अजय देवगन, अमिताभ बच्चन और रकुल प्रीत सिंह स्टारर फिल्म ‘रनवे 34’ रिलीज़ हो गई है. 2016 में आई ‘शिवाय’ के बाद इस फिल्म के ज़रिए एक बार फिर अजय देवगन डायरेक्टर वाली चेयर पर लौटे हैं. ‘रनवे 34’ कैसी फिल्म है, यहां क्या अच्छा है और क्या बुरा, अब उस पर बात करेंगे. शुरू करते हैं कहानी से. एक फ्लाइट ने दुबई से कोचीन के लिए उड़ान भरी है. लेकिन लैंड करने से पहले कुछ दिक्कतें आ जाती हैं. फ्लाइट लैंड करती ज़रूर है, लेकिन ठीक लैंड करने के बाद उसके दोनों पायलट्स को समन किया जाता है.
मूवी रिव्यू: रनवे 34
Here is the movie review of Runway 34 starring Ajay Devgn, Amitabh Bachchan and Rakul Preet Singh. It is directed and produced by Ajay Devgn.

ये दोनों लोग थे कैप्टन विक्रांत और उनकी को-पायलट तान्या. फ्लाइट के लैंड करने से पहले जो कुछ भी उसके अंदर घटा, आगे उसकी जांच होती है. इतना हम फिल्म के ट्रेलर में भी देख चुके थे. अजय देवगन ने फिल्म में कैप्टन विक्रांत का रोल किया है. वो कॉन्फिडेंट है, अपने साथ एक स्वैग कैरी करता है, सिगरेट का शौकीन है. उसकी पर्सनैलिटी का हिंट हमें उसकी एंट्री सीन में ही मिल जाता है, जब बैकग्राउंड में ‘He is the One Alpha Man’ गाना बज रहा होता है. मुझे ये सीन देखकर लगा था कि फिल्म अपने हीरो को सुपरस्टार वाला ट्रीटमेंट देगी, लेकिन ऐसा वास्तविकता में होता नहीं है. विक्रांत ऐसा इंसान है जिसे खुद के फ़ैसलों पर अंधा विश्वास है. यही कॉन्फिडेंस उसे कई बार औरों के सामने स्मार्ट भी बनाता है, और यही कॉन्फिडेंस उसे अपने घुटनों पर भी ले आता है.
वो ऐसा हीरो नहीं जो मुसीबत के वक्त भी हाइपर चिल्ल रहे. हालांकि, वो ऐसा दिखने की कोशिश भले ही करता है लेकिन उसके माथे से टपकती पसीने की धार कुछ और कहानी कह जाती है. रकुल का कैरेक्टर तान्या विक्रांत को एक कॉन्ट्रास्ट देता है. न ही उसे विक्रांत जितना अनुभव है, और न ही उसके पास वो कॉन्फिडेंस है. तान्या ऐसे लोगों में से है, जो प्रेशर पड़ने पर अपना सेल्फ कंट्रोल खो दें. जो अनुभवहीनता, नर्वसनेस उसके पहले सीन में दिखती है, रकुल उसे आगे भी बरकरार रखती हैं. इन दोनों पायलट्स पर जांच चल रही है, और इनके केस कमजोर करने में लगा है नारायण वेदांत. नारायण ऐसा इंसान है जिसके सामने गलती और गलती करने वाले के लिए कोई गुंजाइश नहीं. क्लिष्ट हिंदी के शब्द इस्तेमाल करता है, और अनुशासन की पूजा करता है. अमिताभ बच्चन ने नारायण का रोल निभाया है. फिल्म में उनके पूछताछ वाले सीन उसके बेस्ट पार्ट्स में से एक हैं. जहां वो दोनों पायलट्स को ब्रेक करने की कोशिश करता है, उनकी लिमिट टेस्ट करता है.
‘रनवे 34’ एक ऐसी फिल्म है जिसके शुरू होने से पहले आपको पता होता है कि क्या-कुछ होने वाला है, आप बस जानना चाहते हैं कि वो घटेगा कैसे. इस मामले में फिल्म डिलीवर करती भी है और नहीं भी. लेट मी एक्सप्लेन. फिल्म बिना ज्यादा वक्त खर्च किए सीधा फ्लाइट वाले हिस्से पर पहुंच जाती है, और फिर पूरा फर्स्ट हाफ उसी में निकलता है. यहां राइटर्स की तारीफ होनी चाहिए क्योंकि फ्लाइट में टर्ब्युलेंस आने से लेकर उसकी लैंडिंग तक, वो टेंशन बरकरार रखने में कामयाब होते हैं. मतलब आपको पता है कि क्या होगा, फिर भी बेचैनी रहती है कि बस लैंडिंग सेफ हो. एकआध जगह हटा दें तो इस सीक्वेंस में गैर ज़रूरी ड्रामा नहीं ऐड किया गया. इस सीक्वेंस में VFX ने भी फिल्म की मदद की है. फिल्म के स्पेशल इफेक्ट्स ने रात के तूफान के बीच जूझते प्लेन के लिए एटमॉसफियर सेट करने का काम किया. बाकी फिल्म बिना बात के हिरोइज़म और लाउडनेस से दूरी बनाकर चलना चाहती है.
इन सब बातों के बाद फिर यहां एंट्री होती है एक लेकिन की. जो मोमेंटम फर्स्ट हाफ बनाकर रखता है, सेकंड हाफ उसे कमजोर कर देता है. कुछ इंटेरोगेशन वाले सीन हटा दिए जाएं तो ज्यादातर सीन ऐसे आते हैं जो आप अटेंशन रोककर नहीं रख पाते. मामला फ्लैट होने लगता है. ऐसे में क्लाइमैक्स भी कोई खास मदद नहीं करता. बस चीज़ें जल्दी-जल्दी रैप अप करने के सिवा. अजय देवगन ने शॉट्स के मामले में एक्सपेरिमेंट करने की कोशिश की, और आपको उनको एक्सपेरिमेंट की छाप पूरी फिल्म में दिखती है. पर एक समय के बाद लगातार बिना बात आते क्लोज़ अप खटकने लगते हैं. ऐसा लगता है कि एडिट टेबल पर एडिटर के पास शॉट्स कम पड़ गए, जिस वजह से जहां ज़रूरत नहीं थी, वहां भी बीच-बीच में क्लोज़ अप शॉट्स चिपका दिए गए.
मुझे ‘रनवे 34’ की सबसे अच्छी बात ये लगी कि वो लाउड हीरोज़ के दौर में वैसा बनने की कोशिश नहीं करती. कमजोर सेकंड हाफ को छोड़ दिया जाए तो फिल्म एक अच्छा ड्रामा है. बाकी अजय देवगन, अमिताभ बच्चन और रकुल प्रीत सिंह के अलावा यहां एक और नाम जुड़ा था, कैरी मिनाटी यानी अजय नागर का. अजय ने बेसिकली कैरी का ही रोल प्ले किया है. ये एक ऐसा किरदार था जो नेरेटिव को आगे बढ़ाने में कोई खास हेल्प नहीं करता. बस ये है कि उनके ज़रिए मेकर्स अपनी फिल्म की रिच बढ़ा पाएंगे.