिसका नंबर उसने अपने फोन में बुढ़िया के नाम से सेव कर रखा है. पर ये सब करते हुए सुमन का प्राइम गोल है, बच्चों को अपने पास रखने की हिम्मत और पैसे जुटाना. अब इसके लिए वो क्या करती है और कैसे करती है? पूरी सीरीज़ उसी के बारे में है. ये हो गया सीरीज़ का मेन प्लॉट. इसके इतर कई किरदारों के सब प्लॉट हैं और सभी की अपनी कहानियां हैं. जैसे शुक्ला जी की अपनी लाइफ स्टोरी है. पर वो सुमन को सकारात्मकता सिखाते रहते हैं. सुमन की सास के अंदर बहू और बच्चों को लेकर अपनी चिंताएं हैं. मनीषा जो दिलीप की दूसरी पत्नी है, उसकी भी जीवन को लेकर अपनी जद्दोजहद है, वो अपने घर में ही पराई है. जूही और रिशु पर मां से दूर रहने का क्या असर पड़ता है? बच्चे कैसे ग़लत राह पकड़ लेते हैं? बकौल सुमन की सास, 'गरीबी में भी बच्चे पल जाते हैं, पर बिना प्यार-दुलार के नहीं पलते'. 

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सास-बहू की जोड़ी का बिजनेस

कैरेक्टर बिल्डिंग के लिए एक एक्स्ट्रा नंबर 

इस सीरीज़ का ह्यूमैनिटेरियन अप्रोच अच्छा है. किरदार जिस जटिल परिस्थिति से डील कर रहे हैं, उस समय उनके मन में क्या चल रहा है? कौन से दुराव उनको परेशान कर रहे हैं? एक टूटे हुए परिवार के आपसी रिश्ते कैसे हो सकते हैं? और उनसे भी मेच्योर तरीके से कैसे निपटा जा सकता है? ये सब बातें सीरीज़ का अहम हिस्सा हैं. चूंकि इसे टीवीएफ ने बनाया है तो आप इससे दिल छू लेने वाले कई नॉस्टैल्जिक मोमेंट्स की उम्मीद कर सकते हैं और सीरीज़ आपको निराश भी नहीं करती. अचार बनाती सुमन को देखकर अपनी मां याद आती हैं. पुराने एल्बम देखकर अपने घर के फ़ोटो एल्बम याद आते हैं. ऐसे ही तमाम मोमेंट्स इस सीरीज़ को इमोशनली रिच बनाते हैं. सीरीज़ किरदारों की डिटेलिंग पर काम करती है. कैरेक्टर बिल्डिंग को परत दर परत आगे बढ़ाती है. जैसे गॉड फादर में माइकल कॉर्लिओन का किरदार बिल्ड होता है. कैसे एक सीधा-सादा शख्स गैंगस्टर बन जाता है. हालांकि ये थोड़ा ज़्यादा हो सकता है, पर ऐसी ही कैरेक्टर बिल्डिंग इसमें सुमन की हुई है. कैसे एक कुछ न जानने वाली औरत, एक सक्षम बिजनेस वीमेन बन जाती है.

द शो स्टॉपर अमृता सुभाष और यामिनी दास 

Zee5 पर स्ट्रीम हो रहे 6 एपिसोड के इस शो में अमृता सुभाष लीड रोल में हैं. उन्होंने जितना हो सका है ख़ुद को रियल रखने की कोशिश की है. वो स्क्रीन पर आपको रत्तीभर भी ऐक्टिंग करती नज़र नहीं आती. एक टिपिकल भारतीय नारी का किरदार उन्होंने बखूबी निभाया है. सीरीज़ के शुरुआत में उसकी घबराहट और अंत तक आते-आते उसके कॉन्फिडेंस को अमृता के चेहरे पर महसूस किया जा सकता है. कुल मिलाकर ये पूरी सीरीज़ उन्हीं के एक डायलॉग में समाती है, 'आगे से मैं ख़ुद को समर्थ बनाऊंगी.' सुमन की सास के रोल में यामिनी दास ने महफ़िल लूटी है. अपनी बहू को बेटी मानने वाली सास के रोल में उन्होंने बढ़िया काम किया है. शुक्ला जी के रोल में आनंदेश्वर द्विवेदी भी अच्छे लगे हैं. इन्हें इससे पहले हमने टीवीएफ और टीएसपी के कई वीडियोज़ में देखा है. उनका अप्रोच ठीक उन्हीं वीडियोज़ जैसा है. दिलीप के रोल में अनूप सोनी ने ठीक काम किया है. उनसे और बेहतर की उम्मीद थी. अंजना सुखानी ने दिलीप की दूसरी वाइफ मनीषा की मेच्योरिटी और समझदारी को ढंग से पेश किया है. सुमन की बेटी बनी मानू बिष्ट ने भी ठीक काम किया है. रिशु के रोल में निखिल से शायद और अच्छा अभिनय कराया जा सकता था. रिपोर्टर के छोटे से रोल में अंकित ने नोटिस करने जैसा काम किया है.

