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मूवी रिव्यू: मोनिका, ओ माई डार्लिंग

वासन बाला का ट्रीटमेंट यूनिक है और आपको बोर नहीं होने देता. कुल-मिलाकर 'मोनिका ओ माई डार्लिंग' एक फन राइड है. देखिए, मज़ा आएगा.

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मान लीजिए आप एक फिल्म देख रहे हैं. स्क्रीन पर मर्डर हो रहा है. ज़ाहिर है माहौल तनावभरा होगा. टेन्स सीन, राइट? आखिर किसी की जान जा रही है. लेकिन अगर आप उस सीन को देखकर हंसने लग जाएं तो? बैकग्राउंड म्यूज़िक के चुटीलेपन पर आपके पैर थिरकने लग जाएं तो? वासन बाला की विचित्र लेकिन मज़ेदार दुनिया में आपका स्वागत है.

चार साल पहले जब वासन बाला 'मर्द को दर्द नहीं होता' लेकर आए थे, मुझ समेत कईयों को एक ताज़ा हवा के झोंके की तरह लगे थे. एकदम फ्रेश अप्रोच और लुभावना डार्क ह्यूमर. उनकी फिल्म के हर फ्रेम पर बोल्ड अक्षरों में 'सिनेमाप्रेमी' लिखा होता है. तो इस बार जब वो हुमा कुरैशी, राधिका आपटे और राजकुमार राव जैसी टैलेंटेड कास्ट के साथ कुछ लेकर आएं, तो उत्सकुता और उम्मीद दोनों ही भरपूर मात्रा में थी. क्या वो इस उम्मीद पर खरे उतरे हैं? हां जी हां, बिल्कुल खरे उतरे हैं. उनकी नई फिल्म 'मोनिका, ओ माई डार्लिंग' डार्क ह्यूमर, उम्दा परफॉरमेंसेस और शानदार म्यूज़िक का बढ़िया गुलदस्ता है.

श्रीराम राघवन यूनिवर्स

'मोनिका, ओ माई डार्लिंग' की कहानी मोस्टली श्रीराम राघवन के यूनिवर्स में परवाज़ करती नज़र आती है. जयंत आरखेड़कर नाम का एक छोटे गांव का, छोटी सोच वाला, छोटा आदमी है, जो बड़ा बनने के लिए छटपटा रहा है. पैसे वालों की दुनिया में घुसने में कामयाब हो गया है और बड़ी कंपनी में बड़ी पोस्ट भी हथिया चुका है. और तो और बॉस की बेटी भी उसके प्यार (कब्ज़े) में है. और क्या चाहिए! चाहिए न! इसे बनाए रखना इतना आसान थोड़े ही है. ये उतनी ही बड़ी जंग है, जितनी यहां तक पहुंचने की थी.

जयंत की लाइफ में और भी किरदार हैं. जैसे कि,

- उसकी होने वाली बीवी निक्की, जो उसके सुनहरे भविष्य की चाबी है.
- उसका सौतेला साला निशिकांत, जो ये तय नहीं कर पा रहा कि उसे अपने बाप से ज़्यादा नफरत है या जयंत से. 
- उसकी कंपनी का अकाउंटेंट अरविंद, जो फैमिली मैन है और अपनी इमेज प्रोटेक्ट करने के लिए मरा जा रहा है. 
- उसकी बहन शालू, जो नैतिकता में गोल्ड मेडलिस्ट है और बुद्धि में फिसड्डी. 
- शालू का दोस्त कम प्रेमी गौरव, जिसकी लाइफ का फोकस सिर्फ और सिर्फ शालू है. 
- पुलिसवाली ACP नायडू, जो चुटकुले सुनाकर इन्वेस्टिगेशन करती है और कभी भी होश उड़ा देती है. 
और..... 
- और मोनिका, जो तमाम समस्याओं की जड है. एक लालची सेक्रेटरी, जो पैसों का पलंग बिछाकर सोना चाहती है और नैतिकता को गुज़रे ज़माने की चीज़ मानती है.

ये सब मिलकर जयंत की और एक-दूसरे की लाइफ में क्या गुल खिलाते हैं, यही फिल्म की कहानी है. इससे ज़्यादा बताकर हम आपकी फिल्म स्पॉइल नहीं करना चाहते. नेटफ्लिक्स पर लॉगिन करके देख लीजिएगा.

