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बड़ा फैसला! सेंसर बोर्ड के कंट्रोल से बाहर रहेगा ओटीटी प्लैटफॉर्म पर आने वाला कॉन्टेंट

थियेटर में रिलीज़ होने वाली फिल्मों के तमाम कायदे-कानून सेंसर बोर्ड ही तय करता है. मगर ओटीटी कॉन्टेन्ट को इस तीन लेवल पर मॉनिटर किया जाता है.

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हाल के दिनों में सेंसर बोर्ड फिल्मों की काट-छांट के लिए लगातार विवादों में रहा है.

लंबे समय से ये चर्चा चल रही थी कि केंद्र सरकार OTT Censorship बिल ला सकती है. ताकि OTT पर आने वाले कॉन्टेंट पर भी निगरानी रखी जा सके. मगर अब मिनिस्ट्री ऑफ इन्फॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग ने स्पष्ट किया है कि डिजिटल कॉन्टेंट सेंसर बोर्ड के दायरे से बाहर ही रहेगा. हालांकि इन प्लैटफॉर्म्स पर Information Technology (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules, 2021 के कायदे अब भी लागू रहेंगे.

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सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री एल मुरुगन ने संसद की कार्यवाही के दौरान इस बात की जानकारी दी. 17 दिसंबर को एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि सेंसर बोर्ड सिनेमैटोग्राफ एक्ट, 1952 के तहत काम करता है. इसके तहत पब्लिक एग्जीबिशन यानी सिनेमाघरों में दिखाया जाने वाला कॉन्टेंट आता है. जहां तक ओटीटी की बात है, उन्हें IT रूल्स, 2021 के तहत रेगुलेट किया जाता रहेगा. इसमें ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को कोड ऑफ एथिक्स का पालन करना होता है. इसका मतलब है कि वो कॉन्टेंट ओटीटी पर नहीं दिखाया जा सकता, जिस पर कानूनी रूप से रोक लगी है. साथ ही प्लैटफॉर्म्स को अपने कॉन्टेंट को उम्र वर्ग के हिसाब से कैटेगराइज़ करना भी ज़रूरी है.

आमतौर पर थियेटर में रिलीज़ होने वाली फिल्मों के तमाम नियम-कायदे सेंसर बोर्ड ही तय करता है. मेकर्स अपनी फिल्म बोर्ड के पास जमा करते हैं. फिर बोर्ड सदस्य उनका मूल्यांकन करते हैं. उसका बाद सर्टिफिकेट दिया जाता है. मगर जहां तक ओटीटी कॉन्टेंट की बात है, इसे तीन लेवल पर मॉनिटर किया जाता है.

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पहला लेवल: सबसे पहले तो हर ओटीटी प्लेटफॉर्म को खुद ही अपने कॉन्टेंट पर नज़र रखना पड़ता है. यानी कोई ऐसी चीज़ उनके प्लैटफॉर्म पर न दिखाई जाए, जिसकी मनाही है. जो कुछ भी वो दिखाएंगे, उसकी जिम्मेदारी उसी प्लेटफॉर्म की होगी. यानी सेल्फ सेंसरशिप.  

दूसरा लेवल: अगर किसी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर जनता की शिकायत का समाधान नहीं होता, तो ये मामला ओटीटी प्लैटफॉर्म्स के बनाए गए एक इंडिपेंडेट ऑर्गनाइजेशन के पास जाएगा. ये ऑर्गनाइजेशन उन शिकायतों पर संज्ञान लेगा. कॉन्टेंट देखेगा और फिर अपनी समझ के हिसाब से फ़ैसला लेगा.

तीसरा लेवल: अगर पहले और दूसरे लेवल पर भी समस्या का समाधान नहीं मिलता, तो फिर केंद्र सरकार इसमें दखल देगी. ये अंतिम लेवल है, जहां नेशनल लेवल पर मामलों को देखा और सुलझाया जाता है. इस दौरान सरकार जो भी फैसला लेती है, उसे ओटीटी प्लैटफॉर्म्स को मानना होता है. 

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ये सारा लफड़ा अप्रैल 2025 में शुरू हुआ. जब केंद्र सरकार समेत कई अन्य पक्षों ने ओटीटी और सोशल मीडिया पर दिखाए जाने वाले सेक्शुअल कॉन्टेंट पर बैन की मांग की थी. इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे चिंता का विषय माना था. साथ ही बी आर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने ये भी कहा कि इस मसले से डील करने का तरीका विधायिका या कार्यपालिका की तरफ से आना चाहिए. इस मसले से निपटने के लिए अब जो नियम बना है, वो ये है कि ओटीटी प्लैटफॉर्म्स को सेंसर बोर्ड से दूर रखा जाना चाहिए. ओटीटी के कॉन्टेंट की ज़िम्मेदारी प्लैटफॉर्म्स और उनकी इंडीपेंडेंट बॉडी के पास ही रहेगी. तब भी मैटर नहीं सुलटता, तब केंद्र सरकार हस्तक्षेप करेगी. 

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