
ये अपने किस्म की पहली फिल्म है, जिसके लव ट्राएंगल में चार लोग इन्वॉल्व्ड हैं. फिल्म के एक सीन में राज कुमार, वरुण शर्मा और जाह्नवी कपूर.
# एक्टर्स की परफॉरमेंस फिल्म में राज कुमार राव ने भंवरा पांडे का रोल किया है. रूही का किरदार ज़ाहिर तौर पर जाह्नवी कपूर ने निभाया है. वरुण शर्मा ने भंवरा के लंगोटिया यार कटन्नी का कैरेक्टर प्ले किया है. अगर कटन्नी का किरदार इतने कमाल तरीके से नहीं निभाया गया होता है, तो आधी से ज़्यादा फिल्म यूं ही ढह जाती. ये वरुण शर्मा अच्छे फिल्मी कॉमेडियन हैं, सब लोग जानते हैं. मगर इस फिल्म में उन्हें समय और स्क्रीनटाइम मिला है. इस पूरे समय वो राज कुमार राव पर हावी बने रहते हैं. भंवरा अपने दोस्त कटन्नी के साथ शादी के लिए लड़कियां पकड़ने का काम करता है. अपने बॉस के निर्देश पर उन्होंने जो लेटेस्ट लड़की पकड़ी है, वो हैं फिल्म की हीरोइन और टाइटल कैरेक्टर 'रूही'. एक ऐसी लड़की के जिसके भीतर एक चुड़ैल की आत्मा समा गई है. कब, कैसे, ये सब जानने के लिए सिनेमा देखिए. फिल्म के सेकंड हाफ में जाह्नवी को हम पहली बार बोलते सुनते हैं. इसका जस्टिफिकेशन ये होगा कि स्क्रिप्ट या स्टोरी की डिमांड थी. मगर वो स्क्रिप्ट लिखी भी तो आप लोगों ने ही है. 'गुंजन सक्सेना' के बाद जाह्नवी को इस तरह के रोल में देखना हार्ट-ब्रेकिंग है.

ये फिल्म राजकुमार राव और जाह्नवी कपूर से कहीं ज़्यादा वरुण शर्मा की है. फिल्म में उनका काम बहुत मजे़दार है.
# फिल्म का क्लाइमैक्स हम फिल्म के क्लाइमैक्स पर अलग से बात क्यों कर रहे हैं, यही बताने के लिए हम इस पर अलग से बात कर रहे हैं. आम तौर पर क्लाइमैक्स फिल्म का सबसे ज़रूरी हिस्सा होता है. क्योंकि सारी कहानी यहीं आकर खुलती है. 'रूही' का क्लाइमैक्स पूरी फिल्म से भारी है. फिर भी अपने पीछे बीते डेढ़ घंटे की भारपाई नहीं कर पाता. क्लाइमैक्स में कहानी, जो 'स्त्रीनुमा' टर्न एंड ट्विस्ट रचती है, वो एक बार को देखने से बहुत क्रांतिकारी लग सकता हैं. मगर 'रूही' जैसी फिल्म पर वो जंचता नहीं है. क्योंकि फिल्म कभी किसी मौके पर गंभीर नहीं होती. और आखिरी हिस्से में लाकर एक सुपर सीरियस क्लाइमैक्स रख दिया जाता है. आपको यकीन नहीं होता कि ये कहानी ऐसे खत्म हो सकती है. इसलिए वो अपना मर्म पुट अक्रॉस करने के बजाय फनी लगने लगता है. बस यहीं आपका और फिल्म का साथ छूट जाता है.

फिल्म के क्लाइमैक्स में.
एक औसत फिल्म की कुछ अच्छी बातें! * हालांकि फिल्में कुछ चीज़ें नोटिस करने लायक भी हैं. 'रूही' के नायक वो दो लोग हैं, जो निचले सामाजिक तबके से आते हैं. पढ़े-लिखे नहीं हैं, गलत अंग्रेजी बोलते हैं. मगर उनका फैशन अप टु डेट है. हाइलाइट किए हुए बाल, फैंसी जैकेट. ऊपर से नीचे तक टिप-टॉप. ऐसे लड़के हमें बड़ी आसानी से अपने आस-पास देखने को मिल जाते हैं. ये फिल्म उन लड़कों का प्रतिनिधित्व करती है. इसे एक औसत फिल्म की कुछ अच्छी बातों में गिना जाना चाहिए. कि अब हमारी फिल्मों का हीरो कोई भी हो सकता है. जिसकी कहानी वो हीरो.
* इस फिल्म की दूसरी पॉज़िटिव चीज़ है कि ये भूतों को बड़े इंसानी तरीके से ट्रीट करती है. उसे देखकर भगती नहीं है, उनसे बात करती है. उनकी कहानी जानती है. फिल्म का सबसे दिलचस्प हिस्सा वही है, जिसमें वरुण और जाह्नवी नज़र आते हैं.

'गुंजन सक्सेना' के बाद जाह्नवी कपूर को इस तरह के रोल में देखना बहुत निराश करने वाला है.
ओवरऑल एक्सपीरियंस 'रूही' को 'स्त्री' की तर्ज पर बनी एक हॉरर-कॉमेडी फिल्म की तरह प्रचारित किया गया था. 'स्त्री' वुमन सेंट्रिक फिल्म थी. अपने आइडिया और थॉट्स की वजह से. मगर 'रूही' में वो चीज़ मिसिंग लगती है. फिल्म आपको हंसाती है. मगर उसे ऐसा करने के लिए हर लाइन को पंच-लाइन बनाना पड़ता है. 'रूही' में हॉरर का सिर्फ छौंका, जो फिल्म के स्वाद में कुछ नहीं जोड़ पाता. और आपको डरा तो बिल्कुल नहीं पाता. सिर्फ निराश करता है. 'स्त्री' की स्पिरिचुअल सीक्वल मानी जा रही 'रूही' उसके आस पास भी नहीं पहुंच पाती. फिल्म जो कहना चाहती है, उसके लिए नींव नहीं रखी जाती है. शुरू से हंसती-खेलती ये फिल्म अचानक से आपको 'धप्पा' बोल देती है. कागज़ पर ये बहुत हिटिंग क्लाइमैक्स लगा होगा, मगर परदे पर ये फिल्म के लिए सबसे बड़ा सेटबैक साबित होता है. और इससे जनता कभी उबर नहीं पाती. मगर मैडॉक फिल्म्स को इस बात के लिए साधुवाद कि उन्होंने इन मुश्किल परिस्थितियों में भी 'रूही' को सिनेमाघरों में रिलीज़ किया.