प्राइवेट लिमिटेड के अघोषित पार्टनर्स

स्क्रीनप्ले की खामियों को अच्छे डायलॉग ढक लेते हैं

इस सीरीज़ की सबसे अच्छी बात है, इसके डायलॉग्स. जैसे आप कोई किताब पढ़ रहे हों और उसके कोट्स अंडरलाइन करना चाहते हों. एक सीन है, जहां शुक्ला जी शराब पी रहे हैं और उनके साथ आज पहली बार सुमन जी भी शराब पी रही है. दोनों के संवाद लिखकर डेस्क पर सजाने लायक़ हैं. जैसे शुक्ला जी कहते हैं: 'ये अंधेरा देख रही हैं सुमन जी, हम सबको पता है सवेरा होने वाला है, बस इंतज़ार नहीं करना चाहते.' ऐसे ही तमाम संवाद इस सीरीज़ की जान हैं. उनकी ख़ास बात है, ये सहज लगते हैं. कहीं ऐसा नहीं लगता कि आपको ज्ञान दिया जा रहा है. स्क्रीनप्ले थोड़ा और बेहतर हो सकता था. चूंकि कहानी साधारण है, वहां बहुत कुछ घटित नहीं हो रहा है. तो शायद कहानी की रफ्तार थोड़ी तेज़ की जा सकती थी. कुछ सीक्वेंस छोटे किए जा सकते थे. शायद ये 6 के बजाय 5 एपिसोड की होती, तो और ज़्यादा बेहतर होती. 

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सोची समझी साजिश का नतीजा है हर सुंदर फ्रेम

टीवीएफ आस्पिरेन्ट्स के डायरेक्टर अपूर्व सिंह कार्की ने डायरेक्शन का जिम्मा संभाला है. उन्होंने छोटी से छोटी डिटेल पर काम किया है. जब आप सुमन के हाथों को देखेंगे, खासकर उनके नाखूनों को, उनमें अचार का मसाला भरा हुआ मिलेगा. हां, कुछ-कुछ कॉन्टिन्यूटी एरर्स भी हैं, पर उनसे कोई ख़ासा फ़र्क नहीं पड़ता. आखिरी एपिसोड में एक सीन है, जिसमें सुमन और दिलीप डाइनिंग टेबल पर बैठे आपसी मनमुटाव को सुलझाने और अलग रास्तों पर आगे बढ़ने की कोशिश में हैं. उसमें एक शॉट है, जहां दो अलग खिड़कियों के बाहर से उन्हें दिखाया गया है. उनके रिश्ते की तरह खिड़की के बीच में पार्टीशन है. कितना सुंदर प्रयोग है. देखकर मन खुश हो जाता है कि डायरेक्टर और सिनेमैटोग्राफर ने इस हद तक जाकर सोचा है. शो की सिनेमैटोग्राफी भी बढ़िया है. नैचुरल लाइट का प्रयोग बहुत सलीके से किया गया है. सुबह के सीक्वेंसेज सुंदर लगते हैं. पुरानी दिल्ली के मोंटाज बहुत अच्छे और नए हैं. नीलोत्पल बोरा का म्यूज़िक ऐसा है कि आप तेज़ आवाज़ में सुन रहे हों, तो कोई भी आपसे आवाज़ धीमी करने को नहीं कहेगा. सुखद संगीत.

कमोबेश सभी डिपार्टमेंट्स में अच्छा काम हुआ है. बस स्क्रीनप्ले को एक बिलांग छोटा कर देते तो मज़ा आ जाता. ख़ैर, अच्छे संवादों और बेहतरीन अदाकारी के लिए सास बहू अचार प्राइवेट लिमिटेड आपका कीमती समय डिज़र्व करती है. तो जाइए वीकेंड है, Zee5 पर स्ट्रीम हो रही इस फील गुड सीरीज़ को देख डालिए.

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वीडियो: मूवी रिव्यू फॉरेंसिक 

मूवी रिव्यू: फॉरेंसिक

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