कमाल कास्ट

परफॉरमेंसेस की बात की जाए, तो राज कुमार राव से पहले राधिका आपटे और हुमा कुरैशी की बात करनी पड़ेगी.  ACP नायडू के रोल में राधिका आपटे कमाल लगी हैं. वो जब भी स्क्रीन पर आती हैं, मज़ा आ जाता है. उनका ह्यूमर विचित्र लेकिन फ्रेश है. ऐसे रोल्स में हम अब तक सिर्फ पुरुष पुलिस अधिकारी देखते आए हैं. ये एक वेलकम चेंज है. आप उन्हें और देखना चाहते हैं. एक और शख्स हैं, जिन्हें आप और देखना चाहते हैं. सिकंदर खेर. पता नहीं इस आदमी को उतना काम करते क्यों नहीं देख पाते हम? उनकी कॉमिक टाइमिंग ज़बरदस्त है. थोड़ा सा क्रूर, थोड़ा सा फंकी निशिकांत अधिकारी उन्होंने बढ़िया निभाया है. अगर उन्हें सही से रोल मिलने लगे, तो बड़ा नाम बनने की पूरी काबिलियत है उनमें. हुमा कुरैशी का भी हिंदी सिनेमा सही से इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है. उन्होंने मोनिका की भूमिका में तमाम ज़रूरी शेड्स एफर्टलेसली डाल दिए हैं. कुछेक सीन्स में तो वो राजकुमार राव पर पूरी तरह हावी हो गई हैं.

राजकुमार राव के बारे में अलग से कुछ कहने की ज़रूरत नहीं. कभी क्रूर, कभी कन्फ्यूज्ड जयंत का रोल उन्होंने उम्दा ढंग से निभाया. गौरव के रोल में सुकांत गोएल असेट हैं. क्यों हैं, फिल्म देखकर जान जाएंगे. आकांक्षा रंजन कपूर, ज़ैन मेरी खान, शिवा रिंदानी और भगवती पेरूमल भी अच्छी कास्टिंग साबित हुए हैं.

वासन बाला का डायरेक्शन मोस्टली आपका अटेंशन जकड़े रहता है. सेकंड हाफ में कहीं-कहीं फिल्म थोड़ी सुस्त होने लगती है, लेकिन तुरंत ही ट्रैक पर आ जाती है. वासन बाला सिनेमा की विधा को अपने स्टाइल में ट्रिब्यूट भी देते चलते हैं. कभी हिचकॉक की 'साइको', कभी इरफ़ान की 'मकबूल' तो कभी श्रीराम राघवन की 'जॉनी गद्दार'. अगर आप ध्यान से देख रहे हैं, तो सारे रेफरेंस पकड़ पाएंगे. वासन बाला का ट्रीटमेंट यूनिक है और आपको बोर नहीं होने देता. उनका और काम जल्दी से देखने की तमन्ना रहेगी.

मस्त म्यूज़िक

फिल्म का एक और सशक्त पक्ष है. इसका संगीत और बैकग्राउंड स्कोर. एकदम फ्रेश. बैकग्राउंड स्कोर से रेट्रो वाली बहुत अच्छी फील आती है. गाने भी फिल्म की फील को बहुत अच्छे से कॉम्प्लीमेंट करते हैं. वरुण ग्रोवर के लिखे गीत और अचिंत ठक्कर का संगीत धमाल है. कुछेक गाने तो अद्भुत लगते हैं. 'ये एक ज़िंदगी' गाना सुनकर आशा भोसले की याद आती है. अनुपमा ने इसे बहुत स्टाइलिश ढंग से गाया है. बाकी गाने भी अच्छे हैं लेकिन मेरे दो फेवरेट हैं. एक तो 'फर्श पर खड़े' और दूसरा ' लव यू सो मच'. गानों के बोल और म्यूज़िक तो उम्दा हैं ही, इनका फिल्मांकन भी ज़बरदस्त है. ख़ास तौर से 'लव यू सो मच' गाना. ये वही गाना है, जिसका ज़िक्र मैंने शुरू में किया था. अद्भुत समा बंधता है उस वक्त. सरिता वाज़ ने इतने कमाल ढंग से गाया है कि उषा उत्थुप की याद आती है. अचिंत का 'स्कैम 1992' के बाद एक और उम्दा काम है ये अल्बम.

फिल्म में क्षणभर के लिए वासन बाला की पिछली फिल्मों के स्टार राधिका मदान और अभिमन्यु दसानी का छोटा सा कैमियो है, जो अच्छा लगता है.

कुल-मिलाकर 'मोनिका ओ माई डार्लिंग' एक फन राइड है. देखिए, मज़ा आएगा.