लाल सिंह चड्ढा अपनी मां के साथ दंगों में फंसा है. उसकी मां लाल को बचाने के लिए उसके बाल काट देती हैं. इस सीन को काफ़ी सराहा गया था. ये जुड़ा था चौरासी दंगों से. अब एक सीरीज़ आई है CAT वो चौरासी के दंगों से तो नहीं जुड़ी है पर उसके परिणाम से जुड़ी है. ये शुरू ही होती है एक डायलॉग से, "वो क्या कहते थे; जब बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती हिलती है. अब हम 26 जनवरी को इनके इतने पेड़ गिराएंगे कि सारी दिल्ली..." धांय से गोली सिर को पार कर जाती है. शूटआउट होता है और यहीं से कहानी का मूड सेट हो जाता है. आपको लगता है, कहानी इसी ढर्रे पर चलेगी. पर ये तो फ्लैशबैक है. पिक्चर तो अभी बाक़ी है मेरे दोस्त. ये कहानी है पंजाब के ड्रग्स में डूबने और आतंकवाद से निकलने की. ये कहानी है गुरनाम सिंह की, जो सिस्टम की मदद करने में ड्रग ट्रैफ़िकिंग, पुलिस और पॉलिटिक्स के गहरे दलदल में फंस जाता है. अब आपको बताते हैं, सीरीज़ से जुड़ी कुछ बातें.
सीरीज़ रिव्यू: कैट
रणदीप हुड्डा एक बार फिर खुद को बतौर अभिनेता अव्वल साबित किया है.


# इससे पहले हम पंजाब ड्रग्स पर बनी एक अच्छी फ़िल्म 'उड़ता पंजाब' देख चुके हैं. पर 'कैट' उड़ता पंजाब के कैनवस को और विस्तार देती है. ड्रग सप्लाई से लेकर इसके डिस्ट्रीब्यूशन के बखूबी अंदर तक घुसती है. सबसे अच्छी बात जो मुझे लगी वो है, पंजाब का सेटअप. चूंकि सीरीज़ की ओरिजनल लैंग्वेज पंजाबी है. इसलिए सेटअप और रियल लगता है. हो रही घटनाएं और रचा गया तामझाम बनावटी नहीं लगता. साउथ की सफलता ने रीजनल सिनेमा को ये साहस दिया है कि वो अपनी भाषा में बड़े ऐक्टर को लेकर एक ठीकठाक बजट की सीरीज़ या फ़िल्म बना सकते हैं. इनकी स्वीकार्यता भी बढ़ी है. हालिया उदाहरण है उड़िया फ़िल्म 'दमन' और हरियाणवी फ़िल्म 'दादा लखमी'.
# सीरीज़ में डिटेलिंग पर भी काम सही किया गया है. ऐसी डिटेलिंग है कि एक शख्स छिपकर तस्वीरें खींचने के लिए फ़िल्म रील वाला छोटा कैमरा इस्तेमाल करता है. बाक़ी नोकिया के फोन्स की तो अति कर दी गई है. उसके ज़रिए इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के समय को दिखाने की कोशिश की गई है. कुछ फिल्मों का भी इस्तेमाल किया गया है. 80 के दशक को दिखाने के लिए मिथुन की एक फ़िल्म इस्तेमाल की गई है. ऐसी और भी कई चीजें हैं.
# एक और बात, जो मुझे सबसे अच्छी लगी वो है इसकी स्टोरीटेलिंग टेक्नीक. नॉन लीनियर स्ट्रक्चर में स्क्रीनप्ले चलता है. पहले एपिसोड में जो दिखाया होगा, उसका एक सिरा सातवें एपिसोड में जाकर खुलेगा. एक ही कहानी दो हिस्सों में चलती है. पहले हर एपिसोड में टीनएजर गुरनाम सिंह की कहानी आती है और फिर आती है गुरनाम की असल कहानी. कई मौकों पर मुझे फ़्लैश बैक वाली कहानी ज़्यादा दिलचस्प और ग्रिपिंग लगी. खासकर शुरुआती कुछ एपिसोड में. कहानी में कुछ भी एक्स्ट्रा नहीं है. जो हो रहा है, उसका कुछ न कुछ मतलब है. फ्लैशबैक वाली कहानी के तार भी 2007 के आसपास वाली कहानी से बहुत सटीक जोड़े गए हैं. बहुत सही ढंग से स्क्रीनप्ले और कहानी दोनों लिखी गई हैं. बस कहीं-कहीं पर स्टोरी भागकर दिखाई गई है. जैसे गुरनाम का अचानक जेल चले जाना. मैडम औलक की बेटी की शादी. संभव है ये समय बचाने के लिए किया गया होगा. ये कोई बड़ी शिकायत नहीं है. सीरीज़ लिखी है बलविंदर सिंह, रूपिंदर चहल, अनिल रोधान और जिम्मी सिंह ने. बलविंदर, रूपिंदर और जिम्मी ने इसके अलग-अलग एपिसोड डायरेक्ट किए हैं.
