"है सराफ़ा दिल का और ये, वक़्त बोहनी का हुआ लाख की ये चीज़ साहब, कौड़ियों के दाम है आपकी आंखों में वरना, आज कत्ल-ए-आम है"ये गाना ऐसे आता है जैसे करंट लगा हो. इसमें वो बेस है जो 'सुल्तान' की 'बेबी' को पसंद है. इलेक्ट्रॉनिक म्यूज़िक, जिसे आवाज़ तेज़ करके ही सुना जाना चाहिए. गाने का पूरा फ़ील डार्क रक्खा गया है और आवाज़ सोना महापात्रा की है. सोना उन सिंगर्स में से हैं जो अपनी आवाज़ से ही गाने को डार्क या रोमांटिक मूड दे सकती हैं. पूरे गाने का जूस है 'कत्ल-ए-आम' में. गाने के दौरान गूंजता रहता है. किसी नारे जैसा. मानो रमन और राघव से इंट्रोड्यूस करवा रहा हो. वासेपुर में डब्स्टेप लाने के बाद ये एक और एक्सपेरिमेंट है अनुराग का. बेहूदा
"एक धक्का और दे, सारे धागे तोड़ दे पीने के पानी में, ज़हर की नाली छोड़ दे अपने ही अक्स की आ गर्दन तू घोंट दे जा दिन के चेहरे पे काली रातें पोत दे."ये गाना इस फ़िल्म का ब्लड सैम्पल है. ब्लड सैम्पल से शरीर के इतिहास और भूगोल के बारे में पता लगाया जा सकता है. ये वही गाना है. कानों में 'तेरी खाल में रेंगें कीड़े, तू सच्चा बेहूदा' जाते ही आप तिलमिला उठते हैं. प्यार, प्यार और प्यार की आदत लगा देने वाले फ़िल्मी गानों के बीच ये गाना हंसिया मालूम देता है. आपने इसे छुआ नहीं कि खून निकाल देगा. आवाज़ है नयनतारा भटकल की. कई टीवी विज्ञापनों और एनएच10 के एक गाने में अपनी आवाज़ देने के बाद उन्हें राम संपत ने इस गाने के लिए चुना. एक बहुत ही अलसाई सी आवाज़, डार्क म्यूज़िक में आपको एक बेहद बेहूदा इंसान के वजूद के बारे में बताया जा रहा है. और आप बंधते चले जाते हैं. आप मुट्ठियां भींचना शुरू करते हैं और खुद-ब-खुद दांत पीसने लगते हैं. ये सारा कमाल वरुण ग्रोवर के काटने दौड़ते शब्द और नयनतारा की आवाज़ का जादू है. पानी का रास्ता
"आसमां, इतना सारा था आसमां मिट गया कच्चे ख्वाब सा रात ने मेरा दिन खाया..."फ़िल्म का एक और निराशा से भरा गाना. सिद्धार्थ बसरूर की आवाज़ में. किसी के सब कुछ लुट जाने की कहानी सुनाते हुए. कानों में चुप-चाप चीखने की कोशिश करते हुए. बाकी गानों की तरह इस गाने में भी इलेक्ट्रॉनिक म्यूज़िक की भरमार है. पानी का रास्ता गाना एक आदर्श राम संपत म्यूज़िक का प्रूफ देता है. राघव थीम फिल्म में अभी तक क्लियर नहीं है कि रमन कौन है और राघव कौन. लिहाज़ा ये कहना भी मुश्किल होगा कि आखिर ये थीम किसकी है. नवाज़ की या विकी कौशल की? फ़िल्म के प्रोमो और उसमें दिखाई लाइफ़स्टाइल के हिसाब से ये थीम मुझे विकी कौशल की लगती है. और इससे ये भी निशाना लगा सकता हूं कि राघव नाम है विकी का और रमन नवाज़ का. खैर, इस गाने में शब्द नहीं है. या ये कहें कि इस गाने को शब्दों की ज़रुरत नहीं है. ये सिर्फ़ इलेक्ट्रो म्यूज़िक से लबालब एक पीस है जो आपको मिनट भर में गुस्से से भर सकता है. आपकी ताकत एक जगह केन्द्रित कर आपसे कुछ भी करवा सकता है. इस पीस में एक ताकत है जो आपको ट्रांसफर होती मालूम देती है. ड्रग्स, सेक्स और बन्दूक से लैस राघव को इसी ताकत के मद में देखा गया है. क़त्ल-ए-आम (अनप्लग्ड)
"सब सुनाते हैं कि हमने हक़ ही क्यूं तुमको दिया? जानेजां खुद ही बताएं, ये कोई इल्ज़ाम है? आपकी आंखों में वरना आज कत्ल-ए-आम है"गाना वही है. बोल भी वही. आवाज़ भी वही. बस मूड अलग है. तीखी सी गिटार की धुन पर अकूस्टिक सेटिंग में गाने का दूसरा वर्ज़न एक ही लिरिक्स होने के बावजूद पूरी तरह से दूसरे मायने देता है. पहला वाला जहां आपको एक तेज़ चलती सड़क पर उलटे डायरेक्शन में आते ट्रैफिक के सामने दौड़ लगाता हुआ मालूम देता है. वहीं ये अनप्लग्ड वर्ज़न आपको किसी शांत बीच पर हाथ में एक बियर की बोतल पकड़े चिल करने को भेज देता है.
कुल मिलाकर फ़िल्म में गाने निराशा, गुस्से और विनाश करने की ताकत से भर देने वाले गाने हैं. शायद दो साइकोपाथ्स के आपस में टकराने कहानी यही चाहती थी. हालांकि ये सभी अभी अनुमान ही हैं. असली पर्दा फिल्म के पर्दे पर आने के बाद खुलेगा. सप्रेम! https://www.youtube.com/watch?v=Ixa5beTfpUE