# राकेश वर्मा के बनाए गानों में बहुत विविधता है. उसमें लोक भी है और रॉक भी है. जोएल क्रैस्टो का बीजीएम भी अच्छा है. मुझे पर्सनली एकाध जगह किया गया सारंगी का इस्तेमाल बेहतरीन लगा.
# सीरीज़ की खास बात ये है कि सभी किरदार ग्रे एरिया में खेलते हैं. हालिया दौर में ये चलन बढ़ा है कि किरदार को सही-गलत नहीं दिखाया जाता. बल्कि जो इंसान है, वो दिखाया जाता है. सिनेमा आदर्शवाद से यथार्थवाद की ओर बहुत तेजी से शिफ्ट हुआ है. सिर्फ़ भारतीय सिनेमा में ही ऐसा नहीं है. आप GOT और HOTD का उदाहरण उठाएंगे, तो पाएंगे, GOT में कुछ पॉजिटिव किरदार थे. पर उसके स्पिनऑफ HOTD के सारे किरदार ग्रे हैं.ऐसा ही CAT में भी है. चाहे मैडम औलक का किरदार हो या गुरनाम सिंह का. कहने का मतलब है कि बहुत से प्योर निगेटिव किरदार हैं, पर कोई भी किरदार पूरी तरह से सिर्फ़ पॉजिटिव नहीं है. शायद पुलिस ऑफिसर बबिता के किरदार को छोड़कर.

# ऐक्टिंग में रणदीप हुड्डा हर बार की तरह कमाल हैं. आप सीरीज़ देखते हुए ये भूल जाते हैं कि रणदीप स्क्रीन पर हैं. आपको सिर्फ़ और सिर्फ़ गुरनाम नज़र आते हैं. उनकी देहदशा आपको हमेशा याद दिलवाती रहती है कि उन्हें बदला लेना है. ये उनका मुकम्मल सीरीज़ डेब्यू है. यंग गुरनाम सिंह के किरदार को अभिशान्त राणा ने जीवंत कर दिया है. इसके अलावा सेहताब सिंह के रोल में सुविन्दर विकी ने बाजा फाड़ दिया है. बहुत ही सधा हुआ अभिनय. एक तो उनका किरदार बहुत सही ढंग से लिखा गया है. हर एपिसोड के साथ उसकी एक परत खुलती है. ऐसे किरदार आपको याद रह जाते हैं. एक बार को वो रणदीप पर हावी होते नज़र आते हैं. वो इस सीरीज़ का हासिल हैं. हरलीन कौर ने बबिता का किरदार बहुत सहजता से निभाया है. उसमें बबिता की सरलता और सच्चाई दिखती है. वो मुझे कुछ-कुछ डेल्ही क्राइम की रसिका दुग्गल जैसी लगी हैं. बाक़ी सभी किरदारों ने बहुत अपना काम ढंग से किया है. कोई ऐसा ऐक्टर नहीं है जो आपको आउट ऑफ कांटेक्स्ट लगे. सबकी कास्टिंग भी ऐप्ट है.
#अंत थोड़ा और ज़्यादा अच्छा हो सकता था. संभवतः दूसरे सीज़न का रास्ता दिखाने के लिए ऐसा हुआ है. खैर जो भी हो. सीरीज़ देखी जा सकती है. यदि देखें तो पंजाबी में ही देखें.
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